हसदेव में पेड़ों की कटाई के विरोध में युवक कांग्रेस का हल्ला बोल
Hasdeo forest Issue छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य मामले को लेकर राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर अडानी को संरक्षण देने का आरोप लगाया है. युवक कांग्रेस ने आज रायपुर में पीएम मोदी, अडानी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. प्रदर्शनकारियों ने हसदेव जंगल की कटाई पर तत्काल रोक लगाने की मांग रखी है. Chhattisgarh News
रायपुर: छत्तीसगढ़ के हसदेव में पेड़ों की कटाई का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. बुधवार को राजधानी रायपुर में युवक कांग्रेस ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ प्रदर्शन किया. इस दौरान कांग्रेसियों ने भाजपा सरकार पर अडानी को संरक्षण देने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि भाजपा की सरकार बने 15 दिन हुए हैं और हसदेव की जंगल की कटाई फिर से शुरू कर दी गई है.
हसदेव में पेड़ों की कटाई बैन करने की मांग: रायपुर के जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष विनोद कश्यप ने बीजेपी पर हसदेव के जंगल को समाप्त करने की साजिश करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, "प्रदेश में 15 दिन पहले भाजपा की सरकार बनी है और हसदेव जंगल की कटाई शुरू कर दी गई है. हसदेव जंगल को समाप्त करने की साजिश भारतीय जनता पार्टी कर रही है. अडानी को संरक्षण दे रही है.
"पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने हसदेव में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी थी. लेकिन सरकार बदलते ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जंगलों को अंधाधुंध काटना शुरु कर दिया है. अब तक लगभग 50 हजार पेड़ काटे जा चुके हैं." - विनोद कश्यप, जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष, रायपुर
सीएम साय और पीएम मोदी का फूंका पुतला: युवा कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने राजधानी रायपुर के बूढ़ातालाब धरनास्थल पर प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का पुतला फूंका. इस दौरान पुलिस ने आनन फ़ानन में प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की. पुतला दहन करने के बाद युवा कांग्रेस कार्यकर्ता काफी देर तक बीजेपी सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते रहे.
क्या है हसदेव मामला: छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र है. इस वन क्षेत्र में कोयला के करीब 23 भंडार है. छत्तीसगढ़ में कोरिया से लेकर कोरबा जिला तक कई खदानों से कोयला निकाला जा रहा है. लेकिन हसदेव में कोयला खदानों के आवंटन और खनन का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं. हसदेव में कोयला खदान आवंटन और कोयला खनन के लिए वनों की कटाई का विरोध पिछले 10 सालों से चला आ रहा है. इस दौरान केंद्र और राज्य में सरकारें भी बदल गई, लेकिन मामला अब तक नहीं सुलझा है. विपक्ष में रहते हुए राजनीतिक दल और उनके नेता आंदोलन का समर्थन करते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद खदान के पक्ष में खड़े हो जाते हैं.