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हिम्मत न छोड़ें: इन बुजुर्गों ने कोरोना को हराया, एक ने तो दो बार जंग जीती

कोरोना की पहली लहर बुजुर्गों के लिए बहुत खतरनाक थी. दूसरी लहर ने तो मानो उम्र का बंधन तोड़ दिया. कोरोना की दूसरी लहर में हर उम्र के लोग हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं. लेकिन ETV भारत आपको कुछ ऐसे बुजुर्गों के बारे में बता रहा है जिन्होंने इस उम्र में भी कोरोना को मात दे दी. इनमें भी एक बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्होंने 90 साल की उम्र में भी कोरोना को दो बार हराया है.

old persons defeating corona
बुजुर्गों ने दी कोरोना को मात

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Published : Apr 23, 2021, 9:33 PM IST

हैदराबाद: बहते आंसू, कराहते मरीज, अस्पताल और ऑक्सीजन के लिए बदहवास परिवार देखते-देखते जब आप हिम्मत हारने लग जाएं तो इन चार बुजुर्गों से मिलिए. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की दादियों ने कोरोना को मात देकर नई जिंदगी शुरू की है. महाराष्ट्र के 90 साल के दादा जी ने तो 6 महीने के अंदर दो-दो बार इस महामारी को पटखनी दे दी. ये वो लोग हैं जिनका ऑक्सीजन लेवल गिरा, अस्पताल पहुंचे लेकिन उनकी हिम्मत के आगे कोरोना हार गया.

बुजुर्गों ने तोड़ा उम्र का बंधन

कोरोना की पहली लहर बुजुर्गों के लिए बहुत खतरनाक थी. दूसरी लहर ने तो मानो उम्र का बंधन तोड़ दिया. हर एज के लोग हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं. दम तोड़ रहे हैं. लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए. जब मन में हताशा घर करे, तब 96 साल की शांतीबाई दुबे, 76 साल की यासमीन रहमान और कस्तूरी बाई साहू के साथ साथ 90 साल के पांडुरंग आत्माराम आगलावे से मिलिए.

उज्जैन की 96 साल की शांतिबाई ने जीती जंग

मध्य प्रदेश के उज्जैन की रहने वाली 96 साल की शांतिबाई दुबे को कोरोना हुआ. 8 अप्रैल को उन्हें इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कालेज में भर्ती किया गया. शांतिबाई के फेफड़े में इंफेक्शन 80 फीसदी तक बढ़ गया था. हालत इतनी बिगड़ी कि उन्हें ऑक्जीसन पर रखा गया. अच्छे इलाज और अपने हौसले से शांतिबाई ने कोरोना को हरा दिया. वे अपने जन्मदिन के दिन ही डिस्चार्ज हुईं. शांतिबाई का जन्म 1925 में रामनवमी के दिन हुआ था और इसी दिन कोरोना को हराकर उन्हें एक नया जीवन मिला.

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90 साल के बुजुर्ग ने 6 महीने में 2 बार कोरोना को हराया

महाराष्ट्र के बीड जिले की केज तहसील के आडस गांव के रहने वाले पांडुरंग आत्माराम आगलावे ने दो बार कोरोना को मात दी है. पांडुरंग आत्माराम आगलावे को 6 महीने के अंदर दो बार कोरोना हुआ लेकिन उन्होंने जंग जीती और लौटकर आए. पांडुरंग कहते हैं अगर हम उम्मीद न खोएं तो कोरोना से जीत सकते हैं. वे कहते हैं कि सकारात्मक रहें, डरें नहीं तो कोविड को हरा सकते हैं. उन्होंने सभी से कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करने की अपील की है.

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पांडुरंग आगलावे को पहली बार कोरोना पिछले साल नवंबर में हुआ. 13 नवंबर, 2020 को वे पहली बार पॉजिटिव हुए. उन्हें केज के कोविड केंद्र में भर्ती कराया गया था. वे ठीक होकर लौटे. 30 मार्च, 2021 को उन्हें कोरोना का टीका लगा. सर्दी-खांसी होने के बाद 3 अप्रैल को उन्होंने दुबारा टेस्ट कराया. इस बार फिर वे पॉजिटिव निकले. वो मुश्किल से सांस ले पा रहे थे. उनका एचआरसीटी स्कोर 18 था, जो हाई रिस्क माना जाता है. लेकिन उन्होंने फिर कोरोना को हराया. वे 17 अप्रैल को डिस्चार्ज होकर घर लौटे.

76 साल की यासमीन का 77 हो गया था ऑक्सीजन लेवल

छत्तीसगढ़ में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच दुर्ग-भिलाई से अच्छी खबर आई. कचांदुर के चंदूलाल चंद्राकर कोविड केयर सेंटर में 76 वर्षीय दादी यासमीन रहमान ने कोविड से जंग जीती. उन्हें 2 अप्रैल को चंदूलाल चंद्राकर कोविड केयर हॉस्पिटल लाया गया था. जब यासमीन अस्पताल लाई गईं तब उनका ऑक्सीजन लेवल सिर्फ 77 था. इसके बाद उनका इलाज शुरू हुआ और उन्हें लगातार ऑक्सीजन दिया गया. 17 दिन यास्मीन का इलाज चला और वे 19 अप्रैल को डिस्चार्ज होकर घर लौटीं.

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76 साल की कस्तूरी ने कोरोना को हराया

कचांदुर स्थित चंदूलाल चंद्राकर कोविड केयर सेंटर से ही दूसरी अच्छी खबर भी मिली. 76 साल की बुजुर्ग महिला कस्तूरी बाई साहू ने कोरोना को हरा दिया. कस्तूरी बाई साहू बलौदा बाजार जिले की रहने वाली हैं. वे फिलहाल दुर्ग में अपने रिश्तेदार के पास रह रही हैं. उन्हें 17 अप्रैल को काफी नाजुक हालत में भर्ती कराया गया था. महज 5 दिनों में ही वे स्वस्थ हो गईं. वे अपने घर वापस लौट गई हैं.

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एडमिट होते वक्त उनका ऑक्सीजन लेवल 85 से नीचे था. वो खाना भी नहीं खा रही थीं. इस वजह से मेडिकल टीम के लिए उपचार देना बड़ी चुनौती थी. बुजुर्ग महिला के शरीर कमजोरी आ गई थी, साथ ही वे डायबिटीज और हाइपरटेंशन की मरीज थी. भर्ती होने के बाद उन्हें मेडिसिन दी गई और इलाज शुरू किया गया. उन्हें 5 दिनों तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया था. अब वे स्वस्थ होकर घर लौट चुकी हैं.

हिम्मत और हौसले से बड़ा कुछ नहीं है. नकारात्मकता से हताश होने से पहले हमें उम्मीद की किरणें तलाशनी चाहिए. ये चारों बुजुर्ग न सिर्फ हमें हौसला देते हैं बल्कि ये भरोसा भी दिलाते हैं कि सब ठीक हो जाएगा.

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