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जिला अस्पताल की पड़ताल: नवजात के साथ जमीन पर बैठे परिजन, नर्सरी इंचार्ज ने कहा- हमारी संस्कृति में है जमीन पर बैठना - Children die due to hospital negligence

रायपुर के पंडरी जिला अस्पताल में नवजातों की मौत की खबर के बाद ETV भारत की टीम अस्पताल पहुंची. अस्पताल में मरीजों के परिजन नवजातों के साथ नीचे जमीन पर ही बैठे मिले. परिजनों का कहना था कि जमीन पर बैठने से संक्रमण का डर बना हुआ है. इधर नर्सरी इंचार्ज ने अजीबो-गरीब बयान देते हुए ये कहा कि हमारी संस्कृति और परंपरा में जमीन पर बैठने को आरामदायक माना गया है इसलिए लोग जमीन पर बैठ रहे हैं. अव्यवस्था वाली कोई बात नहीं है.

ETV bharat investigates the arrangements in the hospital in connection with death of newborns at Pandri District Hospital Raipur
पंडरी जिला अस्पताल

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Published : Jul 23, 2021, 7:21 PM IST

रायपुर: राजधानी के पंडरी स्थित जिला अस्पताल में मंगलवार को नवजात शिशुओं की मौत की खबर आई थी. इसके बाद परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जमकर हंगामा मचाया था. परिजनों ने आरोप लगाया था कि हॉस्पिटल में एक के बाद एक सात बच्चों की मौत हुई है. अस्पताल प्रबंधन ने सात बच्चों की मौत को भ्रामक बताते हुए सिर्फ दो बच्चों की मौत की पुष्टि की थी. घटना के बाद ETV भारत की टीम पंडरी जिला अस्पताल में व्यवस्थाओं का जायजा लेनी पहुंची तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आई. ICU वार्ड के बाहर परिजन नवजात को लिए जमीन पर बैठे मिले. मामले में हद तो तब हो गई जब नर्सरी इंचार्ज ने जमीन पर बैठने को संस्कृति और परंपरा का नाम दे दिया.

पंडरी जिला अस्पताल में अव्यवस्थाएं

इतने बड़े शासकीय अस्पताल में न तो परिजनों के लिए बैठने की उचित व्यवस्था है न ही नवजातों के लिए. ICU वार्ड से जब हमारी टीम आगे नर्सरी वार्ड की ओर बढ़ी तो बड़ी संख्या में परिजन कॉरिडोर में नीचे जमीन पर ही बैठे नजर आए.

बैठने की नहीं है व्यवस्था, दहशत में परिजन

आमापारा निवासी पूर्णिमा सिंह अपनी बहू की डिलीवरी करवाने के लिए पांच दिन पहले पंडरी जिला अस्पताल पहुंची थी. पूर्णिमा ने ETV भारत को बताया कि उनकी बहू की डिलीवरी गुरुवार को हुई है. बहू ICU में है. प्रसूता के आईसीयू में होने के कारण वे नवजात को बाहर लेकर बैठी हुई हैं. पूर्णिमा कहती हैं कि 'बच्चे को लेकर जमीन में ही बैठे हैं. बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है. बहुत से लोग भी यहां आते हैं. किसी को खांसी है तो किसी को सर्दी. ऐसे में बच्चों को इतने लोगों के बीच में रखना भी ठीक नहीं है. जिसकी वजह से हम लोग डरे हुए हैं.

भीड़ में नवजात को संक्रमण का खतरा बढ़ा

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अस्पताल प्रबंधन ने संस्कृति, परंपरा की दी दुहाई

पंडरी जिला अस्पताल के नर्सरी इंचार्ज डॉक्टर ओंकार खंडेलवाल ने बताया कि बच्चों की मां ICU में हैं. चूंकि माताएं ICU में होने की वजह से बच्चों को उनके साथ नहीं रखा जा सकता इसलिए परिजनों को बच्चों को सौंप दिया गया है. इंचार्ज ने बताया कि परिजन नवजात को लेकर जहां बैठे हैं, वो वार्ड की जगह नहीं है बल्कि GICU (gynecological icu) के बाहर का कॉरिडोर है. जहां परिजनों के बैठने के लिए कुर्सियां रखी हुई हैं. वहां परिजन बैठे हुए हैं.

पंडरी जिला अस्पताल

डॉक्टर ओंकार खंडेलवाल ने आगे कहा कि 'हिंदुस्तानी संस्कृति में हमेशा यह देखने को मिलता है कि महिलाएं और पुरुष भी जमीन पर बैठना पसंद करते हैं. आप उनके लिए कितनी भी कुर्सियां लगाते हैं, आराम उनको जमीन में बैठकर ही मिलता है. सवाल यहां अव्यवस्था का न होकर परंपरा और संस्कृति का है'.

परंपरा और संस्कृति रातों रात नहीं बदली जा सकती

डॉ खंडेलवाल ने आगे बताया कि 'जमीन पर बैठने की परंपरा और संस्कृति रातों-रात बदली नहीं जा सकती. यह आदत परिवर्तन से होता है. धीरे-धीरे हम उम्मीद करेंगे कि लोग अपनी आदत में बदलाव लाएंगे और लोग खाली कुर्सियों पर बैठेंगे. उन्होंने कहा कि ये दृश्य अव्यवस्था का नहीं है. यह परंपरा और संस्कृति का दृश्य है. इस चीज को समझना जरूरी है'.

'दूसरी बात यह है कि मेकाहारा का जो सिस्टम जिला अस्पताल में शिफ्ट है. यह ट्रांजियंट व्यवस्था है. कोविड-19 काल में यह एक टेंपरेरी व्यवस्था की गई है. बड़े अस्पताल को छोटे अस्पताल में शिफ्ट किया गया है तो निश्चित रूप से जगह की कमी तो बनी रहेगी. जैसे ही हम अपने मूल स्थान में वापस जाएंगे तो नवजात के लिए कोई बेहतर व्यवस्था कर पाएंगे'.

जमीन पर बैठे मरीजों के परिजन

तीन माह में 112 बच्चों की गई जान

जिला अस्पताल पंडरी में बच्चों की मौत को लेकर मंगलवार को परिजनों ने जमकर हंगामा मचाया. हालांकि मौके पर पहुंची पुलिस ने मामले को शांत करा दिया. नवजातों की मौत का मामला सिर्फ एक दिन का नहीं है. अस्पताल से मिले आंकड़े के मुताबिक बीते 3 माह में ही 112 बच्चों की मौत हुई है. इसमें अप्रैल माह में 29, मई में 44 और जून में 39 बच्चों की जान गई है. अस्पताल में बच्चों के लिए 24 वेंटिलेटर और 46 बैड ऑक्सीजन युक्त हैं, जबकि हर माह 100 से 150 मरीज भर्ती होते हैं.

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