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gopashtami 2022 : गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा, विधि और मान्यता - क्या है गोपाष्टमी की पौराणिक मान्यता

कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. इस साल यानी 2022 में गोपाष्टमी 01 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तिथि तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया था. वहीं कार्तिक शुक्ल के अष्टमी तिथि को इंद्र देव अपना क्रोध छोड़कर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगा. तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है

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गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा

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Published : Oct 31, 2022, 9:01 PM IST

रायपुर : गोपाष्टमी को लेकर कई तरह की मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं. ज्यादातर कथाओं में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं हैं. गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक अपनी उंगली में धारण करने के अलावा भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है.gopashtami 2022 date

गोपाष्टमी की पौराणिक कथा : जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा. तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गाय चराना चाहते हैं. उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया. भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गाय ही चरायेंगे. नन्द बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए, शांडिल्य ऋषि के पास पहुंचे, बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि, अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नहीं हैं अगले बरस तक. शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था. वह दिन गोपाष्टमी का था. जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया. उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया. मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी. उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा. मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले जाते. गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है.

क्या है गोपाष्टमी की पौराणिक मान्यता : जब भगवान श्री कृष्ण पौगंड अवस्था में पहुँचे, तब गोपाष्टमी के दिन नंद महाराजा ने गायों और श्रीकृष्ण जी के लिए एक समारोह किया. यह श्री कृष्ण और भाई बलराम के लिए गायों को पहली बार चराने के लिए ले जाने का दिन था. गोपाष्टमी, दीपावली के दौरान आने वाला प्रसिद्ध त्यौहार गोवर्धन पूजा के 7 दिन बाद मनाया जाता है. गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। गोपाष्टमी त्यौहार हमें बताता हैं कि हम सभी अपने पालन के लिये गाय पर निर्भर करते हैं इसलिए वो हमारे लिए पूज्यनीय हैं। हिन्दू संस्कृति, गाय को मां का दर्जा देती हैं.

कैसे करें गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा : गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा का विधान है. ऐसे में इस दिन शुभ मुहूर्त में स्नान से निवृत होकर साफ वस्त्र पहने. इसके बाद पूजा स्थान पर गाय और उसके बछड़े की विधिवत पूजा करें. साथ ही उन्हें धूप-दीप दिखाएं. गौ-पूजन के बाद गाय को अपने हाथों से हरा चारा खिलाएं. इसके अलावा गाय के चरणों को स्पर्श करते हिए प्रणाम करें. इतना करने के बाद गाय की आरती भी करें. इस दिन गाय को गुड़ का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है. ऐसे में इस दिन अपने हाथों से गाय के लिए गुड़ का भोग लगाएं. मान्यता है कि इस दिन गाय को गाय को गुड़ का भोग लगाने से सूर्य-दोष से मुक्ति मिलती है. अगर गोपाष्टमी के दिन इतना करने के लिए समय ना हो तो किसी गौशाला में गाय के निमित्त चारे का प्रबंधन (Cow worship rituals and beliefs) करें.

स त्वां कृष्णाभिषेक्ष्यामि गावं वाक्यप्रचोदितः ।

उपेन्द्रत्वे गवामिन्द्रो गोविन्दस्त्वं भविष्यसि ॥ [ विष्णु पुराण 5/12/12 ]

भावार्थ- हे कृष्ण! अब मैं गौऔं के वाक्यानुसार ही आपका उपेंद्र पद पर अभिषेक करूंगा तथा आप गौऔं के इंद्र हैं, इसलिए आपका नाम गोविंद भी होगा.

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