रायपुर: मुस्लिम धर्म में उर्दू महीना जिलहिज्जा में ईद उल अजा बड़ी सादगी और भाई चारे के साथ मनाई जाती है. इस महीने में मुस्लिम समाज का सबसे पवित्र हज का भी अरकान रहता है. हर मुस्लिम व्यक्ति के मन में मरने से पहले एक बार हज करने की ख्वाहिश रहती है. कहा जाता है कि यह महीना त्याग, सब्र और बलिदान का महीना है, लेकिन पिछले दो सालों से बकरीद पर कोरोना संक्रमण का साया मंडरा रहा है. जिसके चलते इस साल भी बकरीद पर बकरा बाजार से रौनक गायब है, जो कभी कोरोना से पहले दिखाई देती थी. आलम यह है कि बकरा व्यापारी ग्राहकों के इंतजार में पूरा दिन गुजार देते हैं.
बिक्री पर व्यापक असर
पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से बकरीद पर पशु बाजार पूरी तरह से बंद थे. शासन ने बकरा मंडी को बंद रखने के निर्दश थे, लेकिन इस साल कोरोना गाइडलाइन के नियमों का पालन करते हुए बकरा मंडी को खोलने की अनुमति दे दी गई है. बावजूद बाजार पर कोरोना का साया मंडरा रहा है. बकरा व्यापारी मोहम्मद फरीद ने बताया कि कोविड की वजह से 50 फीसदी भी मार्केट नहीं है. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बहुत से लोग बेरोजगार हैं, जिसके चलते लोगों के पास पैसे नहीं है. पेट्रोल- डीजल महंगा होने से भाड़ा भी बढ़ गया है. जानवरों का चारा भी महंगी हो गया है. जिसकी वजह से बकरों के दाम बढ़ गए हैं. महंगे बकरों को खरीदने के लिए ग्राहक नहीं पहुंच रहे हैं.
बैजनाथ पारा के बकरा व्यपारी जिया कुरैशी बताते हैं कि बकरीद पर कोरोना से पहले राजधानी में बहुत बढ़ा टर्न ऑवर होता था. हर साल करीब 10 हजार बकरों की बिक्री होती थी. इस व्यापार में बहुत से लोगों का रोजगार जुड़ा है लेकिन, कोरोना की वजह से बाजार ठंडा है. ऐसे में इस साल बकरों की कुर्बानी कम हो होगी.