रायपुर:होली के 8 दिन पहले से ही होलाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होलाष्टक से होली की तैयारियां शुरू हो जाती है. होली प्रेम और रंगों का त्यौहार है. इस शुभ दिन से ही वृंदावन की भूमि पर होली का पर्व प्रारंभ हो जाता है. बरसाने वाली होली विश्व प्रसिद्ध माना गया है. होली पर शुभ दुर्गा अष्टमी का पावन पर्व है. आज के दिन माता दुर्गा की पूजा उपासना और व्रत किया जाता है. होलाष्टक होने की वजह से कोई नया या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. बल्कि शांतिपूर्वक व्रत, उपासना, मंत्र, जाप, योग, साधना और ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है.
दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा चालीसा, दुर्गा सहस्त्रनाम, दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करने का विधान है. मां दुर्गा जी की आरती विधान पूर्वक गाया जाना चाहिए. इस शुभ दिन माता दुर्गा को पीले फूल आदि चढ़ाए जाते हैं और व्रत उपवास कर मां दुर्गा के प्रति आस्था व्यक्त की जाती है.
द्वापर युग से चली आ रही लठमार होली
नंदग्राम में लठमार होली की परंपरा द्वापर युग से ही मनाई जा रही है. इस दिन लट्ठमार होली को प्रेम उत्साह प्रीति और मंगल रूप में मनाया जाता है. इस दिन से फाग गीत गाने ढोल धमाकों के बीच बरसाने में होली मनाई जाती है. इस दिन ग्वाल गोपियों के साथ होली का पर्व मनाया जाता है. द्वापर युग से ही श्री कृष्णा ग्वालों के साथ गोपियों के बीच जाकर हंसी-ठिठोली और नृत्य आदि के बीच होली मनाते थे. गोपियां, ग्वालों को लट्ठ मारकर स्वागत करती थी, ग्वाल ढाल के माध्यम से अपने सिर की रक्षा करते थे.यह एक प्रेम स्नेह और प्रीति का ही रूप था.
आज भी बरसाने में परंपरा कायम
गोपियां अपने प्रेम को हंसी ठिठोली के माध्यम से प्रकट करती थी. सारा दिन उत्साह के बीच मनाया जाता था. बरसाने में आज भी यह परंपरा कायम है. बरसाने को ही माता राधा रानी का जन्म स्थान माना गया है. द्वापर काल में नंद ग्राम से भगवान कृष्ण अपने सैकड़ों साथियों के साथ माता राधा रानी से मिलने और होली मनाने जाया करते थे. आज भी इस स्थान पर दूसरे देश से हजारों लोग पहुंचते हैं और माता राधा रानी और कृष्ण जी का आशीर्वाद होली खेलकर प्राप्त करते हैं. होली खेलने वाले को होरियारा कहा जाता है. आज भी युवती और स्त्रियां लट्ठ से ही पुरुषों का स्वागत करती है. और पुरुष ढाल रूपी कवच से अपने सिर की रक्षा करते हैं . यह पर्व रोहणी नक्षत्र प्रीति योग और वृषभ राशि में मनाया जाता है.