छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

Govardhan Puja 2021: गोबर से किया जाता है एक दूसरे को तिलक

दीपावली (Dipawali) के दूसरे दिन यानी आज गोवर्धन पूजा (Govardhan puja) मनाई जा रही है. इस दिन गाय(Cow), बछड़ा सहित पशुओं की पूजा की जाती है. इस दिन गोबर का पहाड़ (Cow dung mountain) बनाकर पूजने की परम्परा है.

story of this day is related to Lord Krishna
भगवान कृष्ण से जुड़ी है इस दिन की कथा

By

Published : Nov 3, 2021, 1:40 PM IST

Updated : Nov 5, 2021, 7:01 AM IST

रायपुरः दीपावली (Dipawali) के दूसरे दिन आज गोवर्धन पूजा(Govardhan puja) की जाती है. इस दिन भगवान कृष्ण (Lord Krishna) की एक लीला से जुड़ी मान्यता है जिसके कारण लोग एक दूसरे को गोबर का तिलक लगाते हैं. दरअसल, विशाखा नक्षत्र आयुष्मान योग और सौभाग्य योग सहित ववकरण में कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात प्रथमा तिथि को गोवर्धन पूजा अन्नकूट और गांव क्रीडा पर्व मनाया जाएगा. इसे बलि प्रतिपदा भी कहते हैं. इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर अभ्यंग अर्थात शरीर की अच्छी तरह से मालिश कर स्नान करने का विधान है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है. यह योग गोवर्धन पूजा को और भी गरिमा प्रदान कर रहा है. कहते हैं कि ऐसा संयोग बहुत कम बनता है.

गोबर से किया जाता है एक दूसरे को तिलक

Diwali 2021: 4 नवंबर को मनाया जाएगा दीपों का पर्व दीपावली, इस मुहूर्त में करें पूजा

इस दिन गोबर के पहाड़ बनाकर की जाती है परिक्रमा

कहा जाता है कि इस दिन गोबर का पहाड़ बनाकर(Cow dung mountain) उसकी पूजा की जाती है, जिसे गोवर्धन पर्वत माना जाता है. फिर उसकी चारों ओर परिक्रमा की जाती है. साथ ही इस पर्वत को चंदन, अबीर-गुलाल, सिंदूर, बंधन, माला आदि पहनाई जाती है. फिर इस गोवर्धन पर्वत से ही अनामिका उंगली में तिलक लगाकर सभी बंधु एक दूसरे को गोबर का तिलक लगाते हैं. गांव में यह त्यौहार विशेष रूप से मनाया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उल्लास देखने को मिलती है. मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने आज ही के दिन इंद्र के वर्षा के प्रभाव को रोकने के लिए मथुरावासियों की रक्षा हेतु गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठका उंगली पर उठा लिया था. कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुल वासियों के प्राणों की रक्षा की थी. इसके उपलक्ष में कार्तिक मास में प्रतिपदा पर्व पर इस त्यौहार को मनाने की परंपरा चली आ रही है.

प्रातः बेला की पूजा मानी जाती है शुभ

यह पर्व मुख्य रूप से सुबह 5:00 बजे से लेकर सुबह 7:02 तक और शाम के समय गोधूलि बेला. मेष लग्न में सायंकाल 4:18 से लेकर सायंकाल 5:59 तक गोधूलि के प्रभाव में मनाया जाना श्रेष्ठतम माना जाता है. इस दिन नई फसलों के अनाज की पूजा की जाती है. जिसे अन्नकूट कहा जाता है. सभी कृष्ण मंदिरों में अन्नकूट के पूजन का विधान है. नई अनाज के फसलों की पूजा नए अनाज के द्वारा ही की जाती है. नवग्रह षोडश मातृका गौरी गणपती आदि सभी जगह नवीन उत्पन्न हुए अनाज के द्वारा पूजा का विधान है. कृष्ण जी के मंदिरों में से भव्य रुप से मनाया जाता है. इसदिन नूतन जैन संवत्सर 2548 प्रारंभ हो रहा है. इस दिन गाय(Cow), बछड़ों, बैलों और पालतू पशुओं की पूजा के साथ-साथ उनकी क्रीडा, उनकी प्रतिस्पर्धा का भी आयोजन किया जाता है.

Last Updated : Nov 5, 2021, 7:01 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details