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कृष्ण जन्माष्टमी 2021: कहां कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी?

आज पूरे देश में जन्माष्टमी की धूम है. भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथूरा में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के अधिकांश मंदिरों में जन्माष्टमी की रौनक देखते ही बनती है. आईये जानते हैं कि कहां कैसे जन्माष्टमी मनाई जाती है.

Krishna Janmashtami 2021
कृष्ण जन्माष्टमी 2021

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Published : Aug 30, 2021, 3:16 PM IST

रायपुर: आज पूरे देश में जन्माष्टमी की धूम है. मंदिरों को दूल्हन की तरह सजाया गया है. घर-घर भव्य झांकियां सजे हैं और कृष्ण जन्मोत्सव को लेकर उत्साह है. नटखट कान्हा के जन्मदिन के लिए कई महीने पहले से ही तैयारियां तेज हो गईं थीं. इस खास दिन लोग व्रत रखते हैं और रात के समय कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं. वैसे तो कृष्ण जन्माष्टमी देश विदेश में भी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. लेकिन सबसे ज्यादा यदि इसका महत्व है तो वह उत्तर प्रदेश के मथुरा वृंदावन में मनाए जाने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का ही है.

मथुरा की कृष्ण जन्माष्टमी

मथुरा की पावन धरती भगवान को अति प्रिय है. हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्ध पुराण श्री मद् भागवत में मथुरा के प्रति कृष्ण के प्रेम को दर्शाया गया है. यहां भगवान ने स्वयं अवतार लेकर मथुरावासियों को कंस के अत्याचारों से मुक्त कराया था. कई लीलाएं की, धर्म की स्थापना की. माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का वंदन करने के साथ ही यदि मनुष्य मथुरा नगरी का नाम तक ले ले तो उसे भगवान के नाम के उच्चारण का फल मिलता है.

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मथुरा के कण कण में प्रभु का नाम है क्योंकि कृष्ण ने यहां पूरा बचपन बिताया है गायें चराई हैं. माखन चुराया है. रास रचाया है और न जाने कितने मनुष्यों से लेकर राक्षसों तक का उद्धार किया है. ऐसे में इस धरती की महत्वता और भी बढ़ जाती है. मथुरा में ऐसे स्थान हैं जहां आप कृष्ण को हर पल अपने पास महसूस करेंगे.

गुजरात की कृष्ण जन्माष्टमी

पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी भक्ति भाव के साथ मनाई जा रही है. भक्त भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए मंदिर पहुंच रहे हैं. जन्माष्टमी का उत्साह हर एक में भक्त के लिए मायने रखता है.

भालका तीर्थ क्षेत्र सोमनाथ के पास भालका तीर्थ है, जहां कृष्ण ने अपने जीवन को हरे रंग में लपेटा और अपनी अंतिम सांस ली. प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण सोमनाथ महादेव के अनन्य भक्त थे. जहां से भगवान कृष्ण द्वारकाधीश गए थे, वे सोमनाथ महादेव के दर्शन करने आते थे. भालका तीर्थधाम शहर में स्थित है. जिस स्थान पर एक शिकारी द्वारा भालू को मारा गया था. उस स्थान से भूमि को भालका तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. यहां देश-दुनिया से सैलानी कृष्ण के दर्शन करने आते हैं. महाभारत युद्ध में कौरवों की हार के बाद, गांधारी ने भगवान कृष्ण को श्राप दिया कि यादव लड़ेंगे और अंदर ही मर जाएंगे. गुजरात की जन्माष्टमी देश में सबसे जुदा जन्माष्टमी है.

ओड़िसा की कृष्ण जन्माष्टमी

आज पवित्र जन्माष्टमी है. भाद्रव के कृष्णपक्ष महीने के आठवें दिन को भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. भक्तों का कहना का जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं. इस शुभ दिवस पर राजधानी के इस्कॉन मंदिर में भी चहल-पहल है. राज्याभिषेक के बीच, भक्त मंदिर के बाहर राधाकृष्ण के दर्शन करते हैं.

राजधानी भुवनेशवर में पिछले 23 दिनों से सभी मंदिर खुले हैं. संक्रमण और भीड़ को देखते हुए भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया है. नतीजतन, भक्त बाहर खड़े होकर राधाकृष्ण के दर्शन करते हैं. यह सच है कि भगवान को साइड से न देख भक्त मायूस हैं. लेकिन बाहर से भगवान के द्वार को देख भक्त काफी खुश हैं. वहीं कीर्तन और भजनों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है.

मध्य प्रदेश की जन्माष्टमी

भाद्रपद मास की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. सभी मंदिरों सहित तमाम घरों में भी यह उत्सव बड़े उत्साह से मनाया जाता है. हालांकि, कोरोना महामारी के चलते इस बार उत्सव का रंग कुछ फीका जरूर है क्योंकि गली-मोहल्ले व चौक-चौराहे पर होने वाला मटकी फोड़ आयोजन कोरोना गाइडलाइन की वजह से नहीं हो पा रहा है.

बांके बिहारी मंदिर में लड्डू गोपाल का हर साल जन्मोत्सव (Shri Krishna Janmashtami 2021) बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, यहां पिछले 100 सालों से परंपरा चली आ रही है, जहां प्रभु के जन्म होते ही हर साल मंदिर में कुंडली बनाई जाती है. कहा जाता है कि हर साल नक्षत्र और लगन बदल जाते हैं, इसलिए जन्म कुंडली में भी परिवर्तन देखने को मिलता है, जिसे भक्तों को जन्माष्टमी के अगले दिन सुनाया जाता है, जन्म कुंडली में गृह इत्यादि की भी जानकारी दी जाती है.

जन्मोत्सव मनाने की सभी मंदिरों और समाज-संस्था-संगठनों की अपनी-अपनी परंपरा है. तलैया चौबदापुरा स्थित करीब 700 वर्ष से अधिक पुराने श्री बांके बिहारी मार्कण्डेय मंदिर की भी अपनी परंपरा है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के बाद भगवान की जन्म कुंडली बनाई जाती है, ये परंपरा करीब 100 सालों से चली आ रही है और प्रभु का हर बार नामकरण संस्कार होता है, जहां प्रभु के हर बार नक्षत्र के अनुसार नए-नए नाम रखे जाते हैं.

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