रायपुर: चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. इस मौके पर ETV भारत आपको रायपुर के प्राचीनतम महामाया मंदिर के इतिहास से रूबरू करवा रहा है. रायपुर के इस सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. ये मंदिर हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र है.
हैहयवंशी राजाओं ने छत्तीसगढ़ में 36 किले बनवाए थे. हर किले की शुरुआत में मां महामाया का मंदिर बनवाया था. 36 गढ़ में से एक गढ़ रायपुर हुआ करता था. रायपुर में ही पुरानी बस्ती में महामाया मंदिर स्थित है. इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. जहां मां महामाया महालक्ष्मी के रूप में दर्शन देती हैं. मंदिर में मां महामाया और समलेश्वरी देवी विराजमान हैं. तांत्रिक पद्धति से बने इस मंदिर में की बेहद मान्यता है और दूर-दूर भक्त यहां दर्शन करने पहुंचते हैं.
तीन देवियां विराजमान
मंदिर के गर्भगृह की निर्माण शैली तांत्रिक विधि की है. मंदिर के गुंबद में अंदर की ओर श्रीयंत्र की आकृति बनी हुई है. यहां के पुजारी ने बताया कि मां महामाया देवी, मां महाकाली के रूप में यहां विराजमान है. सामने मां सरस्वती के रूप में मां समलेश्वरी देवी मंदिर में विद्यमान हैं. इस तरह यहां माता महाकाली, महासरस्वती और मां महालक्ष्मी तीनों विराजमान है.
दरवाजे के सीधे दिखाई नहीं देती प्रतिमा
मंदिर का निर्माण हैहयवंशी राजा मोरध्वज ने कराया था. बाद में भोसला राजवंशी सामन्तो और अंग्रेजी सल्तनत ने भी इस मंदिर की देखरेख की. मां महामाया मंदिर से जुड़ी बहुत सी किवदंतियां हैं. बताया जाता है कि एक बार राजा मोरध्वज सेना के साथ खारून नदी तट पर भ्रमण करने गए. वहां उन्हें मां महामाया की प्रतिमा दिखाई दी. राजा जब करीब पहुंचे राजा को सुनाई दिया कि मां उनसे कुछ कह रही हैं. मां ने कहा कि वे रायपुर नगर के लोगों के बीच रहना चाहती हैं. राजा ने माता की बात सुनते हुए पुरानी बस्ती में मंदिर का निर्माण कराया. उस दौरान मां ने राजा से कहा था कि वह उनकी प्रतिमा को अपने कंधे पर रखकर मंदिर तक लेकर जाएं. रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखे नहीं. अगर प्रतिमा को कहीं रखा तो वे वहीं स्थापित हो जाएंगी.