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भारत के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर - कृष्ण जन्मोत्सव

भारत के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में धूमधाम से कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. इन मंदिरों में जन्माष्टमी के मौके पर दूर-दूर से कृष्ण भक्त भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं.

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कृष्ण जन्मोत्सव

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Published : Aug 18, 2022, 6:00 AM IST

रायपुर: जन्माष्टमी के मौके पर भगवान श्री कृष्ण के सभी मंदिरों में धूमधाम से कृष्ण लला के जन्मदिन को मनाया जाता है. इस बार भी हर साल के तरह सभी कृष्ण मंदिरों में तैयारी जोरों पर है. ईटीवी भारत जन्माष्टमी के मौके पर आपको भगवान श्री कृष्ण के खास मंदिरों के बारे में बताने जा रहा है. ये भारत के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर हैं, जहां कृष्णलला की पूजा धूमधाम से की जाती है.

द्वारकाधीश मंदिर द्वारका, गुजरात:द्वारकाधीश मंदिर जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक चालुक्य शैली की वास्तुकला है, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है.द्वारका शहर का इतिहास महाभारत में द्वारका साम्राज्य के समय का है. पांच मंजिला मुख्य मंदिर चूना पत्थर और रेत से निर्मित अपने आप में भव्य और अद्भुत है. माना जाता है कि 2200 साल पुरानी वास्तुकला उनके पोते वज्रनाभ द्वारा बनाई गई थी, जिन्होंने इसे भगवान कृष्ण द्वारा समुद्र से प्राप्त भूमि पर बनाया था. मंदिर के भीतर अन्य मंदिर हैं जो सुभद्रा, बलराम और रेवती, वासुदेव, रुक्मिणी और कई अन्य को समर्पित हैं. स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्तों को गोमती नदी में डुबकी लगानी होती है. जन्माष्टमी में द्वारकाधीश मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं.

राधा कृष्णा मंदिर, कवर्धा:कवर्धा जिले का राधा कृष्ण मंदिर यहां का प्रमुख पर्यटक आकर्षण का केंद्र है. कवर्धा एक सबसे सुंदर पर्यटन किए जाना चाहिए वाला स्थान है. कवर्धा में सबसे पुराने मंदिरों का भंडार भरा पड़ा है, जिसमें से एक है राधा कृष्ण मंदिर जो कवर्धा जिले के पवित्र स्थानों मे से एक है.

श्री बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन: बांके बिहारी मंदिर मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है. यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. बांके बिहारी कृष्ण का ही एक रूप हैं, जो इसमें प्रदर्शित किया गया है. इसका निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था. श्रीधाम वृन्दावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है. ऐसा आखिर कौन व्यक्ति होगा, जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बांकेबिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा. यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है. कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत 1929 के लगभग किया गया.

द्वारकाधीश मंदिर, मथुरा:मथुरा नगर के राजाधिराज बाजार में स्थित यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है. ग्वालियर राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुलदास पारीख ने इसका निर्माण 1814-15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात् इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया. वर्ष 1930 में सेवा पूजन के लिए यह मन्दिर पुष्टिमार्ग के आचार्य गिरधरलाल जी कांकरौली वालों को भेंट किया गया. तब से यहां पुष्टिमार्गीय प्रणालिका के अनुसार सेवा पूजा होती है. श्रावण के महीने में प्रति वर्ष यहां लाखों श्रृद्धालु सोने–चांदी के हिंडोले देखने आते हैं. मथुरा के विश्राम घाट के निकट ही असकुंडा घाट के निकट यह मंदिर विराजमान है.

श्रीकृष्ण मठ मंदिर, उडुपी:दक्षिण भारत में भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में श्रीकृष्ण मठ है. यह मंदिर कर्नाटक के उडुपी में है. उडुपी के श्रीकृष्ण मठ मंदिर की एक खासियत है. यहां भगवान कृष्ण की पूजा खिड़की के नौ छिद्रों में से की जाती है. मंदिर का निर्माण लकड़ी और पत्थर से किया गया है. मंदिर के करीब मौजूद तालाब के पानी में मंदिर का प्रतिबिंब दिखाई देता है. यहां जन्माष्टमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. श्रीकृष्ण मठ मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर बहुत ज्यादा भीड़ लगती है.

