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Vaikuntha Chaturdashi 2022 जानिए वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व,पूजा और मान्यता

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Published : Nov 5, 2022, 4:08 AM IST

Vaikuntha Chaturdashi 2022 हिंदू धर्म में हर माह किसी ना किसी त्यौहार को मनाया जाता है. दीपावली के बाद एक के बाद एक तीज और त्यौहार आते हैं. इन्हीं में से एक दिन है वैकुंठ चतुर्दशी का.इस दिन शिव और नारायण अर्थात भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन विष्णु की पूजा करने से वैकुंठ की प्राप्ति होती है.

Vaikuntha Chaturdashi 2022
जानिए वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व,पूजा और मान्यता

Vaikuntha Chaturdashi 2022 :कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यह व्रत किया जाता है. कार्तिक मास की शुक्ल की चतुर्दशी हिन्दू धर्म के लिए पवित्र दिन माना जाता है कि क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और शिव की विधिवत पूजा करके भोग लगायें. इसके बाद पुष्प, धूप, दीप, चन्दन से आरती उतारें.इस बार वैकुंठ चतुर्दशी 6 नवंबर रविवार को पड़ रही है.

विष्णु पूजा का विधान :कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के भक्त विष्णु सहस्रनाम, विष्णु के हजार नामों का पाठ करते हुए उन्हें एक हजार कमल चढ़ाते हैं. इस दिन विष्णु भक्तों द्वारा कार्तिक स्नान के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन को ऋषिकेश में गंगा किनारे, भगवान विष्णु को गहरी नींद से जागने के लिए दीप दान महोत्सव के रूप में मनाया जाता है.शाम के समय पवित्र गंगा नदी में दीपक जलाए जाते हैं. इसके साथ कई सांस्कृतिक उत्सव होते हैं.

इस दिन को भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्ति का पर्व के रूप में माना गया है.उत्तराखंड, श्रीनगर के कमलेश्वर मन्दिर में इस दिन को एक उपलब्धि का प्रतीक मानकर आज भी श्रृद्धालू पुत्र प्राप्ति की कामना से प्रतिवर्ष इस पर्व पर रात्रि में साधना करने हेतु मन्दिर में आते हैं.तो अनेक श्रृद्धालु दर्शन और मोक्ष के भाव से इस मन्दिर में आते हैं. जिससे उत्तराखण्ड के गढवाल क्षेत्र में यह मेला एक विशिष्ठ धार्मिक मेले का रूप ले चुका है.

शिव पूजा का विधान : उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर मन्दिर पौराणिक मन्दिरों में से है. इसकी अतिशय धार्मिक महत्ता है, किवदंती है कि यह स्थान देवताओं की नगरी भी रही है. इस शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन-चक्र प्राप्त किया तो श्री राम ने रावण वध के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिव जी को प्रसन्न किया और पापमुक्त हुए. इस अवसर पर उत्तराखंड के श्रीनगर में वैकुंड चतुर्दशी का मेले का आयोजन किया जाता है.

इसकी प्रकार महराष्ट्र में में मराठों द्वारा इस अवसर के लिए शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई द्वारा निर्धारित रिवाज के अनुसार और गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों द्वारा मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान विष्णु को विशेष सम्मान दिया जाता है.इस दिन भगवान शिव पर तुलसी के पत्ते और भगवान विष्णु पर बेल के पत्ते चढ़ाये जाते है. जो साधारण तौर पर नहीं किया जाता है.

बैकुंठ चतुर्दशी कथा : एक बार नारदजी बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास गये.विष्णुजी ने नादरजी से आने का कारण पूछा. नारदजी बोले, ‘‘हे भगवान् आपको पृथ्वीवासी कृपा निधान कहते हैं किन्तु इससे से केवल आपके प्रिय भक्त की तर पाते हैं.साधारण नर नारी नहीं.इसलिए कोई ऐसा उपाय बताईयें जिससे साधारण नर नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जाएं.’’ इस पर भगवान विष्णु बोले, ‘हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर नारी व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा.’ इसके बाद भगवान विष्णु ने जय-विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुले रखे जायें. भगवान ने यह भी बताया कि इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजा करेगा उसे बैकुण्ठधाम प्राप्त होगा.Vaikuntha Chaturdashi fasting

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