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इसलिए विशेष होता है पितृ पक्ष में कौवों का महत्व

पितृपक्ष (Pitripaksh)यानी कि श्राद्ध पक्ष(sradh paksh). इस पक्ष को श्राद्ध पक्ष इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि इस पक्ष में पितरों (Pitar)को पिंडदान (Pinddaan)कर तर्पण किया जाता है. इस पक्ष में कौवों (crow)का विशेष महत्व होता है. कहते हैं कि अगर पितर को भोजन अर्पित करते समय कौवा को दिया गया हिस्सा अगर वो ग्रहण कर ले तो पितर प्रसन्न होते हैं. वहीं, अगर कौवा अपना हिस्सा नहीं खाता तो ऐसा माना जाता कि पितर नाराज हैं.

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Published : Sep 19, 2021, 1:31 PM IST

Updated : Sep 20, 2021, 7:18 AM IST

importance of crows in pitrapaksha
इसलिए विशेष होता है पितृ पक्ष में कौवों का महत्व

रायपुरः पितृपक्ष (Pitripaksh)यानी कि श्राद्ध पक्ष(sradh paksh). इस पक्ष को श्राद्ध पक्ष इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि इस पक्ष में पितरों (Pitar)को पिंडदान (Pinddaan)कर तर्पण (tarpan)किया जाता है. इस पक्ष में कौवों (crow)का विशेष महत्व होता है. कहते हैं कि अगर पितर को भोजन अर्पित करते समय कौवा को दिया गया हिस्सा अगर वो ग्रहण कर ले तो पितर प्रसन्न होते हैं. वहीं, अगर कौवा अपना हिस्सा नहीं खाता तो ऐसा माना जाता कि पितर नाराज हैं.

शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों के अलावा देव, गाय, श्वान, कौए और चींटी को भोजन खिलाने की परंपरा है. जैसे गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है. ठीक वैसे ही पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप माने जाते हैं, उन्हें भोजन खिलाने का एक खास विधान है.

कौवा यमराज का प्रतीक

कहते हैं कि कौवा यमराज का प्रतीक माना जाता है.परम्परा तो ये भी है कि कौवों को पितृ पक्ष में आमंत्रित करते उन्हें भोजन खिलाया जाता है.कहा जाता है कि यदि कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लेता है, तो पितर तृप्त होते हैं.

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पितृ दूत होता है कौवा

शास्त्रों की मानें तो कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है. यदि पितरों के लिए बनाए गए भोजन को ये पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं. इसके साथ ही यदी कौआ सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है. कहते हैं कि व्य​क्ति जब शरीर का त्याग करता है और उसके प्राण निकल जाते हैं. तब वह सबसे पहले कौआ का जन्म पाता है.

कौवों को भगवान राम का मिला है खास वरदान

कहते हैं कि त्रेतायुग में एक बार एक कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी थी. तब भगवान राम ने तिनके का बाण चलाया, जिससे उसकी एक आंख फूट गई. इस पर उस कौवे को अपने किए का पश्चाताप हुआ और उसने भगवान राम से माफी मांगी. तब भगवान राम ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम को खिलाया गया भोजन पितरों को प्राप्त होगा. जिसके बाद से ही पितृपक्ष में कौओं को भी श्राद्ध के भोजन का एक अंश दिया जाने लगा.शास्त्रों के अनुसार माता सीता के पैर में चोंच मारने वाला कौआ देवराज इन्द्र का पुत्र जयन्त था. जिसने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था.

Last Updated : Sep 20, 2021, 7:18 AM IST

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