रायपुर: छत्तीसगढ़ में 'के-डिपॉजिट' को लेकर सियासत गरमाई हुई (Politics on K deposit in Chhattisgarh ) है. पक्ष से लेकर विपक्ष तक मुद्दे में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. जहां एक और विपक्ष 'के-डिपॉजिट' को सरकार के दिवालियापन होने का संकेत बता रही है. तो वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए उनके कार्यकाल में भी 'के-डिपॉजिट' की जानकारी सार्वजनिक कर रही है. इतना ही नहीं सत्ता पक्ष इसे एक सामान्य प्रक्रिया बता रही है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या 'के-डिपॉजिट' सरकार के दिवालियापन का संकेत हैं या फिर यह एक सामान्य प्रक्रिया है?
इसकी विस्तृत जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता (Economist Professor Tapesh Gupta opinion on K deposit) से चर्चा की और जानने की कोशिश की कि आखिर 'के-डिपॉजिट' है क्या? और इसका राज्य सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ सकता है? क्या वाकई में सरकार आज दिवालियापन की ओर जा रही है? या फिर ये महज सियासी बयानबाजी है?
क्या है 'के-डिपॉजिट'
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान तपेश गुप्ता ने बताया कि यह सरकारी खजाने में जमा किए जाने वाली राशि है, जो कि कोई एरियर्स, किसी यूनिट की सर प्लस राशि, किसी योजना की बची हुई राशि है. जिसे ब्याज रहित रूप में सरकारी खजाने में जमा किया जाता है. जिसे सरकार एक निश्चित समय अवधि के बाद वापस कर देती है. यह एक प्रकार का कर्ज है, जो कि ब्याज रहित है. यानी कि इस पर सरकार को किसी भी तरह के ब्याज संबंधित विभाग या उपक्रम को नहीं देना पड़ता है.
किससे लिया जाता है 'के डिपॉजिट'
तपेश कहते हैं कि राज्य सरकार विभिन्न इकाइयों से यह राशि एकत्र करती है. जैसे पर्यटन विभाग, सीआईडीसी, बिजली बोर्ड और माध्यमिक शिक्षा मंडल जैसी संस्थाएं. यदि इनके पास अतिरिक्त राशि बचती है तो सरकार उसे कर्ज के रूप में लेती है और इस पर सरकार संबंधित विभागीय या उपक्रमों को कोई ब्याज नहीं देना पड़ता है.
'के डिपॉजिट' लेना सरकार के दिवालियापन का नहीं है संकेत
तपेश गुप्ता बताते हैं कि 'के डिपॉजिट' लेना सरकार के दिवालियापन का संकेत नहीं है. सरकार इस राशि से सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करती है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है.
'के डिपॉजिट' का उपयोग किस प्रकार होना चाहिए
तपेश कहते हैं कि जो 'के डिपॉजिट' लिया गया है उसका समुचित उपयोग हो. पूंजीगत व्यय हो और आर्थिक विकास के लिए कोई काम किया जाए. तो ज्यादा अच्छा है, इसे मुफ्त में बांटने वाली योजनाओं या फिर अपव्यय के लिए खर्च किया जाना उचित नहीं है. इस पर प्रशासन को एक बार विचार करना जरूरी है.
वित्तीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लिया जाता है 'के-डिपॉजिट'
गुप्ता कहते हैं कि निश्चित तौर पर राज्य सरकार के द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए काफी खर्च किया जा रहा है. उसका वित्तीय भार सरकार पर हो रहा है. उसकी पूर्ति के लिए 'के-डिपॉजिट' की व्यवस्था की गई है. वित्त व्यवस्था को मजबूत करने के लिए यह लिया जा रहा है.
'के-डिपॉजिट' लेने के लिए अपनानी होती है यह प्रक्रिया
तपेश कहते हैं कि इसके लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित करवाना, राज्यपाल का अनुमोदन प्राप्त करना, यह उसकी वित्तीय प्रक्रिया है. वित्तीय प्रक्रिया के माध्यम से ही यह लिया जाता है.यह नहीं कि सरकार ने यदि कह दिया तो वह पैसा उसे मिल गया. वित्त विभाग का एक पैमाना तय होता है. राज्य सरकार मनमाफिक कर्ज नहीं ले सकती. आरबीआई के भी कुछ गाइडलाइन हैं.
योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए सरकार पर बढ़ता जा रहा है कर्ज
तपेश बताते हैं कि ये जरूर है कि छत्तीसगढ़ सरकार पर कर्ज थोड़ा ज्यादा बढ़ता जा रहा है, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए यह जरूरी भी है. ऐसे में जनता को तय करना है कि वह इस प्रकार की योजनाओं का लाभ ले या ना ले.
पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी लिया था 'के-डिपॉजिट'
गुप्ता कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ इस सरकार ने ही 'के-डिपॉजिट' लिया है. इसके पहले भी सरकारों के माध्यम से 'के-डिपॉजिट' लिया गया है. वित्तीय वर्ष 2013-14 में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी 'के-डिपॉजिट' लिया था और यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे राज्य सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपनाती है.
निश्चित समय के बाद किस्तों में या फिर एकमुश्त लौटाना होता है कर्ज