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सियासी फसल: पहले आप-पहले आप में कहां खड़े हैं किसान, न सरकार चिंतित है न विपक्ष

छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है. एक के बाद एक अब तक लगातार कई मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन खुद को किसान हितैषी बताने वाली सरकारें किसानों के खुदकुशी के पीछे के कारण को सुलझाने में नाकामयाब नजर आ रही है. साथ विपक्ष भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.

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किसान परिवारों को नहीं मिल रहा मुआवजा

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Published : Nov 1, 2020, 11:05 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ की वर्तमान से लेकर पूर्व की सरकारें लगातार खुद को किसान हितैषी होने का दावा करते रहती है. इन सरकारों की ज्यादातर योजना किसानों को समृद्धि करने की ही होती है. सरकारें किसानों को सस्ते दाम पर खाद बीज और कीटनाशक उपलब्ध कराने का दावा भी करती है. वर्तमान में कांग्रेस की सरकार ने कर्ज माफी के साथ 2 हजार 500 रुपये प्रति क्विंटल धान भी खरीद रही है, बावजूद इसके किसानों की आत्महत्या नहीं रूक रही है.

किसान परिवारों को नहीं मिल रहा मुआवजा

कारण नहीं जानना चाहती सरकार!

आखिरकार किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं, इसकी वजह जानने की कोशिश शायद किसी ने नहीं की है या नहीं करना चाहते हैं. ऐसा लगता है, किसानों की आत्महत्या राजनीतिक पार्टियों के लिए कभी-कभी उगने वाली फसल की तरह है, जिसे हर पार्टी ज्यादा से ज्यादा काटना चाहती है, लेकिन जब किसानों की बारी आती है तो दबी आवाज में कभी-कभी मुआवजे का शिगुफा छोड़ दिया जाता है. जो इन नेताओं की रैलियों और सभाओं की भीड़ में तालियों की आवाज के साथ ही गुम हो जाती है.

जब बीजेपी सत्ता में होती है, तो कांग्रेस किसानों के लिए मुआवजे की मांग करती है, जब कांग्रेस सत्ता में होती है तो बीजेपी. पता नहीं ये नेता कैसा मुआवजा मांगते हैं, जो आजतक किसानों या उनके परिजनों तक नहीं पहुंच पाता है.

पहले आप-पहले आप में उलझी कांग्रेस-बीजेपी

छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद सत्ता बदली है. किसानों का हितैषी बताने वाली कांग्रेस यहां अब सत्ता में आई है, लेकिन उसके सत्ता में आने के बाद भी किसानों की आत्महत्या नहीं रूकी है. जिसपर अब यहां मुआवजे की सियासत शुरू हो गई है. जो पहले कांग्रेस कर रही थी, वो अब बीजेपी करने लगी है. यानी किसानों की आत्महत्या को लेकर सराकर के खिलाफ राज्यपाल से शिकायत और आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को 25 लाख रुपये मुआवजा और सरकारी नौकरी दिलाने की मांग. इधर, सत्ताधारी कांग्रेस भी वहीं कर रही है, जो सत्ता में रहते बीजेपी करती थी, यानी केंद्र सरकार से मुआवजा देने की मांग. अब इस पहले आप-पहले आप में आज तक आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार वालों को क्या मिला पता नहीं.

एक नजर किसान आत्महत्या के आंकड़ों पर

आइए अब हम एक नजर डालते हैं, बीते एक साल में देश और छत्तीसगढ़ में आत्महत्या करने वाले किसानों के आंकड़ों पर. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के तहत 2019 में देश के 29 राज्यों में किसान और कृषि क्षेत्र से जुड़े कुल 20 हजार 538 लोगों ने आत्महत्या की है. इसमें कृषि श्रमिक भी शामिल है. आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा 7 हजार 854 मामले अकेले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं. कर्नाटक में आंकड़ा 3 हजार 928, आंध्र प्रदेश में 2 हजार 58, मध्यप्रदेश में 1 हजार 82 और छत्तीसगढ़ में 998 है. 2018 में छत्तीसगढ़ में किसान आत्महत्या का आंकड़ा 934 था.

कर्ज आत्महत्या की वजह!

जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आत्महत्या करने वाले किसानों में ज्यादातर किसानों ने कर्ज और शराब की वजह से आत्महत्या की है. राज्य में साल 2019 से अब तक किसानों की आत्महत्या के ज्यादातर मामलों में कर्ज बड़ी बताई गई है. वहीं पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में सरकार ने विधानसभा में कुछ मामलों में आत्महत्या की वजह शराब का सेवन भी बताया था.

किसान आत्महत्या के कुछ मामले

केस 1

6 अक्टूबर 2020 को दुर्ग जिले के मातारोडीह गांव में एक किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. किसान का नाम दुर्गेश कुमार निषाद था. जो फसल खराब होने की वजह से काफी तनाव में था.

केस- 2

17 अक्टूबर 2020 को रायपुर जिले के मानपुर ब्लॉक के दादारझोरी गांव में एक किसान ने आत्महत्या की थी. इस किसान का नाम कमलेश साहू था. यह किसान भी फसल खराब होने की वजह से काफी निराश था.

