रायपुर:1 जनवरी को नववर्ष के साथ ही छत्तीसगढ़ के इन चार महान विभूतियों की जयंती भी है, Tribute to Chhattisgarh great men जिन्होंने जनता के लिए सेवा, साधना, त्याग और समर्पण की भावना से कार्य किया और समाज को एक नई दिशा दी. Jayanti of great men of Chhattisgarh जिनसे प्रदेश की लगातार प्रेरणा लेती है. इन महान विभूतियों ने उनके प्रयासों के चलते ही छत्तीसगढ़ को नयी पहचान भी मिली. raipur latest news आज प्रदेशवासी नववर्ष के साथ ही इन छत्तीसगढ़ के महापुरुषों को नमन कर रहे हैं.
1. चंदूलाल चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ का बढ़ाया मान : चन्दूलाल चन्द्राकर का जन्म 1 जनवरी 1921 को दुर्ग जिले के निपानी गांव के कृषक परिवार में हुआ chandulal chandrakar birth anniversary 2023. वे बाल्यावस्था से ही मेधावी रहे. दुर्ग में प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ग्रामिणों की समस्या का समाधान करने में भी आप सदैव तत्पर रहते थे. उन्होंने बी.ए. की पढ़ाई राबर्टसन कॉलेज जबलपुर से की थी.
छत्तीसगढ़ के माटीपुत्र चंदूलाल चंद्राकर की जयंती राजनीति से पहले सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े: राजनीति के पूर्व सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े. द्वितीय विश्वयुद्ध (second World War) के समय से वे अभ्यस्त पत्रकारों जैसी सधी पत्रकारिता करने लगे.Know who was Chandulal Chandrakar. 1945 से पत्रकार के तौर पर चंदुलाल चंद्राकर की ख्याति होने लगी. उनके समाचार हिन्दुस्तान टाइम्स सहित देश-विदेश के अन्य अखबारों में प्रकाशित होने लगे. चंद्राकर को 9 ओलंपिक खेलों और तीन एशियाई खेलों की रिपोर्टिंग का सुदीर्घ अनुभव रहा. National newspaper Dainik Hindustan में संपादक के रुप में भी उन्होंने सेवाएं दी. छत्तीसगढ़ से राष्ट्रीय समाचार पत्र के संपादक पद पर पहुंचने वाले वे प्रथम थे. युद्धस्थल से भी उन्होनें निर्भीकतापूर्वक समाचार भेजे और विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा पत्रकार के रुप में की.
महात्मा गांधी ने की थी चंदूलाल चंद्राकर की प्रशंसा: कॉलेज के दौरान ही वो राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े और साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार किए गए. हालांकि परीक्षा के समय उन्हें रिहा कर दिया गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बनारस में दैनिक 'आज' के साथ जुड़े. इसके बाद वो 'आर्यावर्त' के संवाददाता बने. कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन के कवरेज के लिए महात्मा गांधी ने उनकी प्रशंसा की Mahatma Gandhi had praised थी.
2. छत्तीसगढ़ के गांधी पवन दीवान के बारे में जानिए: प्रतिष्ठित ब्राम्हण परिवार में पवन दीवान का जन्म राजिम में 1 जनवरी 1945 को हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा फिंगेश्वर में हुई. हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में एमए करने वाले Pawan Diwan जब संस्कृत कॉलेज रायपुर में पढ़ते थे, तब आचार्य रजनीश भी वहां व्याख्याता थे. हर साल 1 जनवरी को पवन दीवान की जयंती Pawan Diwan Jayanti Date मनाई जाती है. छात्र जीवन से ही साहित्य सृजन करने वाले दीवानजी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी में कविता भी करने लगे. वैसे उन्होंने कुछ कविताएं अंग्रेजी में भी लिखी थी. कविता करते करते वे भागवत प्रवचन में लग गये.
छत्तीसगढ़ के गांधी पवन दीवान की जयंती पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का जगाया अलख: पवन दीवान छत्तीसगढ़ की हालत, दलितों की पीड़ा और दूसरे कारणों से बेहद व्यथित थे. उन्होंने स्वर्गधाम मैनपुरी ऋषिकेश के स्वामी भजनानंद जी महाराज से दीक्षा ली और वैराग्य की ओर कदम बढ़ाया. उनका नाम भी दीक्षा के बाद स्वामी अमृतानंद हो गया. हालांकि वे पवन दीवान के नाम से पहचाने जाते थे. आपातकाल के समय उन्होंने 'पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी' से रायपुर से चुनाव लड़ा. उन्हें सफलता तो नहीं मिली लेकिन 'पृथक छत्तीसगढ़ राज्य' के लिए अलख जगाने का बीज उन्होंने रोपित कर दिया. स्वर्गीय खूबचंद बघेल से लेकर स्वर्गीय चंदूलाल चंद्राकर के लगातार संपर्क में रहकर उन्होंने Prithak chhattisgarh के लिए संघर्ष किया.
