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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस को मिली करारी हार के पीछे का कारण

मोदी की गारंटी, पीएससी घोटाला, ट्राइबल फैक्टर और सत्ता विरोधी लहर ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत की राह में रोड़ा अटकाया. बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की और 54 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि 2018 में 68 सीटें जीतने वाली कांग्रेस सिर्फ 35 सीटों पर ही सिमट गई.

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कांग्रेस को मिली करारी हार के पीछे का कारण

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 3, 2023, 11:06 PM IST

Updated : Dec 4, 2023, 6:19 AM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में फिर कमल खिला है. बीजेपी खेमे में खुशी की लहर है. बीजेपी ने कांग्रेस का किला ढहा दिया. 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा की 54 सीटों पर बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की. वहीं भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार 35 सीटों पर ही हांफ गई. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भी पाली तानाखार की एक सीट मिली.

कांग्रेस की हार के पीछे घोटाले:विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण से पहले भाजपा ने कांग्रेस और मुख्यमंत्री पर आरोप लगाने के लिए कोयला घोटाले, फिर शराब घोटाले और महादेव सट्टेबाजी ऐप के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की मैराथन छापेमारी का हवाला दिया है. महादेव एप के संबंध में आरोप यह है कि पार्टी और उसके मुख्यमंत्री को सट्टेबाजी ऐप प्रमोटरों से 508 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ मिला है.

बीजेपी ने कांग्रेस पर खासकर 2021-22 के लिए नौकरी भर्ती में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) की भर्ती में राजनेताओं, नौकरशाहों के रिश्तेदारों और करीबी सहयोगियों को लेकर पक्षपात का आरोप लगाया. पूर्व सीएम रमन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया.

मोदी की गारंटी: बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में जनता से कई वादे किए. इनमें गरीब परिवारों के लिए 500 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर और 12,000 रुपये प्रति वर्ष वित्तीय सहायता शामिल है.

भाजपा का किसानों को लुभाना, चुनावी वादे:2018 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में तत्कालीन रमन सिंह सरकार को हरा दिया था. धान किसानों के बीच नाखुशी को एक प्रमुख कारण माना गया कि 2018 में भाजपा की सीटें सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गईं. भाजपा ने इससे सबक लिया. इस बार अपने चुनाव घोषणापत्र में 3,100 रुपये प्रति क्विंटल (21 क्विंटल प्रति एकड़) पर धान खरीदने का वादा किया.

कांग्रेस में अंतर्कलह:छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच ढाई ढाई साल के फार्मूले को लेकर आंतरिक संघर्ष लगातार चलता रहा.

शराबबंदी का वादा: 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगाने का एक महत्वपूर्ण वादा किया था. पांच साल तक सत्ता में रहने के बावजूद शराबबंदी का वादा कभी लागू नहीं किया गया.

बुनियादी ढांचे को पीछे ले जाने का आरोप:कांग्रेस सरकार मुख्य रूप से किसानों के कल्याण और अन्य सामाजिक क्षेत्र के खर्च पर ध्यान केंद्रित कर रही है. पिछले पांच वर्षों में बुनियादी ढांचे का विकास एक चुनौती रही है. कम से कम शहरी इलाकों में सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे का विकास एक अन्य कारक हो सकता है, जो कांग्रेस के खिलाफ गया.

भाजपा ने राज्य में सड़कों की खस्ता हालत को उजागर करते हुए कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाए. इसमें दावा किया गया कि कांग्रेस नेताओं ने जन कल्याण के लिए दी गई धनराशि को अन्य मदों में खर्च कर दिया, जिससे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण आबादी बेहतर सड़कों से वंचित रह गई.

ट्राइबल फैक्टर: आदिवासियों और धर्मांतरित ईसाइयों के बीच कलह, साथ ही नीतिगत बदलावों पर असंतोष ने बस्तर बेल्ट में कांग्रेस के लिए चुनौतियां पेश कीं. जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण आदिवासी मुद्दों को संबोधित करने में कांग्रेस विफल रही.

सत्ता विरोधी लहर: कई योजनाएं शुरू करने और नई योजनाओं का वादा करने के बावजूद सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस की राह में बड़ी बाधा बन गई.

नक्सलवाद और सुरक्षा चिंताएं:कांग्रेस सरकार ने नक्सलवाद के मुद्दे पर कुछ भी ठोस नहीं कहा और विफलता का ठीकरा केंद्र पर फोड़ते रहे. बघेल सरकार की अस्पष्ट, अप्रभावी नीति और नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा तंत्र के प्रति लापरवाही ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया.

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Last Updated : Dec 4, 2023, 6:19 AM IST

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