रायपुर / हैदराबाद :जया एकादशी के महत्व के बारे में ‘पद्म पुराण’ और ’भविष्योथारा पुराण’ बताया गया है.जया एकादशी के महत्व के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था, कि यह व्रत करने से ‘ब्रह्म हत्या’ जैसे पाप से भी मुक्ति दिला सकता है. माघ का महीने में भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ होता है. इसलिए जया एकादशी भगवान शिव और विष्णु दोनों के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.
जया एकादशी पूजन विधि : माघ का महीना पवित्र और पावन होता है इस मास में व्रत और तप का बड़ा ही महत्व होता है. इस माह में शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को जया एकादशी कहते हैं.जया एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. व्रत करने वाल व्यक्ति को सूर्योदय के समय उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए. भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं. इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है.द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें.
जया एकादशी व्रत कथा : नंदन वन में उत्सव चल रहा था. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान थे. उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था. इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी. पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो. माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये.