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हथेली में नहीं है पूरी उंगलियां, फिर भी नहीं मानी हार और कजाकिस्तान में लहराया तिरंगा

तकलीफें रास्ते से भटकाएंगी, नाकामी से मंजिल दूर नजर आएगी, बिना डिगे मैदान में डटे रहना ऐ मुसाफिर, कामियाबी खुद ब खुद चलकर तुम्हारे पास आएगी. ये पंक्तियां भिलाई के रहने वाले श्रीमंत झा के संघर्ष को दर्शाती हैं. श्रीमंत ने वो कर दियाखा है, जिसकी शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती.

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Published : Jul 6, 2019, 3:29 PM IST

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रायपुर: श्रीमंत ने एशिया आर्म रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर देश और प्रदेश का नाम रोशन किया है. ये तो रही उनकी कामियाबी की बात अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं, उसे सुनकर आप अपने दांतो दले उंगलियां दबा लेंगे. जी हां श्रीमंत की हाथेलियों में पूरी उंगलियां नहीं है.

स्टोरी पैकेज

कजाकिस्तान में खेली गई प्रतियोगिता
एशिया आर्म रैस्लिंग के फाइनल में श्रीमंत ने कजाकिस्तान के खिलाड़ी को हराकर खिताब अपने नाम किया है. यह प्रतियोगिता कजाकिस्तान के कारा ओई गांव में खेली गई.

मेहनत और लगन से हासिल किया मुकाम
रेस्लिंग चैंपियनशिप के 85 किलोग्राम वर्ग के फाइनल में श्रीमंत का मुकाबला कजाकिस्तान के खिलाड़ी से हुआ था, जिसे उन्होंने बड़ी ही आसानी से जीत लिया. अपने संघर्ष को याद करते हुए श्रीमंत ने बताया कि यह मुकाम हासिल करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी.

शारीरिक दुर्बलता के बाद भी जीता खिताब
जहां एक ओर ऐसे हालत में लोग हिम्मत हार जाते हैं वहीं श्रीमंत ने शारीरिक दुर्बलता होने के वावजूद चैंपियनशिप जीतकर यह दिखा दिया कि अगर साहस के साथ सामना किया जाए तो, कोई भी लड़ाई जीती जा सकती है.

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