रायपुर: कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. पिछले 2 साल कोरोना की वजह से कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भव्य तरीके से नहीं मनाया जा सका. लेकिन इस बार संक्रमण कम होने से कृष्ण जन्माष्टमी पर भव्य कार्यक्रम ऑर्गेनाइज किए गए हैं. जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बसे भारतीय पूरे आस्था व उल्लास से मनाते हैं. इस बार जन्माष्टमी का पर्व 19 अगस्त को मनाया जा रहा है. इस बार कृष्ण जन्म उत्सव के मौके पर रायपुर के कृष्ण मंदिरों में भव्य महाआरती, जलाभिषेक (Lord Krishnas Jalabhishek) के साथ साथ भव्य कार्यक्रम ऑर्गेनाइज किए गए हैं.
भगवान श्रीकृष्ण का होगा विशेष जलाभिषेक 7 नदियों के पानी से होगा जलाभिषेक:इस्कॉन यूथ फोरम डायरेक्टर तमल कृष्णा दास ने बताया "जन्माष्टमी निश्चित रूप से भारतवर्ष के सनातन धर्म वालों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है. 2 साल कोरोना के वजह से जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से नहीं मनाया गया. लेकिन इस बार बड़े ही धूमधाम से पर्व मनाने की तैयारी चल रही है. इस बार भगवान श्रीकृष्ण का विशेष महाअभिषेक होने वाला है. महाअभिषेक में भारत के प्रमुख 7 नदियों गंगा, जमुना, सरस्वती, कावेरी, सिंधु और नर्मदा से लाए गए जल से भगवान का जलाभिषेक किया जाएगा. इसके अलावा गोमूत्र, गोबर और विशेष प्रकार के जड़ी बूटियों का इस्तेमाल भी अभिषेक के दौरान किया जाएगा."
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युवाओं को वैदिक काल की सभ्यता समझाने होगा सांस्कृतिक कार्यक्रम:इस्कॉन यूथ फोरम डायरेक्टर तमल कृष्णा दास ने बताया " युवाओं के लिए कृष्ण जन्माष्टमी और भारत की वैदिक सभ्यता को समझाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे गए हैं. वैदिक काल से ही भगवान का अभिषेक किया जा रहा है. लोगों की जैसी परिस्थिति है लोग उस अनुसार भगवान का अभिषेक करते हैं. कुछ लोग आवाहन कर दूसरे लोगों से नदियों का जल अभिषेक करने के लिए मंगाते हैं लेकिन हम खुद नदियों के पानी को एकत्रित कर जलाभिषेक के लिए लाते है.
मंदिरों में मंत्रोच्चार से भगवान की मूर्ति बनती है अर्चा विग्रह: इस्कॉन यूथ फोरम डायरेक्टर तमल कृष्णा दास ने बताया "वैसे तो मूर्तियां बहुत जगह मिलती है. लेकिन मंदिरों में भगवान की जो मूर्तियां रहती हैं उन्हें मूर्तियां नहीं हम अर्चा विग्रह कहा करते हैं. भगवान की मूर्तियां अर्चा विग्रह तब बनती है जब मंत्रोच्चार से मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की क्रिया की जाती है. यह खास तरीके का विग्रह है. शास्त्र कहता है कि इस विग्रह में भगवान का एक अंग हर अंग के तरह काम करता है. इसको इस तरीके से समझा जा सकता है कि जब हम भगवान को प्रसाद ऑफर करते हैं, तो भगवान उसे मुंह से नहीं चखते, बल्कि आंखों से देखकर उसे चख लेते हैं. यानी भगवान का एक अंग सभी अंगों के समान काम करता है."