रायपुर: मई में भीषण गर्मी पड़ रही है. भीषण गर्मी होने के साथ ही तेजी से आर्द्रता भी गिर रही है. 21 साल पहले यानी 2001 अप्रैल मई में आर्द्रता 25 फीसदी के आस पास रहती थी, वह इन महीनों में गिरकर 12 से 16 फीसदी तक नीचे उतर रही है. यह बात पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की स्टडी में सामने आया है. रसायनविद इस स्थिति को बेहद खतरनाक मानते हैं. आर्द्रता कम होने से भूमि की सतह में वाष्पन तेजी से बढ़ता है. जमीन में नमी कम हो जाती है. जिसकी वजह से फसलों का पैदावार प्रभावित होता है.
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आर्द्रता कम होना चिंता का विषय: पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में रसायन अध्ययन शाला में वायुमंडल में कार्बन को लेकर साल भर स्टडी की गई है. विश्वविद्यालय में रसायन अध्ययन शाला के एचओडी प्रोफेसर शम्स परवेज कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट के लिए हमने तीन जगहों को चिन्हांकित किया था. शहरी क्षेत्र में रायपुर, औद्योगिक क्षेत्र में भिलाई और क्लीनर क्षेत्र के तौर पर धमतरी के एक गांव को लिया था. उसमें हमने वायुमंडल में कार्बन की मात्रा पर अध्ययन किया. जिसमें ऑर्गेनिक कार्बन के बढ़ने से तेजी से आर्द्रता के गिरने की जानकारी हुई. राज्य गठन के समय आर्द्रता 25 फीसदी तक थी, लेकिन अब 12 से 16 फीसदी तक आर्द्रता गिर गई है, जो बेहद ही चिंता का विषय है.
तेजी से कम हो रही आर्द्रता
आर्द्रता कम होने से भूमि का सतह तेजी से सूखता है:रसायन विशेषज्ञों की माने तो आर्द्रता कम होने से वाष्पन तेजी से बढ़ता है. वाष्पन बढ़ने से भूमि की सतह पर जल का स्तर सूखने लगता है. जिससे तालाब, नदियों के पानी सूख जाते हैं. खेती पर भी इसका खासा प्रभाव देखने को मिलता है. क्योंकि पानी की कमी होने से जमीन का पोषक तत्व भी कम हो जाता है. जिसका असर फसल की क्वालिटी पर भी पड़ता है. ऐसे में निश्चित ही किसानों के लिए भी आर्द्रता का गिरना नुकसान दायक साबित हो सकता है.
क्या है कारण समझिए ?:प्रो. परवेज कहते हैं कि वायुमंडल में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ने के कई कारण हैं. वाहनों से निकलने वाला धुआं, कचरा जलाना, फसल की ठोंठ को जलाना, सिगड़ी जलाना, फैक्ट्रियों में खराब क्वालिटी के कोयले का उपयोग शामिल है. इसमें उद्योगों की सहभागिता 20 से 30% ही है. वहीं घरों में जलने वाले चूल्हे से 20 से 28 % ऑर्गेनिक कार्बन निकलता है. आर्द्रता को तेजी से गिरने में मदद करता है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में स्टडी साल भर तक चली थी. रिसर्च पेपर एनवायरमेंटल जियोकेमेस्ट्री एंड हेल्थ जर्नल में प्रकाशित भी हुई है. स्टडी वर्ष 2016 सितंबर से 2017 दिसंबर तक की गई थी. रिपोर्ट 2018 में प्रकाशित हुई है.
आर्द्रता में कमी होने का दुष्प्रभाव
- भूमि की सतह में वाष्पन बेहद तेजी से बढ़ता है.
- भूजल स्तर बेहद नीचे चला जाता है.
- फसलों की सही मात्रा में नमी नहीं मिलने पर पैदावार कम हो जाती है.
- सतही जल स्रोत सूखने लगते हैं.