रायपुर:कोरोना के कहर से हमें बचाने के लिए डॉक्टर, नर्स, एंबुलेस स्टाफ जैसे स्वास्थ्यकर्मी दिन-रात एक किए हुए हैं. कई अस्पतालों में एक साथ कई मेडिकल स्टाफ कोरोना पॉजिटिव आ रहे हैं. इसके बावजूद स्वास्थ्यकर्मी लगातार काम कर रहे हैं. ऐसे में उनकी चुनौतियों और खतरे को समझा जा सकता है. ऐसे ही मुश्किल हालात में लोगों की जान बचाने का जज्बा दिखाने वाले मेकाहारा अस्पताल में पदस्थ हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर कृष्णकांत साहू से ETV भारत ने खास बातचीत की.
पिछले एक साल से अपनी जान हथेली पर रखकर दूसरों की जिंदगियां बचा रहे डॉक्टर,हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर कृष्णकांत साहू से खास बातचीत सवाल: वायरस को देश में आए एक साल से ज्यादा हो गया है. इस दौरान कितनी चुनौतियां डॉक्टरों को फेस करनी पड़ी हैं ?
डॉ. कृष्णकांत:पिछले कोरोना काल में हर चीज एक्सपेरिमेंटल होता था. क्योंकि यह वायरस नया-नया देश में आया था. इस वायरस में कौन सा जींस है. किस तरह का स्ट्रेन है. तभी हम उसमें एंटीवायरस दवाई ट्रायल करते. कभी एंटीप्रोटेजोल ट्रायल कर करते.रेमडेसिविर अभी भी ट्रायल में है. उस समय ट्रायल ही चलता था. कुछ केस इसमें रेमडेसिविर भी कारगर है. कुछ में कोई और दवाई कारगर है. यह सब पिछले साल चलता था. उस समय सबसे बड़ी चीज थी कि वैक्सीन ही नहीं थी. वैक्सीन डिवेलप होने में टाइम लगता है. अभी कम से कम हमारे हाथ में 3-4 तरह की वैक्सीन है. सिंगल डोज वैक्सीन भी आने वाली है. इस समय सबसे ज्यादा हमें फायदा हुआ है वैक्सीनेशन का. पिछली बार हमने देखा कि जो फ्रंटलाइन वर्कर और पुलिस वाले थे. उनकी सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं. वह अभी सेकंड फेस में कम है. वह सिर्फ इसी कारण है कि लोगों ने वैक्सीनेशन करवाया और इस बीमारी को समझ पाए हैं.
सवाल: पिछले एक साल के दौरान डॉक्टर्स को पेशेंट को लेकर सबसे मुश्किल चुनौती कौन सी लगी है ?
डॉ. कृष्णकांत:ऐसे बहुत सारे पेशेंट रहते हैं. वह जब एडमिशन के लिए आते हैं. तो वह कई क्रिटिकल हालत में रहते हैं, लेकिन हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि उस पेशेंट को बचा सकें. कई पेशेंट आते हैं जिनका ऑक्सीजन लेवल 80-85 तक पहुंच जाता है. उसके बाद जब यहां उन्हें ऑक्सीजन मिलता है तो वह 90-95 तक पहुंच जाते हैं. तब उन्हें देखकर लगता है कि अब वह बच जाएंगे. जिसके बाद अचानक स्थिति खराब होने लग जाती है. पेशेंट की उसके बाद हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं. आखरी सांस तक हम कोशिश करते हैं कि पेशेंट को हम बचा लें. क्योंकि एक पेशेंट के साथ कुछ भी होता है तो सिर्फ उन्हीं पूरा परिवार उसके साथ सफर करता है.
सवाल: पहले स्ट्रेन में संक्रमित मरीज काफी आ रहे थे, लेकिन मौत का आंकड़ा कम था. दूसरे स्ट्रेन में मौत का आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ा है इसके पीछे क्या है वजह ?
डॉ. कृष्णकांत:इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि जो वायरस में म्यूटेशन हुआ. वायरस और ज्यादा घातक हुआ. इस वजह से संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढ़ी है. वहीं मौत का आंकड़ा भी बढ़ा है.
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सवाल: कोरोना हार्ट और फेफड़े पर ज्यादा इफेक्ट कर रहा है. इसके पीछे क्या है वजह ?
