रायपुर : राधाकृष्ण प्रेम के प्रतीक माने गए हैं. प्राचीन समय से ही धरती पर राधा और कृष्ण की प्रेम की कई कहानियां प्रचलित हैं. ऐसा माना जाता है कि भले ही राधा और कृष्ण का विवाह ना हुआ हो.लेकिन कृष्ण और राधा एक दूसरे के पर्याय थे. दोनों के बीच अथाह प्रेम था.इसलिए सदियों तक इनका निश्चल प्रेम अमर है.सावन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन राधाकृष्ण से संबंधित एक पर्व मनाया जाता है. जिसे झूलन यात्रा का पावन पर्व भी कहा जाता है. ये पर्व सावन माह की एकादशी से शुरु होकर पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन तक चलता है.
कहां-कहां मनाया जाता है पर्व ? :पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक इस पर्व को मनाने के लिए राधाकृष्ण की प्रतिमा बनाकर उनका श्रृंगार किया जाता है.इसके बाद दोनों को झूला झुलाया जाता है . राधा और कृष्ण के भक्त इकट्ठा होकर गीत संगीत के साथ उत्सव मनाते हैं. यह पर्व वृंदावन, मथुरा, पश्चिम बंगाल के मायापुर, ओडिसा के जगन्नाथ धाम में धूमधाम से मनाया जाता है.गुजरात के द्वारका में इस पर्व की छटा देखते ही बनती है.
''सावन की रिमझिम फुहारों के बीच राधाकृष्ण बहुत ही पवित्र दिखाई पड़ते हैं. इस पर्व में मुख्य रूप से भगवान के श्री वस्त्रों को रोजाना बदलने का विधान है. प्रसाद के रूप में विशेष प्रसादम की व्यवस्था की जाती है. राधाकृष्ण की प्रतिमा की स्थापना के बाद उन्हें झूला झुलाया जाता है.इस जगह पर कीर्तन और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है.'' पंडित विनीत शर्मा, ज्योतिषाचार्य