रायपुर: बोधघाट सिंचाई परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि इस योजना का विरोध करने वाले लोग नहीं चाहते कि आदिवासी अपने पैरों में खड़े हों. सीएम ने नक्सली नेताओं से सवाल किया कि क्या आदिवासियों की स्थिति सुधरनी नहीं चाहिए ? उनके खेतों में पानी नहीं पहुंचना चाहिए ?
सीएम ने कहा कि हमारी सरकार आदिवासियों को जमीन दे रही है. पट्टा देने का काम अब भी जारी है. लेकिन जब तक पानी नहीं पहुंचेगा, जमीन पर खेती करना संभव नहीं है. ये नुकसान का धंधा है.
वैकल्पिक व्यवस्था बताएं: सीएम
सीएम बघेल ने कहा कि नक्सली नेता ये बताएं कि आदिवासियों के खेत में पानी कैसे पहुंचे ? खेतों में पानी पहुंचाने के लिए बोधघाट परियोजना जरूरी है. जो उसका विरोध कर रहे हैं वो उसकी वैकल्पिक व्यवस्था कैसे हो ये बता दें. सीएम ने ये भी कहा कि उन्होंने बोधघाट परियोजना की कसम नहीं खाई है, अगर इसकी वैकल्पिक व्यवस्था है तो बताएं.
'ग्राम सभा की इजाजत के बाद ही शुरू होगी बोधघाट परियोजना, नहीं होगी नाइंसाफी'
ग्राम सभा की सहमति जरूरी: राज्यपाल
राज्यपाल ने भी साफ कर दिया है कि अभी बोधघाट परियोजना शुरू होने में काफी समय है क्योंकि इसकी प्रक्रिया काफी लंबी है. बस्तर दौरे के दौरान उन्होंने ये भी कहा था कि इस क्षेत्र में पांचवीं अनुसूची लागू है, जिससे पेसा कानून भी यहां प्रभावी है. सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ग्राम सभा के तहत ग्रामीणों की स्वीकृति ली जाएगी. उन्होंने आदिवासियों को विश्वास में लेने की कोशिश की. राज्यपाल ने कहा कि परियोजना का आकलन किया जाएगा. इस परियोजना से आदिवासियों का हित हो रहा है या नहीं हो रहा है. उनके रहते किसी भी आदिवासी के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.
आदिवासियों का डर स्वाभाविक: राज्यपाल
राज्यपाल ने 1979 के समय बोधघाट परियोजना पर किए गए फैसले का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि तब इसे थर्मल पावर स्टेशन के तौर पर शुरू करने की योजना थी, जिसे बंद कर दिया गया था. अब सरकार ने इसे दूसरे दृष्टिकोण से देखते हुए सिंचाई परियोजना के रूप में शुरू करने का फैसला किया है. इससे पूर्व के विस्थापन की योजना को देखते हुए आदिवासियों का डर स्वाभाविक है.
सीएम ने राज्यपाल के बयान को बताया सही
सीएम ने राज्यपाल के इस बयान को सही ठहराते हुए कहा कि वे गलत नहीं कह रही हैं. लेकिन जब तक हम सिंचाई की सुविधा नहीं बढ़ाएंगे तब तक आदिवासियों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता. इसके लिए बोधघाट परियोजना जरूरी है.