क्या वोटरों को प्रभावित करती है जुमलेबाजी रायपुर:छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव है. चुनाव के दौरान हर राज्य में जुमले का चलन देखने को मिलता है. प्रदेश में इस बार भी चुनाव से पहले जुमलेबाजी सुनने को मिल रही है, जैसे- अबकी बार मोदी सरकार, अबकी बार 75 पार, भूपेश है तो भरोसा है, काका अभी जिंदा है, चावल वाले बाबा, बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार कांग्रेस सरकार. ऐसे कई जुमले हैं, जिसे बार-बार नेता जनता के सामने दोहरा कर मतदाताओं को प्रभावित करते हैं.
ऐसे जुमलों का वोटरों पर क्या असर पड़ेगा, लोगों के मन को जुमलों के सहारे कैसे नेता जीत पाएंगे, क्या चुनाव में जुमलेबाजी से कोई खास असर पड़ेगा, क्या जुमलों से वोटबैंक बढ़ाया जा सकता है, ऐसे कई सवाल हैं. आइए इस पर कांग्रेस, भाजपा और मनोवैज्ञानिक से समझते हैं.
क्या कहते हैं कांग्रेस के नेता: कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि "भूपेश है तो भरोसा है...यह कोई जुमला नहीं बल्कि यह जनता का भरोसा है. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने 36 बिंदुओं का जन घोषणा पत्र जारी किया था. उसमें से शपथ लेने के तत्काल बाद किसानों के कर्ज माफी का वादा भूपेश सरकार ने पूरा किया. अन्य घोषणाओं को भी सरकार ने पूरा किया है."
भाजपा पर जुमलेबाजी का आरोप:धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि "प्रदेश की जनता जानती है कि भूपेश है तो भरोसा है. जुमला सुनाना, अफवाह फैलाना और गुमराह करना भाजपा का काम है. महंगाई, बेरोजगारी, गिरती अर्थव्यवस्था, सरकारी कंपनियों को बेचना, ये सब जुमलेबाजी की निशानी है. कांग्रेस जो कहती है वो करती है. 'चाउर वाले बाबा' जुमला था क्योंकि जो गरीबों को चावल मिलना चाहिए था, उस चावल में 20 लाख फर्जी राशन कार्ड बना कर रमन सरकार ने 36 हजार करोड़ का घोटाला किया."
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क्या कहते हैं भाजपा के नेता: भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गौरी शंकर श्रीवास का कहना है कि "आजादी के बाद एक नारा बहुत प्रचलित हुआ था 'जात पर न पात पर मोहर लगेगी हाथ पर', लेकिन उसके बाद से ही लगातार जात और पात पर ही राजनीति होती आई है. कांग्रेस ने गरीबी हटाने की बात कही थी, लेकिन गरीबों को ही हटा दिया गया. यदि जुमलेबाजी की शुरुआत किसी ने की है तो वह कांग्रेस ही है."
भूपेश सरकार ने तोड़ा है भरोसा-भाजपा:गौरीशंकर ने कहा कि "छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा गरवा घुरवा अउ बारी. यह योजना किस स्थिति में है, यह सभी देख रहे हैं. भूपेश है तो भरोसा है, लेकिन भूपेश ने भरोसा तोड़ा है. जुमले की बात की जाए तो इसका प्रभाव कुछ हद तक वोटरो पर जरूर पड़ता है. लेकिन चुनाव में मुख्य विषय मुद्दे होते हैं. आम लोग, किसान और युवाओं से जुड़े मुद्दे रहते हैं. मुद्दे से जुड़ी राजनीति होती है. दम उसी में होता है जिस पर आम जनता मुहर लगाती है."
जानिए क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक:मनोवैज्ञानिक जगदीश आडवाणी का कहना है कि "जब तक जुमलों में देश या स्थानीय मुद्दों को शामिल नहीं किया जाए, तब तक जुमला आम जनता पर प्रभाव नहीं डालता है. वैसे तो जुमलो का खास प्रभाव लोगों के मन मस्तिष्क पर नहीं पड़ता है, लेकिन इन जुमलों में यदि देश और स्थानीय मुद्दों को शामिल कर लिया जाए, तो जरूर यह लोगों को प्रभावित कर सकता है."
जुमलेबाजी पर चुनाव को लेकर सभी की राय अलग है. जहां एक ओर भाजपा कांग्रेस को जुमलेबाज कह रही है, तो वहीं कांग्रेस भाजपा पर जुमलेबाजी का आरोप लगा रही है. हालांकि मनौवैज्ञानिक का कहना है कि अगर लोगों की समस्याओं से और खास चुनावी मुद्दों से संबंधित जुमला हो तो इससे मतदाताओं पर प्रभाव पड़ सकता है.