रायपुर:ऐसी ही 100 साल पुरानी एक पत्रिका का उल्लेख ईटीवी भारत के माध्यम से करने जा रहे हैं. इस पत्रिका की एक खास बात यह थी कि अंग्रेजों की जेल में रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ लिखी गई थी. इतना ही नहीं खबरों की जानकारी के लिए इस पत्रिका में हाथ से बने चित्र का भी इस्तेमाल किया गया था. इस महत्वपूर्ण जानकारी को प्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रामेंद्र नाथ मिश्र ने ईटीवी भारत के साथ साझा की. उन्होंने इस पत्रिका के बारे में क्या जानकारी दी...आइए जानतें हैं...
अंग्रेजों की जेल में रह उन्हीं के खिलाफ पं. सुंदरलाल शर्मा ने 100 साल पहले लिखी थी पत्रिका, जानिये क्या था
पं. सुंदरलाल शर्मा ने 100 साल पहले अंग्रेजों की जेल में अंग्रेजों के खिलाफ लिखा था. यह हस्तलिखित द्विमासिक पत्रिका, जानिए इससे कुछ जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य...
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प्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रामेंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि देश के इतिहास में शायद ही पहली बार ऐसा हुआ है जो अंग्रेजों की जेल में बंद रहते हुए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान किसी ने हस्तलिखित पत्रिका निकाली हो. द्विमासिक पत्रिका के छह अंक रायपुर जेल से निकाले गए. यह पत्रिका साल 1921-22 में निकाली गई. इस पत्रिका को निकालने वाले थे 'पंडित सुंदरलाल शर्मा'. वह असहयोग आंदोलन के दौरान जेल में बंद थे और इस बीच उन्होंने हस्तलिखित पत्रिका निकाली.
पंडित सुंदरलाल शर्मा ने इस पत्रिका का नाम 'श्री कृष्ण जन्म स्थल समाचार पत्र' द्विवार्षिक सचित्र रखा था. सुंदरलाल शर्मा अच्छे लेखक के साथ एक अच्छे चित्रकार भी थे. उन्होंने जेल में रहते हुए जेल अधिकारियों द्वारा सेनानियों के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार का वर्णन भी अपनी पत्रिका में किया है. उनकी इस पत्रिका को 100 साल पूरे हो गए हैं. यह पत्रिका भारत के इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. जिसे संजोने की जरूरत है. रामेंद्र नाथ ने इस पत्रिका का नाम श्री कृष्ण जन्म स्थल रखने के पीछे भी वजह बताई. उन्होंने कहा कि क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था और इसी कारण से पंडित सुंदरलाल शर्मा ने इस पत्रिका का नाम श्री कृष्ण जन्म स्थल रखा था.
रामेंद्र नाथ ने बताया कि इस पत्रिका में सुंदरलाल शर्मा ने अच्छे लेख, कविता, विचार और आजादी के बाद जेल का स्वरूप कैसा होगा, उसका उल्लेख किया गया था. खास बात यह थी कि सुंदरलाल शर्मा अंग्रेजों की जेल में रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ लिखते रहे जो कि साहस भरा काम था. उस समय सेनानी जेल को आश्रम कहते थे और वहां आजादी के लिए काम करते थे. इतिहास की दृष्टि से यह पत्रिका काफी महत्वपूर्ण दस्तावेज है
रामेंद्र नाथ ने बताया कि पंडित सुंदरलाल शर्मा जेल में रहते हुए आजादी की लड़ाई से संबंधित तात्कालिक घटनाओं का उल्लेख इस पत्रिका में करते थे. उनकी पत्रिका में घटनाओं को एक अलग ही रंग दिया गया था. वे कई घटनाओं का उल्लेख व्यंग्यात्मक तरीके से भी करते थे. रामेंद्र नाथ का कहना है कि मैं तो सुंदरलाल शर्मा को छत्तीसगढ़ का पहला व्यंग्यकार भी मानता हूं. उस दौरान अंग्रेजों के अत्याचार को सुंदरलाल शर्मा व्यंग के माध्यम से भी अपनी पत्रिका में लिखते थे. रामेंद्र नाथ ने बताया कि पंडित सुंदरलाल शर्मा को छत्तीसगढ़ का 'गांधी' कहा जाता है. उन्होंने कई किताबें लिखी है. समाज सुधार के क्षेत्र में काम किया, समाज के कुरीतियों को दूर करने के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
रामेंद्र नाथ ने कहा कि यह पुस्तक देश और जेल के इतिहास के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज है. इसे समझाने की जरूरत है. इस पत्रिका को जल्द प्रकाशित का प्रयास उनके द्वारा किया जा रहा है. जिससे इसके बारे में अधिक से अधिक लोगों तक जानकारी पहुंचे कि किस तरह उस समय जेल में रहते हुए सारी पाबंदियों के बीच पत्रिका लिखी गई, जबकि उस जेल में न तो कागज पहुंच सकता था. ना है और ना ही कलम बावजूद इसके पत्रिका निकालना और वह भी अंग्रेजों की जेल में रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ निकालना यह काफी साहस भरा काम है. इस दौरान रामेंद्र नाथ ने पुस्तक में लिखित कुछ लेख और चित्र के माध्यम से उल्लेखित बातों की भी जिक्र किया.
रामेंद्र नाथ कहा कि मेरी जानकारी में ऐसा अब तक नहीं आया है कि किसी ने अंग्रेजों के शासन काल में जेल में बंद रहते हुए हस्तलिखित पत्रिका निकाली हो और वह भी तब जब जेल में किसी भी चीज का पहुंचना नामुमकिन हो. उस दौरान कागज इंक पेन पहुंचना. उसके बाद पत्रिका के छह अंक निकालना अपने आप में एक साहस भरा काम है.
कौन है पंडित सुंदरलाल शर्मा
छत्तीसगढ़ के 'गांधी' के रूप में विख्यात तथा छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रथम कल्पनाकार पंडित सुंदरलाल शर्मा का जन्म 21 दिसंबर 1881 में ग्राम चमसूर, राजिम में हुआ था. राजनीति के साथ-साथ वे सामाजिक कार्यों का भी निर्वहन करते थे. समाज में व्याप्त कुरीतियों छुआछूत एवं जाति प्रथा के घोर विरोधी थे. छत्तीसगढ़ के अछूत एवं पिछड़ी जातियों को समाज में उचित स्थान और सम्मान दिलाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे. वे स्वतंत्र आंदोलन के वीर सिपाही थे. पंडित सुंदरलाल शर्मा का निधन 28 सितंबर 1940 में हुआ था.