रायपुर: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है. जिससे निपटने के लिए पूर्व की बीजेपी सरकार ने काफी प्रयास किए. लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया. वहीं वर्तमान की कांग्रेस सरकार भी पिछले 2 सालों से नक्सल समस्या के समाधान के लिए प्रयास किए जाने के दावे कर रही है. जहां एक ओर नक्सल प्रभावित इलाके में तैनात जवान मोर्चा ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन क्षेत्रों के भोले-भाले भटके हुए आदिवासियों को मुख्य धारा में वापस लाने की भी पहल की जा रही है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए पुनर्वास नीति महत्वपूर्ण है.
सरेंडर कर चुके नक्सलियों को नहीं मिल रहा पुनर्वास नीति का लाभ नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लिए बनाई गई पुनर्वास नीति की बात की जाए तो इसका क्रियान्वयन फिलहाल सही तरीके से नहीं किया जा रहा है. यह आरोप खुद नक्सलवाद को छोड़कर आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली कह रहे हैं. इसमें वे नक्सली भी शामिल है जिन पर 8 से 10 लाख रुपए का इनाम सरकार ने रखा था.
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पुनर्वास नीति का नहीं मिला लाभ
पिछले दिनों सैकड़ों की तादाद में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचे आत्मसमर्पित नक्सलियों ने सीधे तौर पर पूर्व रमन सरकार और वर्तमान की भूपेश सरकार पर कई आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि आत्मसमर्पण करने के दौरान सरकार ने दावा किया था कि उन्हें पैसा, जमीन और नौकरी दी जाएगी. लेकिन सरकार की ओर से उन्हें कुछ नहीं दिया गया. कुछ लोगों को नाममात्र जमीन देकर ही सरकार ने संतुष्ट करने की कोशिश की है. ज्यादातर नक्सलियों को ना तो राशि दी गई और ना ही नौकरी मिल पाई है.
दर-दर भटकने को मजबूर
नक्सल हिंसा छोड़कर समाज की मुख्यधारा में जुड़ने की उम्मीद लगाए आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली अपने पुनर्वास को लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं. इन आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की मजबूरी यह भी है कि वे न तो वापस अपने गांव जा सकते हैं और ना ही आर्थिक तंगी की वजह से कहीं और अपना जीवनयापन कर सकते हैं. ऐसे में इन्हें भविष्य की चिंता सता रही है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली यह भी कहते नजर आ रहे हैं कि पहले ही अच्छा था जब उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया था. जिस तरह से आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली बीहड़ गांव जंगलों से निकलकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचकर अपने पुनर्वास को लेकर राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं यह चिंता का विषय है.
रायपुर में डेरा डालेंगे नक्सली
राजधानी रायपुर पहुंचने वाले पूर्व नक्सलियों ने चेतावनी दी है कि सरकार ने यदि उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे 15 फरवरी से नया रायपुर में डेरा डालेंगे. इस दौरान वे मांग पूरी होने तक वही आंदोलन करते रहेंगे.
नक्सल एक्सपर्ट डॉ वर्णिका शर्मा ने इसे खतरे की घंटी बताया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने जल्द आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की सुध नहीं ली तो आने वाले समय में इसका खामियाजा नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में उठाना पड़ सकता है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों जो आज अपनी मांगों को लेकर खुलकर सामने आए हैं, उन्हें यदि उचित मदद नहीं दी गई तो वे वापस हिंसा की ओर जा सकते हैं. नक्सली भी इसी फिराक में रहते हैं कि किस तरह से वे अपने बिछड़े हुए साथियों को वापस बुला लें.
वर्णिका ने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो यह सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन सकती है. पूर्व नक्सलियों के हालातों को देख वर्तमान में जो नक्सली हिंसा छोड़ समाज की मुख्यधारा से जुड़ने मन बना रहे होंगे वे भी आत्मसमर्पण नहीं करेंगे. यही वजह है कि सरकार को इसे समझते हुए तत्काल कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.
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विपक्ष ने साधा निशाना
विपक्ष का भी दावा है कि उनकी सरकार में आत्मसमर्पण नीति का क्रियान्वयन उचित तरीके से किया जा रहा था. जिस वजह से काफी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया. पूर्व मंत्री केदार कश्यप का कहना है कि जब से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई है, नक्सलियों के आत्मसमर्पण को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. यही वजह है कि अब नक्सलियों के आत्मसमर्पण की संख्या कम होती जा रही है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली पुनर्वास नीति का लाभ लेने के लिए राजधानी पहुंच रहे हैं.
सीएम का पलटावार
केदार कश्यप के आरोपों पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि केदार कश्यप 15 साल मंत्री रहे उनके शासनकाल में जो शहीद हुए थे उनके परिवारो को भुगतान नहीं हुआ था. उनको रोजगार तक नहीं मिला था. हमारी सरकार को यह सब करना पड़ रहा है. वे अपना पहले देखें, फिर दूसरों के बारे में बात करें. वहीं नक्सल आत्मसमर्पण नीति के सही तरीके से क्रियान्वयन ना होने के आरोप पर बघेल ने कहा कि जो नक्सल आत्मसमर्पण नीति है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के आंकड़े उठाकर देख लें कि बीजेपी शासनकाल में कितने नक्सली ने आत्मसमर्पण किया था और हमारे शासनकाल में कितनों ने किया है. उनके शासनकाल में कितने नक्सली मारे गए थे और हमारे शासनकाल में कितने मारे गए हैं.
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बहरहाल सरकार कोई भी रही हो लेकिन नक्सल समस्या जस की तस बनी हुई है. इस समस्या का समाधान हाल के दिनों में निकलता नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में देखना होगा कि सरकार इन आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को किस तरह राहत देती है. यदि सरकार इसके लिए कोई बड़ी पहल नहीं करती है तो इसका खामियाजा नक्सल अभियान के खिलाफ चलाए जाने वाले मुहिम पर पड़ सकता है.