रायपुर: आदिवासी समाज अपनी संस्कृति, बोली और लाइफ स्टाइल के लिए जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में कई तरह की जनजातियां हैं. इनमें गोंड जाति भी शामिल है. जो कि बेहद पुरानी जनजाति है. इसकी कई उपजाति भी छत्तीसगढ़ में निवास करती है. हाल ही में कवर्धा जिले में गोंड समाज ने अपनी परंपरा के मुताबिक कुछ फैसले लिए, जिसे उनके प्राकृतिक प्रेम और अपने सामाजिक नियमों की ओर लौटने के तौर पर देखा जा रहा है. इस पर ETV भारत ने आदिवासियों के नियमों और जीवन को बेहद करीब से देखने वाले परिवेश मिश्रा से खास बातचीत की.
सवाल- कवर्धा में हाल ही में गोंड समाज द्वारा कुछ सामाजिक फैसले लिए गए. मसलन दफना कर अंतिम संस्कार करना, शराब बंदी, दहेज पर रोक जैसे कई बड़े फैसले लिए गए. इसे आप किस तरह देख सकते हैं ?
परिवेश मिश्रा- इस क्षेत्र में जनजातियों के रहने का इतिहास बहुत पुराना है. गोंड समाज ने जो फैसले लिए हैं, दरअसल इसके जरिए वे अपनी परंपरा की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. ये किसी टाइम लाइन में लौटने की कोशिश नहीं बल्कि ये पुरानी गलतियों को सुधारने का प्रयास भी है.
सवाल- इनकी परंपराओं से प्रकृति को कैसे संरक्षण मिलता है ?
परिवेश मिश्रा-जहां तक शव को दफनाने की परंपरा है, ये आदिवासी समाज में शुरू से ही देखी गई है. बाद में कुछ जगहों पर दाह संस्कार किया जाने लगा. क्योंकि आदिवासी समाज जंगल से ही अपना जीवन यापन करता है. आज के संदर्भ में देखा जाए तो इसे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम माना जाएगा. इसी तरह से शराब को
लेकर भ्रांति है और इसे आदिवासी समाज से जोड़ दिया जाता है. इन बातों को उनके नजरिए से देखा जाना चाहिए.