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Chhattisgarh Women Commission : मां बेटे को महिला आयोग से मिला न्याय, पिता ने बेटे को किया था घर से बेदखल

छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की 183वीं जनसुनवाई का आयोजन रायपुर में किया गया. जिसमें कुल 53 केसों में सुनवाई की गई.आयोग में आज एक अलग किस्म का मामला सामने आया.जिसमें बेटे और पिता के बीच अनबन का केस था. जानिए क्या है पूरा मामला ?

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Published : Jun 13, 2023, 8:40 PM IST

Chhattisgarh Women Commission
मां बेटे को महिला आयोग से मिला न्याय

मां बेटे को महिला आयोग से मिला न्याय

रायपुर : तेलीबांधा निवासी महिला ने अपने पति के खिलाफ महिला आयोग में मारपीट की शिकायत दर्ज की थी. सुनवाई के दौरान आवेदिका ने ये जानकारी दी थी कि पति शराबी है और मारपीट करता है.घर में राशन का भी खर्च नहीं देता.वहीं अपने बेटे को भी घर से बाहर निकाल दिया है.महिला ने बताया कि बेटे ने जब पिता की हरकतों को देखा तो अपने पिता पर ही हाथ उठा दिया. जिसके बाद पिता ने बेटे के खिलाफ हाफ मर्डर का केस दर्ज करा दिया.साथ ही साथ उसे घर से बाहर निकाल दिया.वहीं इस पूरे मामले में आरोपी पिता ने सारी बातों को झूठा करार दिया.लेकिन आयोग के सामने जो सबूत पेश किए गए वो उन्हें झुठला ना सका.

किरणमयी नायक ने की सुनवाई : मामले के बारे में किरणमयी नायक ने बताया कि " आरोपी मुस्लिम बुजुर्ग है. वह अपनी पत्नी के साथ मारपीट किया करते थे. बच्चे जब बचपन से अपनी मां को पीटते हुए देखते हैं तो छोटी उम्र के बच्चे विरोध नहीं करते हैं. यदि जवान बेटे के सामने पिता, मां को पीटता है तो जवान बेटा भी बचाव में हाथापाई करता है. बुजुर्ग ने अपनी पत्नी को रहने के लिए ऊपर का एक कमरा नहीं दिया. वह अपना नीचे रह रहा है. दोनों खाना भी अलग-अलग पकाते हैं.बुजुर्ग ने रोक लगा रखी है कि बेटा इस घर में नहीं आएगा.जिसके लिए आवेदिका ने यहां आवेदन प्रस्तुत किया था.हमने आवेदिका से कहा है कि जो, बच्चे की मां है. उसे अपने बच्चे से मिलने से कोई रोक नहीं लगा सकता.एक काउंसलर अपॉइंट कर दिया गया है. ताकि इनके बीच के विवाद पर निगरानी रखी जा सके."

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महिला आयोग से मिला न्याय : दोनों पक्षों को सुनने के बाद महिला आयोग ने बेटे को अपनी मां के साथ रहने की इजाजत दिलवाई.आयोग ने इस मामले में अनावेदक को कहा कि बेटे को मां के साथ रहने से आप रोक नहीं सकते. यदि आपको आपत्ति है तो आप इस बात को कोर्ट में बताइए. जिसके बाद अनावेदक सुनवाई के बीच में से ही उठ कर चला गया.आवेदक और अनावेदक से लिखित में हस्ताक्षर लिया गया. उसके बाद मामले की सुनवाई को पूरा करते हुए पुत्र को अपनी मां के साथ रहने के लिए भेजा गया. साथ ही एक काउंसलर की भी व्यवस्था की गई.जो पूरे 6 महीने इस बात पर निगरानी रखेगा के घर में किसी तरह का कोई क्लेश तो नहीं हो रहा है.आपको बता दें कि अनावेदक बुजुर्ग शासकीय कर्मचारी है.वहीं बेटा टाइटन कंपनी में प्राइवेट नौकरी करता है.

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