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जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा: भारत के चार धामों में से एक उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी मंदिर है. यहां भगवान कृष्ण बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं. मान्यता है कि द्वापर के बाद भगवान श्रीकृष्ण पुरी में निवास करने लगे थे. जगन्नाथ पुरी की वार्षिक रथ यात्रा दुनिया भर में मशहूर है. यहां भगवान कृष्ण के रथ को खींचने के लिए दूर दराज से भक्त आते हैं. तीन विशाल रथों की यात्रा निकाली जाती है, जिसमें सबसे आगे प्रभु बलराम, फिर बहन सुभद्रा और आखिर में जगत के नाथ भगवान श्री जगन्नाथ जी होते हैं. आप कृष्ण जन्माष्टमी या फिर रक्षाबंधन के मौके पर भी जगन्नाथ पुरी धाम जा सकते हैं.

पार्थसारथी मंदिर त्रिपलीकेन, चेन्नई:चेन्नई में श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर पार्थसारथी मंदिर त्रिपलीकेन स्थित है. इस मंदिर में भगवान विष्णु के चार अवतारों की पूजा होती है, जिसमें कृष्ण, राम, नृसिंह और भगवान वराह शामिल हैं. इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है. मंदिर की वास्तुकला भी अद्भुत है.

सांवलिया सेठ मंदिर, राजस्‍थान:सांवलिया सेठ मंदिर चित्तौड़गढ़ सॆ उदयपुर की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 28 किमी दूरी पर भादसोड़ा ग्राम में स्थित है. यह मंदिर चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से 41 किमी एवं डबोक एयरपोर्ट से 65 किमी की दूरी पर है. प्रसिद्ध सांवलिया सेठ मंदिर अपनी सुन्दरता और वैशिष्ट्य के कारण हर साल लाखों भक्तों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है. मंडफिया मंदिर कृष्ण धाम के रूप में चर्चित है. मंडफिया मंदिर देवस्थान विभाग राजस्थान सरकार के अन्तर्गत आता है. कालां​तर में सांवलिया सेठ मंदिर की महिमा इतनी फैली के उनके भक्त वेतन से लेकर व्यापार तक में उन्हें अपना हिस्सेदार बनाते हैं. मान्यता है कि जो भक्त खजाने में जितना देते हैं सांवलिया सेठ उससे कई गुना ज्यादा भक्तों को वापस लौटाते हैं. व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं.

श्रीनाथ जी मंदिर, नाथद्वारा, राजस्थान:राजस्थान किलों और विरासत के रूप में तो प्रख्यात है ही, यह कई धार्मिक संप्रदायों और उनके श्रद्धेय व पवित्र तीर्थ स्थलों का घर भी है. अरावली की गोद में बनास नदी के किनारे नाथद्वारा में ऐसा ही एक तीर्थ स्थल है. इस प्रमुख वैष्णव तीर्थस्थल पर श्रीनाथजी मंदिर में भगवान कृष्ण सात वर्षीय 'शिशु' अवतार के रूप में विराजित हैं. औरंगजेब भी मथुरा जिले में बाल रूप श्रीनाथजी की मूर्ति को तुड़वा नहीं पाया था. तब मेवाड़ के राणा द्वारा चुनौती स्वीकारने के बाद यहां गोवर्धनधारी श्रीनाथजी की मूर्ति स्थापित हुई और मंदिर बना.नाथद्वारा में स्थापित भगवान श्रीनाथजी के विग्रह को मूलरूप से भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है. राजसमंद जिले में स्थित नाथद्वारा के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक रूप से बहुत समृद्ध है. यह शहर अरावली पर्वतमाला के पास में स्थित है और बनास नदी के किनारे पर बसा हुआ है. नाथद्वारा, उदयपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. नाथद्वारा, भगवान श्रीनाथजी के मंदिर की वजह से देश—विदेश में प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है.

इस्कॉन मंदिर, बैंगलोर:राजाजीनगर में स्थित, बेंगलुरु का यह इस्कॉन मंदिर 1997 में बनकर तैयार हुआ था. ये मंदिर हिंदू देवी-देवताओं राधा और कृष्ण को समर्पित है और इसकी सुंदर वास्तुकला के लिए विशेष रूप से प्रशंसा की जाती है, जो रात के समय में और ज्यादा बढ़ जाती है. इस मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त आते हैं, यकीनन आप भी इस मंदिर की हर एक चीज से बेहद प्रभावित हो जाएंगे. इस मंदिर में दर्शन करने का समय सुबह 4:15 बजे से सुबह के 5:00 बजे तक है, तो वही फिर से ये मंदिर सुबह 7:15 बजे से दोपहर के 1:00 बजे तक खोला जाता है और शाम 4:00 बजे से रात के 8:30 बजे तक खुलता है.

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