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छत्तीसगढ़ में भी फूटा किसानों का गुस्सा, कृषि कानून के खिलाफ रखा उपवास - कृषि कानून का विरोध

केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ किसानों ने बूढ़ा तालाब में धरना-प्रदर्शन किया. किसान दिवस के अवसर पर किसानों ने एक दिवसीय उपवास रखा. किसानों ने कहा कि मोदी सरकार किसान हित में कानून को नहीं लाई है. इसके खिलाफ देशभर में किसानों ने धरना प्रदर्शन किया.

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छत्तीसगढ़ में भी फूटा किसानों का गुस्सा

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Published : Dec 23, 2020, 8:01 PM IST

रायपुर:छत्तीसगढ़ में बुधवार को किसान दिवस के अवसर पर दिन भर का उपवास रखा. छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ सहित 500 से अधिक किसान संगठनों ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया है. संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर धरना प्रदर्शन किया गया. कृषि कानून का विरोध किसान देशभर में कर रहे हैं. प्रदर्शन करने के साथ ही रैली भी निकाली जा रही है.

छत्तीसगढ़ में भी फूटा किसानों का गुस्सा

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राजधानी के बूढ़ा तालाब धरना स्थल पर बुधवार को छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के बैनर तले किसानों ने 1 दिन का उपवास किया. देश के किसानों को आंदोलन के अलग-अलग रूपों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है. ताकि एक देशव्यापी दबाव बनाकर किसान विरोधी कानून को वापस लेने के लिए मोदी सरकार को बाध्य किया जा सके.

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किसान आंदोलन का दायरा लगातार बढ़ रहा

देश में किसान आंदोलन का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है. आम जनता के विभिन्न वर्गों का उन्हें समर्थन मिल रहा है. यह आंदोलन न केवल आजादी के बाद का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आंदोलन बन रहा है, बल्कि मानव इतिहास का भी ऐसा बड़ा आंदोलन बन रहा है. किसान आंदोलन में हजारों लोग प्रत्यक्ष रूप से भागीदार हैं.

'आंदोलन को लेकर मोदी सरकार दुष्प्रभाव फैला रही'

किसान ने आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार पर हमला किया. किसानों ने कहा कि मोदी सरकार दुष्प्रभाव फैला रही है. किसान संगठनों की एकता को तोड़ने की साजिश कर रही है. किसान सभा के नेताओं ने कहा कि यह आम किसानों की मांग है. आंदोलन को आम जन और किसान संचालित कर रहे हैं.

आंदोलन में 35 से ज्यादा किसानों की मौत

किसान नेताओं ने कहा कि आंदोलन में 35 से ज्यादा किसानों ने अभी तक शहादत दी है. सरकार द्वारा कानून वापस लिए जाने तक यह शांतिपूर्ण आंदोलन और शहादत का दौर जारी रहेगा. किसान सभा के नेताओं ने कहा कि बिना राय मशवरा किए गैर लोकतांत्रिक ढंग से कानून को पारित किया गया. कानून की आम जनता के लिए कोई वैधता नहीं है. वह उसे मानने के लिए बाध्य नहीं है.

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