रायपुर :छत्तीसगढ़ की माटी में जन्मे और उसकी खुशबू को पूरी दुनिया में बिखेरने वाले महान रंगकर्मी हबीब तनवीर (habib tanvir) सही मायनों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ग्लोबल एंबेसडर थे. उनका मानना था कि थिएटर में अपने मुल्क और अपने समाज की जिंदगी अपने मुल्क की शैली में ही पेश करना चाहिए. जिससे बाहर के लोग उसे देखकर हमारी संस्कृति और हमारे लाइफ स्टाइल को समझ सकें. वे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण जीवन शैली को एडिम्बरा जैसे नाट्य समारोह तक लेकर गए. बुधवार को रायपुर समेत पूरे देश में रंगमंच (Stage) के नटसम्राट और विख्यात फनकार हबीब तनवीर की जयंती मनाई गई. हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ की जड़ों से किस तरह जुड़े थे, इसे समझने के लिए ईटीवी भारत ने उनके रंगकर्म पर रिसर्च करने वाली डॉक्टर कल्पना मिश्रा से बात की. वे कैसे छत्तीसगढ़ी नाटक और लोककला के "हबीब" बन गए, इस पर उन्होंने खुलकर बात की.
नाटक का कोर्स करने ब्रिटेन गए, अपनी भाषा छत्तीसगढ़ खींच लाई
हबीब तनवीर का जन्म रायपुर में ही हुआ है. उनकी स्कूली शिक्षा यहीं कालीबाड़ी में हुई. और सबसे पहले उनका रंगमंच से जो परिचय हुआ, वह रायपुर में ही हुआ. उनके माता-पिता और बुआ सब रायपुर में ही रहते थे. इसलिए रायपुर से उनका पूरा जुड़ाव रहा. बाद में वह पढ़ाई के लिए नागपुर गए, फिर वहीं से ब्रिटेन चले गए. जब उन्होंने नाटक का कोर्स शुरू किया, तब उनको लगा कि यह वह चीज नहीं है जो सीखने आए हैं.
क्योंकि वहां रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामा में ज्यादा ध्यान इंग्लिश के प्रनंसीएशन पर दिया जाता था. उनको लगा कि जितने समय में अंग्रेजी सीखने और उसके उच्चारण को दुरुस्त करने में लगाएंगे, उतने में अपने लोग और भाषा जो सरलता से अपने मुख से निकलती है हिंदी या छत्तीसगढ़ी उसमें मैं एक्टिंग करूंगा. उन्होंने कोर्स अधूरा छोड़ा और छत्तीसगढ़ के गांव से कलाकार को ढूंढा. दिल्ली में नया थियेटर की स्थापना की और वहां जो भी नाट्यकला थी, उनको अपनी भाषा में करना शुरू किया.