रायपुर: कहा जाता है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1854 में पहली बार रायपुर पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने वर्तमान पुलिस ग्राउंड को फौजी छावनी के रूप में तैयार किया था. यहां कंपनी के जवानों के ठहरने के साथ ही शस्त्रागार भी तैयार किया गया था. छावनी मैदान से कंपनी आस-पास के इलाकों या जिलों की देखरेख किया करती थी. उस दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हिस्सा भारतीय जवान भी हुआ करते थे. रायपुर की इस फौजी छावनी में छत्तीसगढ़ियों के अलावा मद्रासी, पंजाबी और बंगाली समेत कई राज्यों के जवान भी शामिल थे. मध्य प्रांत के दृष्टिकोण से अंग्रेजों के लिए फौजी छावनी काफी महत्वपूर्ण माना जाता था.
पुलिस मैदान में हनुमान सिंह ने की थी अंग्रेज अफसर की हत्या
जानकारों की मानें तो 1857 की क्रांति देशभर में उफान पर थी, तब धीरे-धीरे क्रांति की यह आग रायपुर भी पहुंची. इसके बाद 1858 में क्रांति की ज्वाला ऐसी फटी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.
इतिहासकार आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि 1858 में फौजी छावनी विद्रोह में शहीद वीर नारायण सिंह का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया. 18 जनवरी 1858 की शाम मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह राजपूत ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की तलवार से हत्या कर विद्रोह प्रारंभ कर दिया. इसमें 17 सिपाहियों ने हनुमान सिंह का साथ दिया. इस दौरान अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच 6 घंटे तक जमकर युद्ध हुआ.
वीर नारायण सिंह की मौत के बाद विद्रोह
इतिहासकार आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र ने ईटीवी भारत को बताया कि सोनाखान के जमींदार और छत्तीसगढ़ के पहले क्रांतिकारी वीर नारायण सिंह को अंग्रेजों ने 10 दिसंबर 1857 को वर्तमान सेंट्रल जेल के सामने फांसी दे दी. फांसी के समय बड़ी संख्या में सैनिक भी मौजूद थे. हालांकि उस दौरान उन भारतीय सैनिकों ने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया, लेकिन उन्होंने संकल्प लिया कि वीर नारायण सिंह के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे. जिसके तहत फौजी छावनी में 18 जनवरी की रात करीब 8 बजे ब्रिटिश अफसर के कमरे में जाकर हनुमान सिंह ने हत्या कर दी. हत्या के बाद भगदड़ की स्थिति निर्मित हो गई थी. उसके बाद अंग्रेजों और हनुमान सिंह के 17 साथियों के साथ लगभग 6 घंटे तक विद्रोह हुआ.