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Jaya Ekadashi 2023 : जया एकादशी पूजन विधि और व्रत कथा

जया एकादशी हिन्दू धर्म में एक विशेष दिन होता है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं. वर्ष में लगभग 24 से 26 एकादशी होती है और प्रत्येक एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है. इस प्रकार जया एकादशी का भी है.यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है.इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है. जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं. जया एकादशी को दक्षिण भारत के कुछ हिंदू समुदायों, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के रूप में भी जाना जाता है.

JAYA EKADASHI 2023
जया एकादशी का महत्व और पूजन विधि

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Published : Jan 28, 2023, 2:24 PM IST

रायपुर / हैदराबाद :जया एकादशी के महत्व के बारे में ‘पद्म पुराण’ और ’भविष्योथारा पुराण’ बताया गया है.जया एकादशी के महत्व के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था, कि यह व्रत करने से ‘ब्रह्म हत्या’ जैसे पाप से भी मुक्ति दिला सकता है. माघ का महीने में भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ होता है. इसलिए जया एकादशी भगवान शिव और विष्णु दोनों के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.

जया एकादशी पूजन विधि : माघ का महीना पवित्र और पावन होता है इस मास में व्रत और तप का बड़ा ही महत्व होता है. इस माह में शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को जया एकादशी कहते हैं.जया एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. व्रत करने वाल व्यक्ति को सूर्योदय के समय उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए. भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं. इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है.द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें.

जया एकादशी व्रत कथा : नंदन वन में उत्सव चल रहा था. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान थे. उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था. इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी. पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो. माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये.

इंद्र ने दिया श्राप : इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध हो आया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं.पृथ्वी पर निवास करें. मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों. इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये .हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया. यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे. उस दिन वे केवल फलाहार रहे. रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी. दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे. ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी. अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी.

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स्वर्ग में मिला दोबारा स्थान :अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया.देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा. माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है. हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं. इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें.

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