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SPECIAL: बोधघाट सिंचाई परियोजना को लेकर नेताओं में विवाद, अधर में लटका प्रोजेक्ट

राज्य सरकार की बहुद्देशीय बोधघाट परियोजना शुरू होने से पहले ही विवादों में आ गई है. विपक्ष तो विपक्ष, पार्टी के नेताओं में ही इस परियोजना को लेकर मतभेद दिखाई दे रहा है.

Controversy among leaders over Bodhghat irrigation project
बोधघाट परियोजना

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Published : Aug 15, 2020, 10:32 PM IST

रायपुर: भूपेश बघेल सरकार ने आदिवासी अंचल बस्तर में एक नई पहल करते हुए 40 साल से लंबित बहुद्देशीय बोधघाट सिंचाई परियोजना के काम को आगे बढ़ाने की कवायद शुरू की है. केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद इसके सर्वे का काम भी शुरू किया गया है. लेकिन परियोजना के शुरू होते ही अब इसका विरोध भी शुरू हो गया है. स्थानीय लोग, आदिवासी समाज, जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी में हैं. यहां तक की पार्टी के अंदर ही बोधघाट परियोजना को शुरू करने को लेकर सहमति नहीं बन रही है. इससे साफ है कि परियोजना को लेकर सत्ता और संगठन में मतभेद है.

बोधघाट सिंचाई परियोजना को लेकर नेताओं में विवाद

सरकार का दावा है कि बोधघाट परियोजना बस्तर संभाग में खेती-किसानी और समृद्धि का नया इतिहास लिखेगी. परियोजना की लागत 22 हजार 653 करोड़ रूपये है. इससे दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिले में 3 लाख 63 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी. परियोजना के जरिए 300 मेगावॉट बिजली उत्पादन भी किया जाना प्रस्तावित है. यह परियोजना इन्द्रावती नदी पर प्रस्तावित है. यह परियोजना गीदम से 10 किलोमीटर और संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना के विकास के लिए इन्द्रावती नदी विकास प्राधिकरण का भी गठन किया गया है.

तेजी से होगा काम: रविंद्र चौबे

बस्तर और सरगुजा में सिंचाई का प्रतिशत काफी कम है. नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी योजना के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया जीवन दिया जा रहा है. इसमें यहां के नालों को रिचार्ज करने का काम किया जा रहा है. जिससे सिंचाई के लिए सतही जल और भूमिगत जल की उपलब्धता बढ़ेगी. कृषि मंत्री रविंद्र चौबे का कहना है कि परियोजना का काम तेजी से होगा. प्री फिजिबिलिटी के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी गई थी. केंद्र सरकार ने तत्काल अनुमति दे दी है.

परियोजना में बिजली उत्पादन भी प्रस्तावित

छत्तीसगढ़ का बहुउद्देशीय बोधघाट सिंचाई परियोजना के काम को आगे बढ़ने से पहले ही ब्रेक लगता दिखाई दे रहा है. इस बहुचर्चित परियोजना से प्रदेश में सिंचाई और बिजली व्यवस्था को सुदृढ़ किए जाने की योजना है. लेकिन इस विकास में एक वर्ग विशेष को अनदेखा किए जाने की बात सामने आ रही है. ये वो वर्ग है जिसने पेड़-पौधों-नदियों को परिवार का सदस्य माना और पर्यावरण को धरोहर की तरह संजोकर रखा. ये वर्ग हैं आदिवासी, जिनपर इस परियोजना से विस्थापन का खतरा मंडराने लगा है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने बोधघाट परियोजना पर उठाए सवाल

परंपराओं से दूर हो जाएंगे आदिवासी: उदयभान

इंद्रावती नदी पर बनने वाली इस परियोजना को लेकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रमुख और छत्तीसगढ़ स्वाभिमान संस्थान के संस्थापक उदयभान सिंह चौहान​ का कहना है कि परियोजना को लेकर स्थानीय लोगों में भय का वातावरण है. उनका मानना है कि परियोजना के चलते वे अपने देवी देवता संस्कृति और परंपरा से दूर हो जाएंगे. साथ ही उस क्षेत्र की प्रकृति भी प्रभावित होगी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री देवसाय मरावी का कहना है कि इस परियोजना को पहले भी शुरू किए जाने की पहल की गई थी. उस दौरान तात्कालिक मुख्यमंत्री परियोजना को शुरू करने पर जोर दे रहे थे. लेकिन आदिवासियों ने इसका विरोध किया. क्योंकि इस परियोजना से वनवासियों का बड़ा हिस्सा प्रभावित होता.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने उठाए सवाल

आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का मानना है कि बस्तर के गांव इस परियोजना से उजड़ जाएंगे. उनका कहना है कि बस्तर का भला न हो ऐसी परियोजना की जरूरत ही क्या है. अरविंद नेताम ने सरकार से सवाल करते हुए कहा कि 40 साल पहले कांग्रेस की ही सरकार ने इस परियोजना को मंजूरी देने से मना कर दिया था. अब कांग्रेस की ही सरकार इसे मंजूरी दे रही है. नेताम ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार जमीनी स्तर के पहलुओं से अनजान है. क्योंकि जो बस्तर पहले था, आज भी उसकी भौगोलिक बनावट वैसी ही है. नेताम ने सरकार से सवाल किया है कि, पहले सरकार परियोजना को मंजूर करने के पीछे के आधार को स्पष्ट करें.

विपक्ष का सरकार पर निशाना

बोधघाट परियोजना को लेकर सत्ता और संगठन के बीच मतभेद खुलकर देखने को मिल रहा है. ऐसे में भाजपा भी कहां पीछे रहने वाली थी. भाजपा ने भी इस परियोजना को लेकर कांग्रेस सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने का कहना है कि राज्य सरकार इस परियोजना को शुरू करने जा रही है, लेकिन इसके लिए कोई तैयारी नहीं की गई है. उपासने का कहना है कि इस परियोजना से प्रभावित होने वाले ग्रामीण आदिवासियों से सरकार ने बात नहीं की, न ही परियोजना को लेकर लेकर आम सहमति बनाई गई है.

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