रायपुर :छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए जातियों को साधना किसी भी दल के लिए सबसे पहला काम होता(effect of caste equation in Chhattisgarh election) है. जिस जाति और समाज के लोग ज्यादा हैं उनका रूझान जिस भी पार्टी की तरफ गया यहां उसकी सरकार बनने की संभावना ज्यादा रहती है. प्रदेश की यदि बात करें तो साहू और आदिवासी समाज के लोगों की काफी संख्या है. दावा तो यह भी किया जाता है कि इन दोनों समुदाय के समर्थन से ही प्रदेश में सरकार बनती है. दोनों ही समाज जिस पार्टी के साथ खड़े होते हैं.यहां उनकी ही सरकार बनती(Chhattisgarh election parties) है.
मंत्री भी दे चुके हैं बयान :इस तरह के संकेत कुछ दिन पहले आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने भी दिया था उन्होंने कहा था कि " साहू और आदिवासी बीजेपी को निपटा देंगे.'' उनके इस बयान के बाद छत्तीसगढ़ सियासत में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या वाकई में साहू और आदिवासी वोट में सरकार बना और गिरा सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर साहू और आदिवासी समाज के लोगों की छत्तीसगढ़ में कितनी संख्या है. कितने मतदाता हैं जो सरकार बनाने में अपना योगदान देते हैं. क्या वाकई में साहू और आदिवासी समाज चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है या फिर अन्य समाजों की भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.आखिर किस दल के लिए साहू और आदिवासी समाज चुनौती बना है.
स्वास्थ्य मंत्री का दावा है कुछ और :साहू और आदिवासी वोट बैंक को लेकर भूपेश सरकार के कद्दावर मंत्री टीएस सिंह देव का कहना है कि '' छत्तीसगढ़ में धर्म और जाति के आधार पर चुनाव नहीं होते हैं यहां मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ा जाता है सभी दलों में सभी वर्ग के समर्थक है ऐसा नहीं किसी विशेष वर्ग का समर्थन किसी विशेष पार्टी को मिल रहा हूं . आदिवासी समाज की बात की जाए तो बस्तर में हमारी कभी 12 में से 1 सीट आई है , और आज 12 की 12 सीटें कांग्रेस के पास है. सरगुजा संभाग की बात की जाए तो वहां से 14 सीटों में से एक समय कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी और आज 14 में से 14 सीट कांग्रेस को मिली है इसलिए कहा जा सकता है कि यहां का मतदाता किसी दल को लेकर फिक्स नहीं है कि उसके द्वारा उसी दल को वोट दिया जाएगा."
बीजेपी की है अपनी दलील :वहीं बीजेपी इन वर्गों कि चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका मानती है. बीजेपी नेता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि ''एक बड़ी संख्या ट्राइबल क्षेत्र की है. जो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाती है. विधानसभा चुनाव 2003, 2008 और 2013 में इनका बहुत बड़ा सहयोग मिला. लेकिन 2018 में किन्ही कारणों से हम पीछे रह गए और सरकार नहीं बना सके. लेकिन इनकी महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.
छत्तीसगढ़ में जातीय समीकरण :छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. अन्य पिछड़ा वर्ग में करीब 95 से अधिक जातियां शामिल हैं. छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित है. इन सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं.