रायपुर : हर देश का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होता है, जो कि उसकी कहानी को बयां करता है. भारत का राष्ट्रीय ध्वज जिसे आज 'तिरंगा' भी कहा जाता (har ghar tiranga Campaign ) है कि कहानी भी बड़ी रोचक (har ghar tiranga Campaign in chhattisgarh ) है. अपने वर्तमान रूप में आने से पहले भारत के ध्वज ने 6 बार अपना रंग रूप (Indian tiranga has changed its color six times)बदला.
पहला तिरंगा : सबसे पहले तिरंगे को 7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) के पारसी बागान स्क्वेयर में फहराया गया था। इस झंडे में तीन रंग की पट्टियां थी. जिनमें बीच की पट्टी पर वंदे मातरम लिखा था. इस बीच में सफेद की बजाए पीली पट्टी थी. वहीं नीचे की पट्टी लाल थी जिस पर अर्ध चंद्र और सूरज बना था. इसके अलावा सबसे ऊपरी हरी पट्टी पर कमल का फूल अंकित था.
बर्लिन कमेटी का झंडा :यह भी पहले झंडे से काफी कुछ मिलता जुलता था. इसमें बीच की पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा था. इसमें ऊपरी पट्टी पर कमल के फूल की बजाए सात तारे छपे थे, जो कि सप्तर्षि का तारामंडल का प्रतीक थे. इसे 1907 में मैडम काम ने फहराया था. साथ ही इसे बर्लिन में आयोजित एक सभा में भी भारत के झंडे के रूप में फहराया गया.
होम रूल आंदोलन का झंडा: इसके बाद तीसरी बार भारत का झंडा सामने आया नए रूप में होम रूल आंदोलन के दौरान. 1917 में इस झंडे को होम एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया था. इस झंडे में पांच लाल और चार हरी पट्टियां थीं. इन पर सात तारे अंकित थे. इसके बाएं कोने में ऊपरी ओर ब्रिटेन का आधिकारिक झंडा भी छपा था.