रायपुर:छत्तीसगढ़ में छोटे-बड़े मिलाकर हजारों उद्योग स्थापित हैं. जिनमें लाखों श्रमिक काम करते हैं, लेकिन इन उद्योगों में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जाती है. आए दिन औद्योगिक हादसों में श्रमिकों की मौत का लगातार जारी है. ऐसे मामलों में अब तक किसी भी बड़े उद्योग या उसके प्रबंधन के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है. वहीं जो कार्रवाई की गई वो भी सिर्फ मुआवजा तक ही सीमित रही.
छत्तीसगढ़ में औद्योगिक हादसे
विधानसभा की कार्यवाही के दौरान दी गई जानकारी के मुताबिक
साल 2013 से 2014 तक कुल 209 औद्योगिक संस्थानों में दुर्घटनाएं हुई, इन दुर्घटनाओं में 215 मजदूरों की मौत हुई और 139 मजदूर घायल हुए.
साल 2010 से 2014 तक प्रदेश में श्रम अधिनियम के उल्लंघन के आरोप में 9802 केस दर्ज किए गए.
दर्ज केसों की जांच करने के बाद नियोजकों के खिलाफ श्रम न्यायालयों में 9802 केस प्रस्तुत किए गए.
इन दर्ज केसों में 3793 मामलों का निराकरण किया जा चुका है और नियाजकों से 4 करोड़ से ज्यादा की राशि वसूल की जा चुकी है.
दिसंबर 2018 से लेकर 20 जून 2019 तक प्रदेश में औद्योगिक दुर्घटनाओं में 45 लोगों की मौत हुई है.
इन दुर्घटनाओं में पीड़ितों को तीन करोड़ 62 हजार 400 रुपए का मुआवजा दिया गया.
कई मामले रफा-दफा
यह वे आंकड़े हैं, जो सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हैं. इसके अलावा ऐसी कितनी ही औद्योगिक दुर्घटनाएं हुई हैं, जिसमें सैकड़ों श्रमिकों की मौत हुई और इतने ही घायल हुए. उन मामलों को दर्ज तक नहीं किया गया है. इस पर औद्योगिक संस्थानों ने गुपचुप तरीके से दबाव देकर या समझौता कर मामले को रफा-दफा कर दिया.
शिकायत करने से डरते हैं श्रमिक
आज भी श्रमिक अपने उद्योग या उसके प्रबंधन के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज करते हैं. उसे मालूम है कि यदि उसने किसी तरह की शिकायत की, तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है. ऐसे में उसके सामने अपना और अपने परिवार का पेट पालने की मुसीबत खड़ी हो जाएगी. यही कारण है कि श्रमिक कहीं भी कुछ भी कहने से बचता है.
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सुरक्षा के लिए नहीं मिलते उपकरण
इन फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मियों का कहना है कि उन्हें सुरक्षा के नाम पर सिर्फ दस्ताना ही मुहैया कराया जाता है. इसके अलावा हेलमेट समेत अन्य सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते हैं. ऐसे में उन्हें बोरा बांधकर अपनी सुरक्षा खुद करनी होती है.
हादसों पर कार्रवाई सख्त नहीं होती
वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई का कहना है कि औद्योगिक हादसों को कहीं ना कहीं दबा दिया जाता है. उसमें जो कार्रवाई होनी चाहिए वह नाममात्र की होती है. उन्होंने बताया कि कई मामलों में आपसी समझौता कर लिया जाता है, इस वजह से भी इन मामलों में उद्योगपतियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती है. इन मामलों में श्रम और उद्योग विभाग ही कार्रवाई करता है. ऐसे में पुलिस विभाग की कार्रवाई ना के बराबर होती है. यही वजह है कि ऐसे हादसों में उद्योगपति बच जाते हैं.
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हमारी सरकार आने के बाद हो रही है कार्रवाई- कांग्रेस
कांग्रेस का दावा है कि औद्योगिक दुर्घटना होने के बाद जिम्मेदारों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की जाती है. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता विकास तिवारी का कहना है कि जब से कांग्रेस सरकार आई है, तब से औद्योगिक हादसों को लेकर लगातार कार्रवाई की जा रही है. पीड़ितों को उचित मुआवजा भी दिया जा रहा है. विकास तिवारी ने बताया कि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के समय औद्योगिक हादसों को लेकर ऐसी कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने कहा कि कोरबा चिमनी हादसा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. न्याय के लिए आज भी पीड़ित भटक रहे हैं. विकास तिवारी ने कहा कि प्रदेश में होने वाले औद्योगिक हादसों में नियमित कार्रवाई की जानी चाहिए ओर वह हो रही है.
कांग्रेस सरकार उद्योगपतियों को दे रही है संरक्षण- बीजेपी
बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि औद्योगिक हादसों में कई लोगों की जान चली जाती है. उनके परिवार उजड़ जाते हैं, ऐसे में सरकार ओर उद्योगों को मिलकर काम करना चाहिए. इस बात का ध्यान रखा जाए कि उद्योगों में सुरक्षा संबंधी उपकरण लगे हों. इसके बाद भी यदि कोई हादसा हो जाता है तो प्रभावित परिवार को उचित मुआवजा समेत परिवार के एक सदस्य को नौकरी की व्यवस्था सरकार और उद्योग को प्रबंधन को करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि लेकिन देखने में आ रहा है कि ऐसी कोई कार्रवाई या कदम राज्य सरकार नहीं कर रही है. संजय श्रीवास्तव का तो यह तक कहना है कि प्रदेश में श्रम विभाग का अस्तित्व ही नहीं है. यही वजह है कि श्रम विभाग कोई कार्रवाई करता दिखाई नहीं दे रहा है. बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर उद्योगपतियों को सरंक्षण देने का भी आरोप लगाया है.
हादसे औद्योगिक सुरक्षा से लेकर श्रम कानूनों के पालन तक की हकीकत बयां करती है, लेकिन क्या फर्क पड़ता है ? बहुत फर्क पड़ा तो कोई जांच हो जाएगी, जिसकी लीपापोती कर रिपोर्ट की फाइलों में सालों तक धूल खाती रहेगी. इस तरह के हादसे एक के बाद एक होते रहे हैं. हर हादसे में औद्योगिक सुरक्षा की खामियां नजर आए तो साफ है कि इसकी रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते हैं.