छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

rani avantibai jayanti 2023 : मुट्ठी भर सेना से अंग्रजों को चटाई थी धूल, वीरांगना रानी अवंतिबाई की वीरगाथा - वीरांगना रानी अवंतिबाई

अंग्रेजों के अत्याचार और गुलामी से मुक्त होने के लिए वर्ष अट्ठारह सौ सत्तावन में देश में पहली बार आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंका गया था. इस लड़ाई में मध्य प्रदेश के मंडला की महारानी वीरांगना रानी अवंतिबाई का भी महत्वपूर्ण योगदान है.इस क्रांति की लड़ाई में वीर रानी अवंतिबाई की शहादत को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है.

rani avantibai jayanti 2023
वीरांगना रानी अवंतिबाई की वीरगाथा

By

Published : Feb 23, 2023, 8:49 PM IST

रायपुर : वीरांगना रानी अवंतिबाई ने अंग्रेज सेना से लोहा लिया था. अंग्रेजों के साथ लड़ाई में 20 मार्च 1858 को रानी अवंतिबाई शहादत को प्राप्त हुईं थीं. उनकी स्मृति में ही अखिल भारतीय लोधी महासभा हर साल 20 मार्च को रानी वीरांगना अवंती बाई को श्रद्धांजलि अर्पित करता है.मध्यप्रदेश में 16 अगस्त 1831 को मनकेहणी,जिला सिवनी के जमींदार राव जुझार सिंह के वीर बालिका अवंतिबाई का जन्म हुआ.रानी अवंती बाई ने अपने बचपन से ही तलवारबाजी, घुड़सवारी की कला में महारथ हासिल की थी.

विक्रमादित्य से हुआ था रानी का विवाह : वीरांगना की जैसे-जैसे आयु बढ़ती गई वैसे वैसे उनकी वीरता और शौर्य की चर्चा चारों दिशाओं में फैलने लगीं. इसी बीच पिता जुझार सिंह ने रानी अवंती बाई के विवाह का प्रस्ताव अपने सजातीय रामगढ़, मण्डला के राजपूत राजा लक्ष्मण सिंह के पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के लिए भेज दिया. विक्रमादित्य ने रानी से विवाह प्रस्ताव को स्वीकारा.विवाह के कुछ साल बाद राजा लक्ष्मण सिंह का स्वर्गवास हो गया. पिता की मृत्यु के बाद राजकुमार विक्रमादित्य सिंह ने राजपाठ संभाला. साथ में रानी अवंती बाई रामगढ़ के दुर्ग में अपने दो पुत्रों अमान सिंह और शेर सिंह के साथ जीवन बिताने लगीं. लेकिन कुछ समय बाद विक्रमादित्य सिंह का स्वास्थ्य भी क्षीण होने लगा और उनकी मौत हो गई.

Bhai Dooj after Holi festival क्यों होली के बाद मनाया जाता है भाईदूज

अंग्रेजों से अपमान का बदला लेने की ठानी :एक तरफ रानी अपने पारिवारिक हालातों में व्यस्त थीं. तो दूसरी तरफ लार्ड डलहौजी हड़प नीति के जरिये तेजी से साम्राज्य विस्तार कर रहा था. डलहौजी की नजर रानी के रामगढ़ पर थी. डलहौजी ने रामगढ़ को अपना निशाना बनाया और पूरी रियासत को "कोर्ट ऑफ वार्ड्स" के अधीन कर लिया. रामगढ़ राजपरिवार अंग्रेजी पेंशन पर आश्रित हो गया. लेकिन बेबस रानी महज अपमान का घूंट पीकर सही समय की प्रतीक्षा करने लगी और यह मौका हाथ आया 1857 की क्रांति में.जहां रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ सेना को एकजुट किया और उनसे लोहा ले लिया.20 मार्च, 1858 का दिन था.इस दिन अपनी मुट्ठी भर सेना से रानी ने अंग्रेजों को पानी पिला दिया.लेकिन किसी के साथ ना देने के कारण रानी ने अपनी ही कटार से अपना जीवन समाप्त कर स्वाधीनता का सौदा नहीं किया.

ABOUT THE AUTHOR

...view details