रायपुर : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए बड़े पैमाने पर अर्धसैनिक बल तैनात हैं, इनमें से ज्यादातर बस्तर संभाग में हैं. खास बात ये है कि नक्सली हिंसा (Naxali Violence) को लंबे समय से झेल रहे इस इलाके में शांति की स्थापना में इन जवानों का बेहद अहम रोल तो है ही, साथ ही अंदरूनी इलाकों में हो रहे विकास कार्यों को पूर्ण करने में भी अब इनकी महती भूमिका रहती है. यानी सीआरपीएफ के जवान नक्सलवाद को बंदूक और विकास दोनों मोर्चों पर धूल चटाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि नक्सली सीआरपीएफ कैंप का (protest against crpf camp) क्यों विरोध करते हैं. दरअसल नक्सलवाद के पनपने के पीछे सबसे मूल कारकों में से एक है विकास के नजरिए से पिछड़ापन. जहां सड़कें नहीं होती हैं, अस्पताल और स्कूल नहीं होते हैं, वहां नक्सली अपना प्रभाव बेहद तेजी से बना लेते हैं. अब जहां-जहां सीआरपीएफ कैंप बनाए जा रहे हैं, उन इलाकों में सड़कें, पुल वगैरह जल्द तैयार करा लिए जाते हैं.
बस्तर में तो कई सड़कें सीआरपीएफ और पुलिस की पूरी सुरक्षा में बनी हैं, तो कुछ जगह पर इन जवानों ने श्रमदान देकर और अपनी जान की बाजी लगाकर सड़क का निर्माण कराया है. कहीं न कहीं इन्हीं कारणों के चलते जवानों और ग्रामीणों के बीच अच्छे संबंध भी बनने लगे हैं. यही बात अब नक्सली लीडरशिप को बहुत ज्यादा चुभने लगी है. इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ महीनों में अर्धसैनिक बलों का नक्सली दबाव के चलते ग्रामीण विरोध कर रहे हैं.
बस्तर में सीआरपीएफ की बड़ी भूमिका
नक्सलियों को जड़ से उखाड़ने के लिए केन्द्र सरकार ने बस्तर में अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ, आईटीबीपी और बीएसएफ की तैनाती की, इनमें सबसे ज्यादा जवान सीआरपीएफ के हैं. तकरीबन 30 से 35 बटालियन (सीआरपीएफ) के जवान यहां तैनात हैं. यहां 100 से ज्यादा कैंप बनाए गए हैं. इसके जोन का मुख्यालय रायपुर में स्थित है. बस्तर के अंदरूनी इलाकों में पैठ जमाने में इन जवानों की अहम भूमिका रही है. बीजापुर और सुकमा जिले की सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में पिछले 22 दिनों से चल रहा सीआरपीएफ कैंप का विरोध कोई पहला विरोध या आंदोलन नहीं है. इससे पहले भी कुछ इलाकों में इस तरह की खिलाफत होती रही है, लेकिन इन्हें इतना बढ़ने से पहले ही काबू में कर लिया जाता रहा है, लेकिन इस बार मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर नजर आ रहा है. इस कोरोना काल में भी सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण अपना घर-बार छोड़कर यहां जमे हुए हैं. आखिर ये सीआरपीएफ के खिलाफ गुस्सा है या फिर नक्सलियों का दबाव, जिसके चलते लोग अपना घर-बार छोड़कर आंदोलन करने पर मजबूर हैं ये बड़ा सवाल है.
ग्रामीण कैंप का कर रहे विरोध
बीजापुर के सिलगेर कैंप में 16 मई को हुई फायरिंग में 3 लोग मारे गए थे. घटना उस वक्त हुई, जब लगभग 3 हजार ग्रामीण सिलगेर में स्थापित किए जा रहे CRPF कैंप का विरोध करने पहुंचे थे. गोलीकांड के बाद भी ग्रामीण कैंप का विरोध कर रहे हैं. पुलिस ने तीनों मृतकों की शिनाख्त नक्सलियों के DKMS सदस्य के रूप में की है. बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया था कि ग्रामीण तार की बैरिकेडिंग को तोड़कर कैंप में घुसने का प्रयास कर रहे थे, तभी ग्रामीणों की आड़ में खड़े नक्सलियों ने गोली चलाई थी. इस दौरान सुरक्षाबलों ने भी जवाबी कार्रवाई की थी.
तहसीलदार और राजस्व अमला तर्रेम में डटा
सिलगेर में लगी भीड़ और तर्रेम में उमड़ रही ग्रामीणों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए भोपालपट्टनम तहसीलदार शिवनाथ बघेल समेत राजस्व अमला वहीं पर डटे हुए थे. किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए पुलिसकर्मी भी तैनात हैं. हालांकि शुरुआत में कैंप के विरोध में हजारों की तादाद में ग्रामीण जुट रहे थे.
अधिकारियों-जनप्रतिनिधियों के समझाने पर भी नहीं माने ग्रामीण, सिलगेर कैंप का विरोध
तर्रेम तक ही पहुंच पाए अधिकारी