रायपुर : पापमोचनी एकादशी उत्तर और दक्षिण भारतीय कैलेंडर में एक ही दिन पड़ती है. पापमोचनी एकादशी सभी 24 एकादशियों में अंतिम एकादशी है. यह एकादशी होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच किसी एक दिन में आती है. पापमोचनी में दो शब्द हैं 'पाप' और 'मोचनी'. जिसका अर्थ है 'पाप' और 'हटाने वाला'. पापमोचनी एकादशी जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पापमोचनी एकादशी का व्रत पापों के नाश के लिए किया जाता है. पापमोचनी एकादशी के इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
क्या है पापमोचनी एकादशी का महत्व :पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्व भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को समझाया था.भक्तों को भगवान विष्णु के आशीर्वाद का आह्वान करने और पिछले जीवन के पापों को खत्म करने के लिए पापमोचनी एकादशी के दिन को शुद्ध हृदय से मनाने की आवश्यकता है. पापमोचनी एकादशी का उल्लेख भविष्योत्तर पुराण में भी है.
Papmochani Ekadashi 2023 : पापों से छुटकारा दिलाने वाली एकादशी के बारे में जानिए, इस दिन ऐसे रखें व्रत !
पापमोचनी एकादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने में चंद्रमा के अस्त होने के ग्यारहवें दिन आती है.पापमोचनी एकादशी सभी 24 एकादशी व्रतों में अंतिम एकादशी है. इस वर्ष पापमोचनी एकादशी 18 मार्च को शनिवार के दिन पड़ रही है.
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पापमोचनी एकादशी की कथा :ऋषि मेधावी भगवान शिव के प्रबल भक्त थे. वह चैत्ररथ के जंगल में कठोर साधना करता था. जो सुंदर फूलों से भरा हुआ था. भगवान इंद्र और अप्सराओं ने चैत्ररथ वन का विचरण किया था. अप्सरा, "मंजूघोषा" ने ऋषि मेधावी को लुभाने के लिए कई तरह की कोशिश की. मंजुघोषा ऋषि से कुछ मील दूर रहकर गाना गाने लगीं. उसने इतना सुंदर गाया कि भगवान कामदेव उत्तेजित हो गए. मंजूघोषा ने जब मेधावी ऋषि के आकर्षक शरीर को देखा तो वह वासना से व्याकुल हो उठी. फिर मोहक गायन शुरू कर दिया. कामदेव ने अपने शक्तिशाली जादुई धनुषों के माध्यम से मेधावी का ध्यान मनुघोष की ओर आकर्षित किया. ऋषि मेधावी ने अपना ध्यान बंद कर दिया और मंजूघोषा के आकर्षण में फंस गए.
ऋषि ने खोई पवित्रता : उन्होंने अपने मन की पवित्रता खो दी. वह बहुत देर तक उसके आकर्षण की ओर आकर्षित हुए. कई सालों तक वैवाहिक जीवन जीने के बाद मंजूघोषा की ऋषि में रुचि खत्म हो गई और उन्होंने उन्हें त्यागने का फैसला किया. जब मंजूघोषा ने मेधावी से उसे जाने देने के लिए कहा, तो उसे एहसास हुआ कि उसके साथ धोखा हुआ है. गुस्से में आकर मेधावी ऋषि ने उसे कुरूप डायन बनने का श्राप दे दिया.
कैसे मिली पाप से मुक्ति :मेधावी अपने पिता ऋषि च्यवन के आश्रम लौट आए. ऋषि च्यवन ने अपने पुत्र मेधावी को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. ताकि उनके सारे पाप नष्ट हो सके. मेधावी ने अपने पिता की सलाह पर भगवान विष्णु की भक्ति की. साथ ही साथ व्रत का पालन किया . मंजूघोषा ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत रखकर गलत कामों पर पछतावा करके पाप से मुक्ति पाई.
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