केस-3

20 सितंबर 2019 को अभनपुर के गिरोला गांव में सूदखोरी से परेशान होकर एक किसान रामनरेश यादव ने खुदकुशी कर ली थी. इस मामले में पुलिस ने सूदखोर के खिलाफ केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया है.

केस- 4

21 जून 2019 में जशपुर में भाजपा किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष मोहन राम निराला ने फांसी लगा ली थी. उन्होंने बैंक से 4 लाख रुपये का कर्ज लिया था. भाजपा नेताओं ने कर्ज से परेशान होकर आत्मघाती कदम उठाने का आरोप लगाया था.

केस-5

8 अक्टूबर 2018 को बेमेतरा के बालसमुंद गांव के रहने वाले किसान रामअवतार साहू ने पेड़ से फांसी लगा आत्महत्या कर ली थी. साहू ने अपने सुसाइड नोट में स्टेट बैंक के स्थानीय शाखा से 4 लाख रुपये कर्ज का जिक्र किया था.

पारिवारिक विवाद और मानसिक रोग भी कारण!

यह तो मात्र आत्महत्या के चंद मामले हैं, जो हाल ही में हुए हैं. इसके अलावा भी कई किसानों ने आत्महत्या की है. जिसमें कई आत्महत्या को शासकीय दस्तावेजों में पारिवारिक विवाद और मानसिक स्थिति खराब या कई और ही कारण बता केस को बंद कर दिया गया है.

मुआवजे की मांग

बीते दिनों किसानों के आत्महत्या को लेकर बीजेपी ने एक जांच दल गठित की थी. इस जांच दल ने 9 बिंदुओं पर अपने सुझाव के साथ रिपोर्ट को राज्यपाल के पास भेजा है. इसमें बीजेपी ने आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार को 25 लाख रुपये मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की मांग भी की है. यह जांच रिपोर्ट गोबरा नवापारा और नंदिनी में 2 किसानों की खुदकुशी के बाद सौंपी गई है.

किसानों के परिवारों को मदद की दरकार

किसानों के आत्महत्या के मामले को लेकर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य सरकार से पीड़ित परिवार को हर संभव मदद पहुंचाने की मांग की है.

बीजेपी सरकार पर निशाना

इधर, विपक्ष की मांग पर छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने पूर्व की बीजेपी सरकार पर जोरदार हमला बोला है. चौबे का कहना है कि वे भारतीय जनता पार्टी को बधाई देते हैं. उनके 15 साल के शासन में छत्तीसगढ़ में 19 हजार किसानों ने आत्महत्या की थी. उन्होंने कहा कि रमन सिंह और भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता बताएं उन्होंने किसी भी एक किसान को रमन सरकार ने कितना मुआवजा दिया था क्या?. रविंद्र चौबे ने कहा कि अगर केंद्र की मोदी सरकार मुआवजा देने के लिए तैयार है तो कांग्रेस सरकार भी मुआवजा देने के लिए तैयार हैं.

'जवाबदारी से नहीं बच सकती कांग्रेस'

इधर, रविंद्र चौबे के बयान पर पलटवार करते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि पहले आप पहले आप कर कांग्रेस सरकार अपनी जवाबदारी से नहीं बच सकती है. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज नहीं है, बल्कि कांग्रेस सत्ता पर काबिज है. उपासने ने कहा कि इस प्रकार की बात करके सरकार कहीं न कहीं आत्महत्या करने वाले किसानों और छत्तीसगढ़ की जनता का अपमान कर रही है.

'मंत्री को नहीं देना चाहिए ऐसा बयान'

वहीं छत्तीसगढ़ संयुक्त किसान मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता जागेश्वर प्रसाद का कहना है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही किसानों के मुद्दे को लेकर सिर्फ राजनीति कर रही है. आज कर्ज की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं. उन आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा देने को लेकर एक दूसरे पर पहले आप पहले आप की बात कह रहे हैं. जागेश्वर प्रसाद का कहना है कि मंत्री रविंद्र चौबे को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए, क्योंकि जब भाजपा शासन ने किसानों को सुध नहीं ली गई, तभी उसे हटाकर कांग्रेस को सत्ता पर काबिज किया गया है.

किसानों को नही मिल रही आर्थिक मदद

बहरहाल पहले आप-पहले आप के चक्कर में न तो किसानों को आर्थिक मदद मिल रही है और न ही मुआवजा. अब देखने वाली बात है किसानों के हितैषी बनने वाली कांग्रेस सरकार आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को किस तरह मदद पहुंचाती है. साथ ही प्रदेश में किसान आत्महत्या न करें इसके लिए क्या ठोस कदम उठाती है. विपक्ष में बैठी भाजपा को भी सोचना होगा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान किसानों की सुध क्यों नहीं ली. उनके कार्यकाल में किसानों ने आत्महत्या क्यों की. आज सिर्फ विपक्ष में होने के नाते वर्तमान राज्य सरकार पर किसानों की उपेक्षा किए जाने का आरोप मढ़कर वे पूर्व में की गई गलतियों से मुंह नहीं फेर सकते हैं.

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