रायपुर:छत्तीसगढ़ के सिहावा में स्थित सप्त ऋषियों के आश्रम में श्रृंगी ऋषि के आश्रम का अपना एक अलग ही महत्व है. श्रृंगी ऋषि के आश्रम का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है. श्रृंगी ऋषि के आश्रम के पास से ही महानदी का उद्गम स्थल भी है. जो छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी मानी जाती है. दंडकारण्य का प्रवेश द्वार सिहावा ना केवल अपनी वन और खनिज संपदा के कारण प्रसिद्ध है. बल्कि अपनी ऐतिहासिकता और पौराणिकता के कारण भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सिहावा को पर्यटन क्षेत्र में शामिल किया गया है.
श्रृंगी ऋषि के यज्ञ से दशरथ के घर में जन्मे थे 4 पुत्र:पुरातत्वविद एवं इतिहासकार हेमु यदु ने बताया कि "छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिणकौशल है. त्रेता युग में इसे लोग दक्षिणकौशल के नाम से जानते थे. रामायण काल की बात करें तो सबसे प्रमुख ऋषियों में श्रृंगी ऋषि का नाम आता है. ऐसी मान्यता है कि श्रृंगी ऋषि ने दशरथ के लिए कामयेष्ठी यज्ञ किया था. श्रृंगी ऋषि के द्वारा किए गए इस यज्ञ के माध्यम से दशरथ के पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न पैदा हुए थे."
"श्रृंगी ऋषि के पिता का नाम विभांडक ऋषि था. श्रृंगी ऋषि के पिता विभांडक ऋषि ने जब तप किया था, उस दौरान इंद्रदेव की सत्ता भी हिल गई थी. जिसके बाद इंद्रदेव ने विभांडक ऋषि की तपस्या को भंग करने के लिए उर्वशी नाम की अप्सरा को भेजा था. जिसके बाद अप्सरा उर्वशी और विभांडक ऋषि का विवाह हो गया, और उससे उत्पन्न हुए पुत्र का नाम श्रृंगी रखा गया. आखिर श्रृंगी ऋषि का नाम श्रृंगी ऋषि क्यों पड़ा इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि श्रृंगी ऋषि के सिर पर एक उभार था, जो सिंह के समान था इसलिए इनका नाम श्रृंगी ऋषि पड़ा."