रायपुर: छत्तीसगढ़ धान के कटोरे के नाम से जाना जाता है, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में उगने वाले धान की चमक देशभर में फैल रही है. यहां की महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं धान से बने आभूषण इजाद कर रहीं हैं. धान से बने इन आभूषणों की मांग भी अब धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. इन आभूषणों की बिक्री होने से न केवल छत्तीसगढ़ को देशभर में पहचान मिल रही है. बल्कि यहां कि महिलाएं भी आर्थिक रूप से सशक्त और मजबूत हो रही हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा इन आभूषणों की सर्वाधिक मांगें मेट्रो सिटी समेत कई बड़े शहरों और राज्यों में हो रही है.
धान की बालियों से तैयार हो रहे आभूषण बेशकीमती आभूषणों की तरह चमकते हैं, धान के यह गहनेसोने की दाने की तहर दिखाई दे रहे ये दाने सोने के नहीं बल्कि धान के दाने हैं. जिसे ये महिलाएं शिद्दत से गोंद से चिपका कर आभूषण तैयार करने में जुटी हुई है. इनकी नक्काशी भी बेशकीमती आभूषणों की चमक को भी फेल कर दे रही है. इन आभूषणों को देखकर आप भी चाहेंगे कि काश ये आभूषण आपके गले या कान में आपकी शोभा बढ़ाए. क्योंकि यह आभूषण सोने की चमक को भी फीका कर रही है.
बेमेतरा में धान परिवहन में लापरवाही बरतने पर 3 ट्रांसपोर्टरों के खिलाफ मामला दर्ज धान, मिट्टी, गोबर से तैयार किए जा रहे आभूषणमहिला स्व सहायता समूह की प्रमुख निरजा स्वामी बताती हैं कि, बचपन में वह हिमाचल प्रदेश गई हुई थी. जहां सेब के बीज से आभूषण बनाते हुए उन्होंने देखा था. उसके बाद यहां आने के बाद धान के दानों से आभूषण बनाने की सोंची. फिर धान से आभूषण बनाना शुरू किया. इसके बाद महिलाओं को इस कलाकृति से जोड़ना शुरू किया. जिसमें आज उनके साथ 25 महिलाओं का एक समूह बन गया है. सभी महिलाएं गरीब तबके से आती हैं. इस कलाकृति को सीखकर आज वे आर्थिक रूप से संपन्न हो रही हैं. उन्होंने बताया कि, आभूषणों को धान, गोबर और मिट्टी से तैयार कर रही हैं. इसके साथ ही धान के दानों को एसिड से साफ किया जाता है. जिसकी वजह से उसकी चमक भी बढ़ जाती है और इस आभूषण को आने वाले 10 वर्षो तक सहेज कर रखा जा सकता है. इतना ही नहीं बल्कि 10 वर्षों तक इसकी चमक वैसी ही बनी रहेगी. वे कहती हैं कि, छत्तीसगढ़ में इन आभूषणों की मांग उतनी नहीं है, लेकिन बाहरी राज्यों में इसकी डिमांड बहुत ज्यादा है।
आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रही है महिलाएं महिला स्व सहायता समूह से जुड़ी महिला पार्वती टेकाम बताती हैं कि, हम लोग धान से बने आभूषण बना रहे हैं. इसकी ट्रेनिंग हमें निरजा स्वामी के द्वारा मिली है. हम लोग बिलासपुर, दुर्ग भिलाई समेत बहुत से क्षेत्रों में जाकर इसकी प्रदर्शनी लगा चुके हैं. वे कहती है कि धान के आभूषणों की बाजार में अच्छी खासी मांग है. इससे उन्हें रोजगार मिल रहा है. साथ ही वह आत्मनिर्भर भी बन चुकी हैं. क्योंकि इसी के बदौलत उनके घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है. वे कहती हैं कि इस काम को हम घर में रहकर कर सकते हैं, बाहर जाने की जरूरत भी नहीं होती. घर में काम भी आसानी से हो जाता है.
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महिला स्व सहायता समूह की सदस्य जानकी बाई बताती है कि, 2016 से वह महिला समूह से जुड़ी हुई हैं. जब वह महिला स्व सहायता समूह से नहीं जुड़ी थी, उस समय वह सिलाई का काम करती थी, लेकिन इतनी आमदनी नहीं होती थी, जिससे उसका परिवार चल पाए. उन्होंने बताया कि जब से उन्होंने धान से आभूषण बनाना शुरू किया. उसके बाद से उन्हें मुनाफा भी हो रहा है और उनके घर की आर्थिक स्थिति भी पहले से बेहतर हुई है.
50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक के आभूषण
ध्यान से बने हुए यह आभूषण जिनमें कान की बालियां, नेकलेस, बिंदिया, इसके अलावा धान से बनी राखियों को भी बनाया जाता है. महिला स्व सहायता समूह के लोगों ने बताया कि धान से बने कान के आभूषणों की कीमत 50 रुपये से शुरू होती है. इसी तरह से धान से बने नेकलेस की अलग अलग कीमत है. जो 150 रुपए से लेकर 500 रुपए तक बिक्री किए जाते हैं.अमूमन जब कोई आभूषण पहनता है तो धातुओं,रत्न और मोतियों से बने आभूषणों के वजन होते हैं. जिसके कारण कई बार पहनने वालों को दिक्कतें होती हैं. लेकिन धान से बने हुए आभूषण वजन में बेहद हल्के होते हैं और इसे पहनने में भी परेशानी नहीं होती है.
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महिला स्व सहायता समूह की प्रमुख निरजा स्वामी का कहना है कि, छत्तीसगढ़ राज्य मैं हमारे मेहनत का उचित दाम नहीं मिल पाता लेकिन, अन्य राज्यों में धान से बने आभूषण को लोग बेहद पसंद करते हैं. अमूमन छत्तीसगढ़ में जो झुमके ₹50 में बिकते हैं वह दिल्ली जैसे शहर में लगभग ₹300 रुपये में बिकते हैं. लोगों के द्वारा भी धान से बने हुए आभूषण और मिट्टी से बने हुए आभूषणों की तारीफ की जाती है. वे कहती हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा हमें सहयोग तो मिलता है. लेकिन इस कला को अच्छे से नहीं समझा जा रहा है. इस कला में हमें किसी प्रकार का पुरस्कार नहीं मिलता है. जरूरत इस कला का विकास करने की है.