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Raipur: छत्तीसगढ़ की राजनीति में 'बस्तर' के आशीर्वाद से होता है राजतिलक !

छत्तीसगढ़ में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में, कांग्रेस ने अभी से लोगों को साधना शुरू कर दिया है. चुनावी साल होने की वजह से कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा छत्तीसगढ़ आ रही हैं. प्रियंका बस्तर में 13 अप्रैल को होने वाले महिलाओं के सम्मेलन में शामिल होंगी. उनका यह पहला बस्तर दौरा होगा. important of Bastar division in politics

important of Bastar division in politics of chhattisgarh
छत्तीसगढ़ की राजनीति में बस्तर

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Published : Apr 9, 2023, 7:18 PM IST

रायपुर: प्रियंका का यह दौरा बेहद खास माना जा रहा है. कहते हैं कि, राज्य में सत्ता की चाबी बस्तर है. यहां आदिवासियों को जिसने साध लिया, तो समझो सत्ता की चाबी मिल गई. हालांकि वर्तमान में बस्तर संभाग की 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. लेकिन, बीते कुछ दिनों से बस्तर में संघ समेत भाजपा सक्रिय नजर आ रही है. यही वजह मानी जा रही है कि, कांग्रेस बस्तर में महिलाओं के जरिए दोबारा सत्ता की चाबी तलाशने में जुटी है.

सत्ता की चाबी है बस्तर: छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग को सत्ता की चाबी माना जाता है. बीते चुनावों में गौर करें तो जिस भी पार्टी ने बस्तर में जीत हासिल की, राज्य में वही पार्टी सत्ता पर काबिज हुई है. वर्ष 1998 में कांग्रेस ने बस्तर में 11 सीटें जीती. उसके बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई. वहीं वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बस्तर में 8 सीटें जीतीं और सत्ता पर काबिज हुई. इसी तरह 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से 11 सीटें जीती और फिर से सत्ता हासिल की. पिछले विधानसभा चुनाव 2018 की बात करें, तो 2018 के विधानसभा चुनाव में बस्तर से बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई.

आदिवासी दबदबे वाला इलाका:छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल राज्य है. यहां की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. बस्तर संभाग में कुल 12 सीटें हैं, जिनमें 11 सीटें आदिवासी आरक्षित हैं. कहा जाता है कि बस्तर संभाग के आदिवासी मतदाता एकजुट होकर किसी भी पार्टी को समर्थन देते हैं. पूरे राज्य में इसका असर दिखाई देता है. यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए बस्तर बेहद अहम है. बस्तर संभाग की सीटें पर गौर करें, तो सिर्फ जगदलपुर ही सामान्य श्रेणी की सीट है. उसके बाद जगदलपुर, दंतेवाड़ा, चित्रकोट, बीजापुर, बस्तर, कोंटा, कांकेर, कोंडागांव, केशकाल, नारायणपुर, अंतागढ़ और भानुप्रतापपुर शामिल हैं.

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क्या कहते हैं जानकार:बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता कहते हैं कि, "छत्तीसगढ़ की राजनीति में बस्तर का अपना एक अलग ही महत्व होता है, क्योंकि यहां आदिवासी मतदाता हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी है और आदिवासी बहुल इलाका है. इसी वजह से छत्तीसगढ़ में जब भी पिछड़े इलाकों के डेवलपमेंट की बात होती है, उसमें बस्तर का ही नाम आता है. मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ में बस्तर को विकास का पैमाना माना जाता है. राज्य में कोई भी सरकार हो, चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, वो बस्तर से ही अपने मिशन की शुरुआत करते हैं. बस्तर के विकास को ही प्रदेश का एक मानक बनाकर प्रस्तुत करते हैं."

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