रायपुर:कोरोना संक्रमण का असर हर क्षेत्र में दिख रहा है. करीब तीन महीने से किए गए लॉकडाउन के दौरान कई त्योहार भी प्रभावित रहे. राजधानी रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल बड़े ही धूमधाम से रथयात्रा निकाली जाती थी. इतना भव्य आयोजन किया जाता था कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी इसमें शामिल होने पहुंचते थे, लेकिन इस साल रथ यात्रा की रौनक देखने नहीं मिली. मंदिर के पट बंद होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु माथा टेकने मंदिर पहुंचे.
राजधानी रायपुर में नहीं निकाली गई रथ यात्रा इस साल कोरोना के मद्देनजर प्रदेश में कहीं भी जगन्नाथ रथ यात्रा निकालने की अनुमति नहीं मिली, सिर्फ ओडिशा के पुरी में ही रथ यात्रा निकालने की परमिशन मिली. सुप्रीम कोर्ट ने तमाम गाइडलाइंस के साथ ही पुरी में रथ यात्रा निकालने की अनुमति दी है. इसके तहत सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य है.
श्रद्धालुओं ने बाहर से टेका माथा 'घर पर रहकर टेलीविजन से करें दर्शन'
मंदिर के ट्रस्टी पुरंदर मिश्रा ने बताया कि उन्हें इस बात का दुख है कि इस बार रथ यात्रा नहीं निकाली जा रही है. उन्होंने लोगों से घरों में रहने की अपील की और कहा कि घरों पर रहकर टेलीविजन के माध्यम से भगवान के दर्शन करें. उन्होंने कहा कि हर साल बड़े धूमधाम से जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा निकाली जाती थी, जिसे कोरोना के मद्देनजर इस साल रोकना पड़ा.
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बता दें कि पूरे देश में 8 जून से भक्तों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी गई है. मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर परिसर में 108 घड़ों के सुगंधित जल से पवित्र स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों के सामने हाथी के भेष में आते हैं, जिसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है. बुखार के कारण भगवान को पूरे शरीर में दर्द होता है. इसके बाद भगवान को सीधे जगमोहन के एकांत कमरे ले जाया जाता है. यहां दैत सेवक उनकी सेवा करते हैं और और 14 दिनों तक भगवान का गुप्त रूप से उपचार किया जाता है. ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर पुण्य स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को आषाढ़ माह की अमावस्या पर अगले पखवाड़े के लिए एकांत में भेज दिया जाता है. इस अवधि के दौरान चतुर्दशी मूर्ति (यानी भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बालभद्र, बहन देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन) को देखने की मनाही होती है.
भगवान के 14 दिन के उपचार के दौरान उनके लिए 10 जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाया जाता है और उन्हें चढ़ाया जाता है. इस दौरान भगवान को केवल फल, औषधीय जड़ी-बूटी और काढ़ा चढ़ाया जाता है और सभी अनुष्ठान गुप्त रूप से किए जाते हैं. उपचार पूरा होने तक चंदन की लकड़ी, चॉक, औषधियों, माड़ी और कढ़ाई अस्तर से कई अनुष्ठान किए जाते हैं. पखवाड़े के 14 वें दिन अमावस्या से एक दिन पहले भगवान अपने भक्तों के सामने प्रकट होने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसे नेत्रोत्सव कहा जाता है.