अल्मोड़ा: हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली बिच्छू घास/कंडाली (Common Nettle) यूं तो कई औषधीय गुणों से युक्त होती है, लेकिन अब यह बिच्छू घास कोरोना वायरस से भी लड़ने में कारगर साबित हो सकती है. सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के जंतु विज्ञान विभाग एवं राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में बिच्छू घास पर एक शोध किया गया, जिसमें बिच्छू घास में 23 ऐसे यौगिक मिले हैं, जो कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर साबित हो सकते हैं. यह शोध पत्र स्विट्जरलैंड से प्रकाशित होने वाली वैज्ञानिक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर के मॉलिक्यूलर डाइवर्सिटी में प्रकाशित हुआ है.
सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं शोध प्रमुख डा. मुकेश सामंत ने बताया कि इस शोध में बिच्छू घास में पाए आने वाले 110 यौगिकों की मॉलिक्यूलर डॉकिंग विधि द्वारा काफी स्क्रीनिंग की गई, जिसके बाद 23 यौगिक ऐसे पाये गए जो हमारे फेफड़ों में पाए जाने वाले एसीइ-2 रिसेप्टर से जुड़े हो सकते हैं. ये कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं. वर्तमान में इन यौगिकों को बिच्छू घास से निकालने का काम चल रहा है. उसके बाद इन यौगिकों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल किया जाएगा.
बिच्छू घास के बारे में जानें
बिच्छू घास उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में उगता है. ये एक जंगली पौधा है, लेकिन घरों के आसपास और रास्तों के किनारे अपने आप उग जाता है. इसको जब छूते हैं तो करंट जैसा अनुभव होता है. इसका वैज्ञानिक नाम Urtica dioica है.
गढ़वाल में कंडाली, कुणाऊं में कहते हैं सिसौंण
बिच्छू घास को गढ़वाल में कंडाली कहते हैं तो कुमाऊं में इसे सिसौंण के नाम से जाना जाता है. इसको छूने पर करंट जैसा अनुभव होने के कारण बिच्छू घास कहते हैं. इसकी पत्तियों और तने दोनों पर महीने आलपिन जैसे कांटे होते हैं.
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