रायपुर: छत्तीसगढ़ के 'रसखान' कहे जाने वाले मशहूर कवि मीर अली मीर ने ETV भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई चीजें साझा की. मीर अली कवि होने के साथ-साथ गीतकार भी हैं. प्रदेश के सबसे बड़े साहित्य पुरस्कार पंडित सुंदरलाल शर्मा से मीर अली मीर को नवाजा जा चुका है. उनका जन्म 15 मार्च 1953 में कबीरधाम में हुआ था. वर्तमान में वे साहित्य एवं कला परिषद के अध्यक्ष हैं.
नंदा जाही का रे मीर अली की बहुत ही प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है. इस रचना के माध्यम से मीर अली ने विलुप्त हो रही ग्रामीण संस्कृति, रीति-रिवाजों और संस्कारों की याद दिलाई है. उनकी कविता में खेती किसानी, पुराने समय में बुजुर्गों, महिलाओं के उपयोग किए जाने वाले और प्रचलित वस्तुओं की याद शामिल रहती है. मीर अली की मोहक आवाज में ठेठ छत्तीसगढ़ शब्दों के साथ काव्य पाठ सुनकर श्रोता मिट्टी की खुशबू से सराबोर हो जाते हैं.
खेल शिक्षक रहे हैं मीर अली
ETV भारत के साथ बातचीत में मीर अली ने बताया कि 'उनका जन्म कवर्धा में हुआ था. उनकी शिक्षा राजिम में हुई. जिसके बाद उन्होंने खेल शिक्षक के रुप में अपनी सेवाएं दीं. 32 साल तक वे रायपुर के सारागांव के एक स्कूल में कार्यरत थे और यहीं से उनकी काव्यपाठ की यात्रा शुरू हुई. मीर अली को बचपन से ही साहित्य में रुचि थी.
मीर अली रेडियो से थे काफी प्रभावित
काव्यपाठ में उनकी प्रेरणा को लेकर पूछे गए सवाल पर मीर अली ने बताया कि 'बचपन से ही वे रेडियो से काफी प्रभावित रहे हैं. रेडियो में जब भी कोई साहित्यिक कार्यक्रम चलता था तो मीर अली रेडियो की ओर खींचे चले जाते थे. छत्तीसगढ़ के मशहूर कवि पवन दीवान और कृष्ण रंजन की कविताएं वे कवि सम्मेलन में सुना करते थे जिससे उन्हें काव्यपाठ में काफी प्रेरणा मिली.
पूरे मंत्रीमंडल के सामने किया था पहला काव्यपाठ