3. ताराचंद साहू के बारे में जानिए:छत्तीसगढ़ के माटीपुत्रों में ताराचंद साहू का अहम योगदान है. 1 जनवरी 1947 को ताराचंद साहू का जन्म दुर्ग जिले के कचांदुर में हुआ था. Tarachand sahu birth anniversary 2023किसान परिवार में जन्मे Tarachand sahu अध्ययन के बाद अध्यापन कार्य से जुड़ गए थे. वे स्कूली शिक्षक के तौर अपने इलाके में कार्य कर रहे थे, लेकिन इस दौरान वे जनसंघ से भी जुड़ गए थे. सन् 1964 में भारतीय जनसंघ के सदस्य बन गए. इसके बाद जनसंघ के लिए सक्रिय तौर पर काम करने लगे. Son of Chhattisgarh Mahtari भारतीय जनता पार्टी के उदय के साथ ही वे पार्टी के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता के तौर काम करने लगे. ताराचंद साहू धीर-धीरे दुर्ग जिले में अपनी पकड़ और पार्टी को मजबूत करते चले.
प्रदेश की रानीति में अपना लोहा मनवाने वाले ताराचंद साहू की जयंती दुर्ग को बनाया भाजपा का गढ़ : BJP ने सन् 1990 में ताराचंद साहू को अविभाजित दुर्ग जिले के गुंडरदेही विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया. ताराचंद ने पहले ही चुनाव में जीत हासिल करते हुए विधायक चुने गये. इसके बाद वे 1993 में दोबारा विधायक बने. पार्टी उन्हें दुर्ग जिला BJP अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी. सन् 1996 में जिलाध्यक्ष रहते ही उन्हें Durg Lok Sabha Seat से उम्मीदवार बना दिया. उस समय ताराचंद के सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता वासुदेव चंद्राकर प्रतिद्वंदी थे. ताराचंद ने वासुदेव चंद्राकर को हराकर सबको चौंका दिया. यह एक तरह से दुर्ग में कांग्रेस के दुर्ग को ध्वस्त करने जैसा था. इसके बाद वे लगातार 98, 99 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीते और सांसद बने. उनके जीत और कांग्रेस की हार से दुर्ग में कांग्रेस कमजोर और BJP मजबूत होते चली गई.
4. देवदास बंजारे ने कैसे कमाया नाम: छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के लिए कई ऐसे महान विभूतियां हुए, जिन्होंने अपने काम से प्रदेश को एक अलग पहचान दिलाई. देवदास बंजारे उन्हीं में से एक थे. Devdash banjare jayanti 1 जनवरी 1947 को देवदास बंजारे का जन्म तत्कालीन रायपुर जिले के धमतरी तहसील के एक छोटे से गांव सांकरा में हुआ. दुर्ग जिले के उमदा गांव में वह पले बढ़े. स्टील सिटी भिलाई के पास के गांव धनोरा भा वे रहे. देवदास स्कूल के समय का धावक थे. साथ ही कबड्डी में देवदास राज्यस्तरीय चैम्पियन थे. अत्यंत तंगहाली के दिनों से उन्होंने अपना जीवन शुरु किया.
ऐसे मिला जेठू को देवदास नाम: देवदास जी के बचपन का नाम जेठू था. बड़ी माता के प्रकोप से उसके शरीर का एक परत का मांस उतर गया. जेठू को राख बिछा कर सुलाया जाता था, उनकी मां देवता से उसके जीवन की मनौती मनाई थी. धीरे धीरे जेठू ठीक हो गया देवताओं से मनौती के फलस्वरूप नया जीवन को प्राप्त जेठू को देवदास नाम दिया story of Devdash banjare गया. 1972 में बाबा के जन्म स्थान Giroudpuri जहां छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा मेला लगता है. वहां के प्रर्दशन ने देवदास को सफलता की सीढ़ियों में चढ़ना सिखाया. उस अवसर पर अविभजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल ने उनके दल को स्वर्ण पदक से panthi dancer Devdash banjare नवाजा. छत्तीसगढ़ के समाचार पत्रों नें भी देवदास के पंथी दल की भूरि भूरि प्रसंशा की. धीरे धीरे देवदास का दल प्रसिद्धि पाने लगा.
राष्ट्रपति के हाथों से स्वर्ण पदक से सम्मानित हुए: इस दौरान देवदास अपने कला में पारंगत होते गए. 26 जनवरी 1975 को छत्तीसगढ एवं इस्पात मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करते हुए गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में देवदास को नाचते हुए लाखों लोगों ने देखा. 21 मई 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम फकरूद्दीन अली अहमद ने गणतंत्र दिवस के परेड की प्रस्तुति से प्रसन्न होकर राष्ट्रपति भवन में प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया और अपने हाथों से स्वर्ण पदक से सम्मानित किया.