रायपुर : छत्तीसगढ़ विधानसभा में सुकमा के ताड़मेटला में आगजनी और नक्सल मुठभेड़ के मामले की न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट बुधवार को पेश की गई. इसमें कहा गया है कि स्वामी अग्निवेश पर हमला प्रायोजित नहीं था. इस पूरे मामले में बस्तर के तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी को एक तरह से क्लीनचिट दे दी गई है.
जस्टिस टीपी शर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय गठित आयोग ने ताड़मेटला, मोरपल्ली, तिम्मापुरम मुठभेड़ व अग्निकांड के अलावा दोरनापाल स्वामी अग्निवेश पर हमले की जांच की है. आयोग की 511 पेज की रिपोर्ट में यह कहा गया कि ग्राम तिम्मापुरम में पुलिस बल और नक्सलियों के बीच कई चरण में मुठभेड़ हुई. मुठभेड़ में दोनों पक्ष से गोलियां चलीं और गोले दागे गए. मुठभेड़ में नक्सली पुलिस बल पर भारी पड़ रहे थे. पुलिस बल का गोला-बारूद भी खत्म हो गया था. इसके बाद कोरबा बटालियन और सीआरपीएफ बल सहायता के लिए आगे आया था.
मुठभेड़ में पुलिस के तीन, नक्सलियों के एक सदस्य की हुई थी मौत
रिपोर्ट के अनुसार पुलिस-नक्सल मुठभेड़ में पुलिस बल के तीन सदस्य और नक्सलियों के एक सदस्य की मौत हुई. पुलिस बल के 8 सदस्य आहत हुए. घटना के समय तिम्मापुरम के 59 मकान जले थे. इसमें ग्राम तिम्मापुरम के एक किनारे का मकान पुलिस के यूजीवीएल से ग्रेनेड दागने से जला था. शेष मकान किसके जलाया, इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं.
यह भी पढ़ें : बिलासपुर हाईकोर्ट ने बारनवापारा मादा वन भैंसा मामले में केंद्र से मांगा जवाब, असम से लाये गए थे नर-मादा भैंसा
16 मार्च 2011 को ताड़मेटला में हुई थी पुलिस-नक्सल मुठभेड़
इसी तरह 16 मार्च 2011 को ताड़मेटला में पुलिस-नक्सल मुठभेड़ हुई थी. इसमें दोनों तरफ से गोलियां चलीं. घटना में ताड़मेटला की 160 मकान जल गए थे. इसमें ग्रामीणों की संपत्ति भी क्षतिग्रस्त हुई थी. मकान किसने जलाए थे, इस संबंध में स्वीकार करने योग्य कोई साक्ष्य नहीं है. इसी तरह मोरपल्ली घटना में भी 31 मकानों को आग हवाले कर दिया गया था. यह भी किसने जलाए, इसका कोई साक्ष्य नहीं है.
आयोग ने स्वामी अग्निवेश पर हमले की घटना में तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी को क्लीनचिट देते हुए कहा कि 26 मार्च 2011 को स्वामी अग्निवेश सुबह और दोपहर बाद दो बार ताड़मेटला जाने के लिए दोरनापाल तक गए. वहां उनका भीड़ ने विरोध किया. इस संबंध में आपराधिक मामला दर्ज किया गया. इसकी अग्रिम जांच सीबीआई कर रही है.
11 से 16 मार्च 2011 के बीच 250 वनवासियों के मकानों में आगजनी
बता दें कि अविभाजित दंतेवाड़ा जिले के कोंटा तहसील के ग्राम ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर में 11 से 16 मार्च 2011 के बीच 250 वनवासियों के मकानों को जलाने की घटना सामने आई थी. इसके दस दिन बाद 26 मार्च को प्रभावित गांव जा रहे स्वामी अग्निवेश (वर्तमान में दिवंगत) के काफिले पर सुकमा से 35 किलोमीटर दूर दोरनापाल में ग्रामीणों के एक समूह सलवा जुडुम समर्थकों ने हमला कर दिया था.
इन घटनाओं को लेकर तब काफी हंगामा मचा था. तीन गांवों में आगजनी और दोरनापाल में काफिले पर हमला इन चारों घटनाओं को मिलाकर टीएमटीडी नाम देते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार ने बिलासपुर हाइकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस टीपी शर्मा (वर्तमान में सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय विशेष न्यायिक जांच आयोग को जांच सौपी थी. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नक्सल प्रभावित क्षेत्र में किसी घटना की जांच के लिए गठित यह पहला आयोग था.
यह भी पढ़ें : मदनवाड़ा नक्सली हमला: छत्तीसगढ़ सीएम ने विधानसभा में पेश की जांच रिपोर्ट, जानें कौन है दोषी
11 साल की जांच में 277 गवाहों के बयान दर्ज
अति नक्सल संवेदनशील ताड़मेटला क्षेत्र में हुई ताड़मेटला आगजनी व मुठभेड़ कांड की जांच में पीड़ित पक्षकारों के असहयोग के कारण लंबे समय तक आयोग जांच शुरू नहीं कर पाया था. आयोग के अध्यक्ष टीपी शर्मा के कड़ा रुख अपनाने के बाद सुकमा जिला प्रशासन ने कुछ पीड़ितों को बयान के लिए राजी करके आयोग के समक्ष भेजा था. आयोग ने पीड़ित ग्रामीणों, पुलिस, अर्धसैनिक बल, पंचायत व कुछ सरकारी कर्मचारियों को मिलाकर कुल 277 लोगों के बयान दर्ज किये हैं.
बयान के लिए चिह्नित पीड़ित पक्ष के 109 सदस्य बच गए थे. उनका बयान आयोग दर्ज नहीं कर पाया. आयोग द्वारा परीक्षण कराने पर इनमें कुछ के पड़ोसी राज्य तेलंगाना व आंध्रप्रदेश में पलायन कर जाने और कुछ के दिवंगत हो जाने की बात सामने आई थी. आयोग में बयान दर्ज कराने वालों में सीपीआई के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम, स्वामी अग्निवेश और घटनाकाल के समय दंतेवाड़ा में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहे एसआरपी कल्लूरी आदि भी शामिल रहे.
सीबीआई पर हुआ था हमला
दोरनापाल से करीब 40 किलोमीटर दूर ताइभेटला क्षेत्र में हुई आगजनी की घटना की जांच के लिए प्रभावित गांवों में पहुंची सीबीआई की टीम पर अज्ञात लोगों ने हमला कर दिया था. इसके बाद सीबीआई को घटनास्थल पर मौजूद रहकर जांच करने की बजाय जगदलपुर में कैंप कर जांच पूरी करनी पड़ी थी. उल्लेखनीय है कि टीएमटीडी घटना के लिए पीड़ितों का एक वर्ग पुलिस व सलवा जुडूम से जुड़े लोगों को जिम्मेदार ठहराता रहा है, जबकि पुलिस इसे नक्सलियों की करतूत बताती रही है.