डॉ. कृष्णकांत:कोरोना सबसे पहले फेफड़े पर असर करता है. सबसे पहले वायरस नाक और मुंह में जाता है. जिसके बाद कोरोना फेफड़े में जाता है. अगर पेशेंट की इम्युनिटी कम है तो कोरोना पेशेंट के फेफड़े में वायरस असर करना शुरू कर देता है. फेफड़े की जो कोशिकाएं हैं, उसे गलाना चालू कर देता है. कभी आपने कोरोना पेशेंट का सिटी स्कैन या एक्स-रे देखे होंगे. उसमें एक तरफ बिल्कुल वाइट हो जाता है. वाइट का मतलब है कि उस तरफ ऑक्सीजन नहीं जा पा रहा है. अगर ऑक्सीजन फेफड़े में पूरी तरह नहीं पहुंचेगा तो धीरे-धीरे शरीर में ऑक्सीजन कम होने लगेगा. ऑक्सीजन इतना कम हो जाएगा कि ऑक्सीजन दूसरे अंगों में कम जाएगा. ब्रेन में ऑक्सीजन कम जाएगा तो आदमी को चक्कर-बेहोशी होने लगेगी. ऑक्सीजन हार्ट में कम जाएगा तो हार्ट धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है. इसमें जब फेफड़ा एक बार खराब हो जाता है. बाद में जब पेशेंट रिकवर होकर घर चला जाता है. तब भी उसे दिक्कत होती है. अगर मरीज वेंटिलेटर में रहा हो या सीरियस रहा हो. ठीक होने के बाद भी दो-तीन महीने तक उसकी सांस फूलती ही रहती है. यह सामान्य बात है. फेफड़ा एक बार वाइट हो गया तो उसको धीरे-धीरे रिकवर होने में टाइम लगेगा. 3 से 4 महीने कम से कम और उसके बाद भी कितना पर्सेंट रिकवर हो सकता है. यह कहा नहीं जा सकता. बाद में पेशेंट कितना स्वस्थ रहता है वह इस बात पर डिपेंड करता है कि उसका फेफड़ा कितना स्वस्थ है.
खून का थक्का जमने से आता है हार्ट अटैक
दूसरा कोरोना हार्ट में डायरेक्ट अटैक करता है. अगर हार्ट का मरीज है या कोई सामान्य मरीज है दो तरह का इफेक्ट होता है. एक मयोकैदसिस और दूसरा यह खून को गाढ़ा कर देता है. खून को गाढ़ा करने से जो हमारी कोरोनरी आर्टरीज होती है जो हमारे खून को सप्लाई करती है. हार्ट में उसमें थक्का जमा देता है. जब खून नहीं मिलेगा हार्ट को तो हार्ट अटैक आने का चांस रहता है. और दूसरा जो मयोकैदसिस इसमें हार्ट के मसल्स में सूजन आ जाती है. सूजन आने के बाद हार्ट फूल जाता है. हार्ट जो नॉर्मल ही पंप करता है. धीरे-धीरे वह पंपिंग एक्शन धीमा हो जाती है. जब मरीज को हार्ट फैलियर हो जाता है.
कोरोना पॉजिटिव होने के बाद भी डॉक्टर कर रहे मरीजों का इलाज
सवाल: कोरोना के दौरान कई ऐसे ही स्टाफ होंगे. जिनके माता-पिता भी पॉजिटिव आए होंगे. ऐसे में किस तरह वे मैनेज करते हैं?
डॉ. कृष्णकांत:कई तरह के ऐसे मामले आए हैं. ऐसे मामले बिल्कुल एक डॉक्टर के लिए इमोशनल वाला पल हो जाता है. एक तरफ हमारे रिश्तेदार दूसरी तरफ बाकी मरीज. बावजूद इसके हम जितना ध्यान अपने मरीज या पेशेंट को देते हैं. उतना ही ध्यान बाकी मरीजों को भी देते हैं. हां यह बात है कि जो हमारे रिश्तेदार या रिलेटिव होते हैं. उनके साथ हमारा इमोशन जुड़ा रहता है, लेकिन ट्रीटमेंट हम सबका एक बराबर ही करते हैं.
सवाल: लगातार देश में तीसरे लहर की बात चल रही है. इसमें बच्चे ज्यादा संक्रमित हो सकते हैं. ऐसे बताया जा रहा है तीसरा लहर आखिर कितना खतरनाक है ?
अभी तो भारत में दूसरी लहर चल रही है. लेकिन कई दूसरे देशों में तीसरी लहर भी आ चुकी है. अभी तक भारत को सबक ले लेना चाहिए था. भारत में भी जल्द तीसरी लहर आ सकती है. दूसरी लहर में तैयारियों में कमी रही. जो जो तैयारी पहले से करके रखनी थी, शायद उस पर पहले काम नहीं किया गया. तीसरी लहर जो आएगी वह खतरनाक हो सकती है. जैसे पहली लहर में बुजुर्ग ज्यादा संक्रमित हुए. दूसरे लहर में यंग लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं. इसी तरह से कहा जा रहा है कि तीसरी लहर में बच्चे ज्यादा संक्रमित होंगे. सावधानी रखना चाहिए कि बच्चों को ज्यादा एक्सपोजर ना करें. सरकार को जल्द एक टास्क टीम बनानी चाहिए कि अगर जैसे ही यह कैसे आएंगे तो उसको किस तरह मैनेज करना चाहिए. अगर बच्चे पॉजिटिव आएंगे. बच्चे काफी संवेदनशील होते हैं. बच्चों को वेंटिलेटर में डालना काफी दु:खद होता है. बड़ों से उनका मैनेजमेंट थोड़ा सा चेंज हो जाता हैय बच्चों को स्पेशली मैनेज करने के लिए अलग से सोचने की जरूरत है.