रायपुर:भूजल दोहन के लिए केंद्र सरकार ने कई सख्त नियम लागू किए हैं, लेकिन निर्माण करने वाली एजेंसियां इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है. छत्तीसगढ़ में पिछले 3 साल में महज 6 फीसद संस्थानों ने ही नियमों के दायरे में रहकर निर्माण करने की अनुमति ली है. इसमें एक सरकारी एजेंसी शामिल है. भूमिगत जल को इससे बड़ा नुकसान पहुंचा है. वाटर लेवल के लगातार गिरने से राज्य के कई हिस्से डेंजर जोन में हैं. रायपुर के धरसींवा और इससे लगे फिंगेश्वर ब्लॉक के कई क्षेत्र सेमी क्रिटिकल लिस्ट में शामिल हैं. भूजल बोर्ड की ओर से अब तक 2200 से अधिक लोगों को शो कॉज नोटिस दिया जा चुका है, लेकिन ठोस कार्रवाई के आभाव में दोहन करने वालों के हौसले बुलंद हैं.
पंजीकृत के लिए 6 हजार आवेदन:केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से लागू किए गए नियमों का पालन करने को महज छह हजार आवेदन अनुमति के लिए पंजीकृत है. खास बात यह है कि भूजल बोर्ड के पास सरकारी एजेंसियों में महज सीएसआईडीसी ने ही जल दोहन के लिए अनुमति ली है. जबकि आरडीए, हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम या फिर नगर पालिकाओं की ओर से किसी ने भी अनुमति नहीं ली.
पूरे छत्तीसगढ़ में लागू है नियम: भूजल वैज्ञानिक के पानीग्रही के मुताबिक "साल 2020 से लागू किए गए भूजल बोर्ड के नियमों के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्रियल और माइनिंग इन तीन श्रेणियों में निर्माण एजेंसियों को भूजल बोर्ड से परमिशन लेना जरूरी है. इन तीन श्रेणियों में से पहला इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसके अंतर्गत स्कूल मॉल, व्यवसायिक काॅम्प्लेक्स, अस्पताल, सरकारी कॉलोनी या सरकारी काॅम्प्लेक्स आते हैं. दूसरी श्रेणी इंडस्ट्रियल की है, जिसमें सभी फैक्ट्री वाले स्थल और औद्योगिक क्षेत्र आते हैं. तीसरा माइनिंग है, जिसमें सभी खनन वाले स्थान शामिल है. लेकिन ये बिना परमिशन के ही भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए कार्रवाई का प्रावधान है."
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