रायपुर : कॉन्वेंट स्कूल कल्चर में बच्चों को पढ़ाने की परंपरा चली आ रही है. आधुनिक परिवेश में जी रहा बच्चा पिता का सम्मान करना भूल जाता है. अपने कर्म को भूल जाता है. यही कारण है कि पिता पुत्र के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है. बेटा पिता की संपत्ति पर अपना अधिकार तो चाहता है, लेकिन पिता की सेवा करने में जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाता. इसके लिए वह कभी-कभी माता पिता को वृद्धाश्रम तक में भेज देता है. कभी कभी पिता खुद ही तकलीफों से आजिज आकर घर छोड़कर चले जाते हैं. इस फादर्स डे पर जानिए पिता से रिश्ते मजबूत करने के लिए क्या क्या उपाय किए जा सकते हैं. इसमें उसका खुद भी फायदा छिपा है.
Fathers Day 2023: पिता पुत्र के रिश्तों में क्यों पड़ रही दरारें, सूर्य को अर्घ्य देने से होता है फायदा
एक पिता अपने बेटे को हंसना बोलना तो सिखाता ही है, उंगली पकड़कर पथरीली राह नापना भी बताता है. जीवन के हर उतार चढ़ाव से सतर्क करते हुए बेटे को सुखी देखना ही पिता का आखिरी मकसद होता है. मगर माॅडर्न जमाने में बाप बेटे के रिश्तों में खटास के किस्से भी आम हो चले हैं. इस फादर्स डे यदि आप वाकई अपने पिता को खुशियों का गिफ्ट देने चाहते हैं तो जानिए ये उपाय.
बेटे को देना चाहिए सूर्य भगवान को अर्घ्य : ज्योतिष एवं वास्तुविद डॉ महेंद्र कुमार ठाकुर ने बताया कि"जहां तक ज्योतिषी आधार का सवाल है. नवम भाव, नवम भाव का स्वामी और पिता का कारक सूर्य अगर कुंडली में अच्छी और शुभ स्थिति में है. केंद्र और त्रिकोण में है, तो ऐसी स्थिति में पिता पुत्र के बीच अच्छे संबंध बने रहते हैं. पुत्र पिता का आज्ञाकारी बना रहता है. पिता की सेवा करता है. प्रेम भाव और सम्मान करता है. यदि स्थिति विपरीत हो, सूर्य जो है. राहु शनि अलग ग्रहों से पीड़ित हो. युति की दृष्टि हो, तो पिता और पुत्र के बीच में दरार आ जाती है. दूरियां बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में इस समस्या के समाधान के लिए पुत्र को सूर्य देवता को अर्ध्य देना चाहिए. अर्ध्य में एक चुटकी नारंगी बंदन, एक लाल फूल के साथ ही एक चुटकी पीसी हल्दी डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. एक चुटकी काला तिल भी जल में डालकर अर्ध्य दिया जा सकता है. इससे पिता पुत्र के बीच दूरियां कम होंगी और सूर्य नारायण की कृपा भी जातक पर होगी."
सनातन धर्म में पिता का सर्वोच्च स्थान :सनातन धर्म में पिता का स्थान सर्वोच्च रहा है. पिता ही परिवार का मुखिया रहा है और परिवार में एकछत्र उसका आधिपत्य रहा है. संयुक्त परिवार से पुत्र हमेशा पिता का आज्ञाकारी होता था. भगवान राम इसके साक्षात प्रमाण हैं. जिन्होंने पिता की इच्छापूर्ति के लिए जहां राजसत्ता को छोड़कर 14 वर्षों के वनवास में चले गए ऐसे अनेक उदाहरण है.लेकिन आधुनिक युग में ऐसा नहीं है.पाश्चात्य संस्कृति के कारण पिता और पुत्र के बीच गहरी खाई बन जाती है.