रायपुर:कन्यादान (importance of kanyadan) का सौभाग्य बहुत ही पुण्यशाली और सौभाग्यशाली लोगों को मिलता है. सभी दानों में इसे सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. विद्यादान, गौ दान और कन्यादान (kanyadan) महानतम दान माने गए हैं. कन्या का दान करना अर्थात ऋण से मुक्त होना है. जीवन में अनेक तरह के पाप और विकारों से मनुष्य इस दान के माध्यम से मुक्त हो जाता है. वास्तव में यह बहुत ही कार्य है. जिनके जीवन में कन्यादान का अवसर नहीं मिलता है. वह अनाथ आदि कन्याओं का कन्यादान कर यह सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं. शास्त्र इस धन को महादान के रूप में बताता है.
यह भी पढ़ें:विवाह मुहूर्त के सबसे बड़े और अहम पल कौन से हैं जानिए
कन्यादान का विशेष स्थान
अष्टकूट कुंडली (Ashtakoot Kundli) मिलाने के बाद शुभ मुहूर्त में विवाह के साथ पाणीग्रहण (panigrahan) के कार्यक्रम को संपन्न करना चाहिए. इस दान के समय जोड़े में बैठने का महत्व है अर्थात इस समय पति और पत्नी एक जोड़े के रूप में बैठे पोशाक गरिमामय और विवाह के अनुकूल होनी चाहिए. इस समय सर पर पगड़ी रखने का विधान है. माताएं गरिमा में सौंदर्य के साथ सिर ढककर इस कार्य को करती हैं.
इस विधि में विशेष मंत्रों का जाप किया जाना चाहिए. इस दान में कन्या को वर पर पूरे अधिकार और कर्तव्य भी मिलते हैं. कन्या, वर के जीवन में अर्धांगिनी के रूप में जानी जाती है. दोनों ही सप्तपदी में एक दूसरे को वचन प्रदान करते हैं और इन वचनों को प्रण और प्राण से निभाने का आश्वासन देते हैं.