रायपुर: भूपेश बघेल सरकार ने आदिवासी अंचल बस्तर में एक नई पहल करते हुए 40 साल से लंबित बहुद्देशीय बोधघाट सिंचाई परियोजना के काम को आगे बढ़ाने की कवायद शुरू की है. केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद इसके सर्वे का काम भी शुरू किया गया है. लेकिन परियोजना के शुरू होते ही अब इसका विरोध भी शुरू हो गया है. स्थानीय लोग, आदिवासी समाज, जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी में हैं. यहां तक की पार्टी के अंदर ही बोधघाट परियोजना को शुरू करने को लेकर सहमति नहीं बन रही है. इससे साफ है कि परियोजना को लेकर सत्ता और संगठन में मतभेद है.
सरकार का दावा है कि बोधघाट परियोजना बस्तर संभाग में खेती-किसानी और समृद्धि का नया इतिहास लिखेगी. परियोजना की लागत 22 हजार 653 करोड़ रूपये है. इससे दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिले में 3 लाख 63 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी. परियोजना के जरिए 300 मेगावॉट बिजली उत्पादन भी किया जाना प्रस्तावित है. यह परियोजना इन्द्रावती नदी पर प्रस्तावित है. यह परियोजना गीदम से 10 किलोमीटर और संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना के विकास के लिए इन्द्रावती नदी विकास प्राधिकरण का भी गठन किया गया है.
तेजी से होगा काम: रविंद्र चौबे
बस्तर और सरगुजा में सिंचाई का प्रतिशत काफी कम है. नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी योजना के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया जीवन दिया जा रहा है. इसमें यहां के नालों को रिचार्ज करने का काम किया जा रहा है. जिससे सिंचाई के लिए सतही जल और भूमिगत जल की उपलब्धता बढ़ेगी. कृषि मंत्री रविंद्र चौबे का कहना है कि परियोजना का काम तेजी से होगा. प्री फिजिबिलिटी के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी गई थी. केंद्र सरकार ने तत्काल अनुमति दे दी है.
परियोजना में बिजली उत्पादन भी प्रस्तावित
छत्तीसगढ़ का बहुउद्देशीय बोधघाट सिंचाई परियोजना के काम को आगे बढ़ने से पहले ही ब्रेक लगता दिखाई दे रहा है. इस बहुचर्चित परियोजना से प्रदेश में सिंचाई और बिजली व्यवस्था को सुदृढ़ किए जाने की योजना है. लेकिन इस विकास में एक वर्ग विशेष को अनदेखा किए जाने की बात सामने आ रही है. ये वो वर्ग है जिसने पेड़-पौधों-नदियों को परिवार का सदस्य माना और पर्यावरण को धरोहर की तरह संजोकर रखा. ये वर्ग हैं आदिवासी, जिनपर इस परियोजना से विस्थापन का खतरा मंडराने लगा है.