रायपुर:दुनियाभर में आज 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है. मातृभाषा दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्वभर में अपनी भाषा और सांस्कृतिक की विविधताओं के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाना है, ताकि दुनिया में बहुभाषिता को बढ़ावा मिल सके. अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हर साल 21 फरवरी को मनाया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार सबसे पहले बांग्लादेश से आया. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के सामान्य सम्मेलन ने 17 नवंबर 1999 में मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की. जिसमें फैसला लिया गया कि 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा.
जिस भाषा में जन्म के बाद बोलना शुरू करते हैं, जिस भाषा में हम सोचते हैं उसे हम अपनी मातृभाषा कह सकते हैं. जानकारों का कहना है कि कोई भी इंसान सबसे बेहतर अपनी मातृभाषा में सीखता है. इसलिए इसकी अहमियत और बढ़ जाती है. स्वामी विवेकानंद ने तो मातृभाषा को मां का दर्जा दिया है. हमारे देश में कई भाषाएं हैं जो अलग-अलग संस्कृति, सभ्यता और क्षेत्र की विशेषता को अपने कांधों पर रखे हुए हैं. हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां प्रमुख तौर पर छत्तीसगढ़ी बोली जाती है. इसे सरकार ने राजभाषा का भी दर्जा दिया है. वैसे प्रदेश में छत्तीसगढ़ी के साथ ही गोंडी, हल्बी भी समूचे बस्तर अंचल में बोली जाती है.
छत्तीसगढ़ में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई भी छत्तीसगढ़ी में हो रही है. ETV भारत ने मातृभाषा दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ी की एकैडमिक स्थिति और विकास को लेकर इससे जुड़े विशेषज्ञों-साहित्यकारों से बात की.
विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी पर पीजी
वर्तमान में छत्तीसगढ़ी में एमए करने वालों की अच्छी खासी तादाद हो गई है. पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में सबसे पहले पाठ्यक्रम में छत्तीसगढ़ी को शामिल कराने में अहम योगदान देने वाली डॉक्टर सत्यभामा आडिल ने छत्तीसगढ़ी में कामकाज खासतौर पर साहित्यिक कार्य बढ़ने को लेकर खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि यूजीसी की गाइड लाइन के आधार पर पहले हिंदी के सिलेबस में ही स्थानीय बोली के तौर पर छत्तीसगढ़ी का अध्याय जोड़ा गया. फिर इस पर अलग से पीजी कोर्स शुरू किया गया. उनका मानना है कि छोटी कक्षाओं में भी छत्तीसगढ़ी को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाया जाना चाहिए, साथ ही प्रयोग के तौर पर इतिहास-भूगोल जैसे विषयों की पढ़ाई भी छत्तीसगढ़ी में कराई जा सकती है.
छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति सभी को गर्व
साहित्यकार संजीव तिवारी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति सभी को गर्व करना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें छत्तीसगढ़ी में बोलने, पढ़ने, लिखने की आदत डालनी चाहिए. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास काफी हुआ है. छत्तीसगढ़ी साहित्य बहुत लिखे गए हैं. काफी फिल्मों का निर्माण छत्तीसगढ़ी में हो रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार छत्तीसगढ़ी भाषा को लेकर अच्छा काम कर रही है. उम्मीद है कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ी में भी सरकारी कामकाज की भाषा बनेगी. उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्कूलों में भी छत्तीसगढ़ी पढ़ाया जाना चाहिए.