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Savitribai Phule Jayanti: देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती - Satyashodhak Samaj

देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती आज है. उन्होंने लड़कियों की शिक्षा में एक अहम भूमिका निभाई. 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में जन्मीं सावित्रीबाई फुले ने जाति और लिंग पर आधारित भेदभाव के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी. उन्होंने अपने पति समाज सुधारक ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर पुणे में पहला कन्या विद्यालय भी खोला.

Country first female teacher Savitribai Phule birth anniversary
देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती

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Published : Jan 3, 2023, 8:10 PM IST

रायपुर: देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था.Country first female teacher उनका और ज्योतिबा फुले का बाल विवाह हुआ था. ज्योतिबा के सहयोग से सावित्रीबाई ने शिक्षा हासिल की. वह 17 साल की उम्र में ही ज्योतिबा द्वारा खोले गए लड़कियों के स्कूल की शिक्षिका और प्रिंसिपल बनीं.Savitribai Phule Jayanti

शिक्षा को सामाजिक सुधार का बड़ा माध्यम बनाया: सावित्री बाई फुले ने शैक्षिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ साथ सामाजिक परिवर्तन को भी बढ़ावा दिया. यही वजह है कि आधुनिक भारत के विकास में एक समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका हमेशा महत्त्वपूर्ण रहेगी. उन्होंने शिक्षा को सामाजिक सुधार का सबसे बड़ा माध्यम बनाया.

स्त्री शिक्षा और अधिकारों की मुहिम चलाई: 1848 में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला. 1850 में पति के साथ नेटिव फीमेल स्कूल (Native Female School) खोला. 1852 में महिला सेवा मंडल बनाया. 1853 में भारत का पहला शिशु हत्या निषेध गृह, 1855 में नाइट स्कूल, पति के साथ 1873 में सत्य शोधक समाज (Satyashodhak Samaj) बनाया. 1873 में पहली सत्यशोधक शादी हुई.

महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सावित्री बाई फुले ने महिला सेवा मंडल की स्थापना की, जहां सभी जातियों के प्रतिभागियों को जातिवादी रूढ़ियों को दरकिनार कर एक ही चटाई पर बैठना पड़ता था. 1868 में उन्होंने अपने घर में एक कुआं खुदवाया, जिससे कोई भी पानी पी सकता था. उन्होंने मजदूरों के लिए रात्रि स्कूल खोला ताकि दिन में वो काम कर सकें और रात में पढ़ाई कर सकें.

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पूरी जिंदगी समाज की सेवा: सावित्री बाई फुले ने जीवन भर समाज सेवा की. समाज की कुरितियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. महामारी आने पर लोगों की सेवा करते करते अंतिम सांस ली. 1897 में पुणे में प्लेग बीमारी फैली तो वह लोगों की सेवा करती रही है. सावित्री बाई भी इसकी चपेट में आ गईं और 10 मार्च को उनका निधन हो गया.

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